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Seth means Maheshwari people. "सेठ" अर्थात माहेश्वरी


'सेठ' उपाधि सिर्फ माहेश्वरीयों के लिए प्रयुक्त होती है,
जैसे सरदार सिर्फ सिखों के लिए प्रयुक्त होनेवाली उपाधि है।

यह 100% सत्य बात है, क्योंकी माहेश्वरी उत्पत्ति (वंशोत्पत्ति) के समय भगवान महेशजी ने ऋषियों के श्राप से पत्थरवत बने हुए 72 उमरावों को शापमुक्त करके नवजीवन देकर "माहेश्वरी" यह नया नाम देते हुए कहा था की आप जगत में "श्रेष्ठ" कहलाओगे... आगे चलकर इसी श्रेष्ठ शब्द का अपभ्रंश होकर "सेठ" कहा जाने लगा। अर्थात माहेश्वरीयों को "सेठ" गरीबी-अमीरी के आधारपर नहीं बल्कि माहेश्वरी उत्पत्ति के समय भगवान महेशजी द्वारा दिए वरदान के कारन कहा जाता है, श्रेष्ठ होने के कारन कहा जाता है।

हम माहेश्वरीयों को लोग सेठ अथवा सेठ सा क्यों बोलते है... क्योंकि वो हमारी इज़्ज़त करते है, हमारे माहेश्वरी वंश के वारिस होने की इज़्ज़त करते है। तो हम माहेश्वरीयों का भी दायित्व है की हमें लोगों द्वारा दी जानेवाली इज्जत और सम्मान को हम बरकरार रखें। हम अपना आचरण, रहन-सहन, वाणी, व्यवहार, विचार एवं खानपान ठीक वैसा ही रखें जिसके कारन लोग हम माहेश्वरीयों की इज्जत करते है, हम माहेश्वरीयों को "सेठ" बोलते है।


Happy International Yoga Day to all | Creator of Yoga– Lord Mahesha | Yoga Day Quotes by Maheshacharya Premsukhanand Maheshwari | Yoga Day | Quotes | Wishes | Images


समस्त मानव समाज को 'जागतिक योग दिवस' की शुभकामनाएं
– योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी


Regular exercise and a healthy diet help build a strong immune system. So, make conscious eating and fitness a lifestyle choice and follow it strictly.


सोना और चांदी के टुकड़े नहीं बल्कि असली धन है स्वास्थ्य-निरोगिता। इसलिए अपने शरीर को स्वस्थ-निरोगी रखें। मत भूलें की आप जहाँ रहते है वो एकमात्र जगह है- "आपका शरीर"। बादमें तो... झोपड़ी हो या महल, उसमें आपका शरीर रहता है; आप नहीं ! नियमित योग करें... स्वस्थ रहे, मस्त रहे। योग ही वह एकमात्र परिपूर्ण तरीका है जिससे परिपूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त होता है – योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी


I would like to see every one happy, healthy and prosperious
– Yogi Premsukhanand Maheshwari

मैं हर एक को खुश, स्वस्थ और समृद्ध देखना चाहूंगा – योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी



Om Birla was elected the President of the 17th Lok Sabha of India, Congratulations !


राजस्थान के कोटा संसदीय क्षेत्र से सांसद श्री ओम बिर्ला जी को 17 वी लोकसभा का अध्यक्ष बनाया गया हैं। इससे हमारा माहेश्वरी समाज और हम सभी समाजजन गौरवान्वित हुए है। श्रीमान ओमजी बिरला को बहुत बहुत बधाई एवं अनेकानेक शुभकामनाएं ! हमें विश्वास है की आप अपनी क्षमता का सर्वोत्कृष्ट योगदान देते हुए अपनी इस जिम्मेदारी का निर्वहन करके देश और अपने माहेश्वरी समाज को गौरवान्वित करेंगे। श्री ओम बिर्ला जी को लोकसभा अध्यक्ष बनाने के लिए प्रधानमंत्री मोदीजी और भाजपा के नेतृत्व का बहुत बहुत धन्यवाद ! माहेश्वरी समाज को मिले इस गौरवपूर्ण उपलब्धि पर समस्त समाजजनों को हार्दिक बधाई और अभिनन्दन !!!

- द्वारा -
योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी (पीठाधिपति, माहेश्वरी अखाड़ा)
एवं समस्त माहेश्वरी समाज


Congratulations, Om Birla elected as 17th Lok Sabha Speaker of India

Bharatiya Janata Party (BJP) MP Om Birla was unanimously elected as the Speaker of the 17th Lok Sabha. Om Birla, two-time MP from Rajasthan's Kota, was elected after Prime Minister Narendra Modi proposed his name on Day 3 of Lok Sabha session. Lok Sabha Speaker is the presiding officer of the Lok Sabha (House of the People) of India.


I offer my greeting to all the Maheshwaris on the holy occasion of Mahesh Navami.


मैं महेश नवमी के पावन अवसर पर सभी माहेश्वरीयों को अपनी शुभकामनाएँ देता हूँ।




Tribute to Maharana Pratap on his birth anniversary


महाराणा प्रताप जी की जन्मजयंती पर उनकी पावन स्मृति को शत शत नमन !
Tribute to Maharana Pratap on behalf of all the Maheshwari community on his birth anniversary.

-Yogi Premsukhanand Maheshwari
(Peethadhipati, Maheshwari Akhada)

आम चुनाव-2019 में जीतकर फिर एकबार संसद में पहुंचने पर बहेड़िया और बिर्ला का हार्दिक अभिनन्दन !


माहेश्वरी समाज के गौरव श्री सुभाषजी बहेड़िया (भीलवाड़ा, राजस्थान) और श्री ओमजी बिर्ला (कोटा-बूंदी, राजस्थान), 2019 के आम चुनाव में जीतकर फिर एकबार संसद में पहुंचने पर माहेश्वरी अखाडा एवं समस्त माहेश्वरी समाज की ओरसे आपका हार्दिक अभिनन्दन... बहुत बहुत बधाई !

हमें आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है की आप अपने कामकाज से देश और समाज की सर्वोपरि सेवा करेंगे और समाज का नाम रोशन करेंगे; इसी विश्वास के साथ आपको आपके इस संसदीय कार्यकाल के लिए अनेकानेक शुभकामनाएं ! भगवान महेशजी और आदिशक्ति माता पार्वती की कृपा आप पर सदैव बनी रहे... जय महेश !


- शुभेच्छुक -
योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी
(पीठाधिपति, माहेश्वरी अखाड़ा)

अधर्म पर धर्म की विजय का पर्व विजयादशमी सम्पूर्ण समाज और राष्ट्र के लिये मंगलमय हो...


नवरात्रि के नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति/देवी के विविध रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि का दसवां "विजयादशमी" का दिन आदिशक्ति की पूजा का है। इसी तिथि पर माँ आदिशक्ति ने महिषासुरमर्दिनि के रूपमें असुर महिषासुर का वध किया था। त्रेता युग में इसी तिथि पर श्रीराम ने लंकापति दशानन रावण का वध किया था। असुरों और असुरी शक्तियों पर पूर्ण विजय का दिन है- विजयादशमी।

Happy Dussehra to all of you. May Goddess Adishakti gives you and everyone Success, Joy and all the Happiness.
Jay Maa Bhawani ! Jay Mahesh !!

आप सभी को धर्म, सत्य, न्याय और मानवता की जीत के प्रतिक का दिन "विजया दशमी" की हार्दिक बधाई ! आपको जीवन में सदैव यश, विजय (सक्सेस) मिले यही शुभकामनाएं...!
जय माँ भवानी ! जय महेश !!

- शुभेच्छुक -
माहेश्वरी अखाड़ा
(दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा)




वर्ष 2018, देश में सर्वप्रथम स्थापित "महेश चौक" का रजत महोत्सवी वर्ष


देश का पहला महेश चौक स्थापित हुवा था महाराष्ट्र के बीड में,

वर्ष 2018 है रजत महोत्सवी वर्ष


आज हम देश के कई शहरों में "महेश चौक" स्थापित हुए है. यह हम माहेश्वरीयों के लिए, माहेश्वरी समाज के लिए गौरव की बात है. जिस शहर के माहेश्वरी समाज से प्रेरणा लेकर अपने-अपने शहर में महेश चौक बनाने की प्रेरणा देशभर के माहेश्वरी समाज को मिली है, जिस शहर के माहेश्वरी समाज द्वारा स्थापित देश के पहले "महेश चौक" से मिली है, वो है महाराष्ट्र के बीड शहर में. माहेश्वरी समाज बीड द्वारा वर्ष 1994 में बीड शहर में "महेश चौक" के नाम से एक चौक बनाया गया जो देशभर में बना हुवा पहला " महेश चौक " है. देश में बने इस प्रथम (पहले) महेश चौक को 24 वर्ष पूर्ण हुए है और वर्ष 2018 यह इसका रजत महोत्सवी वर्ष है. भगवान महेशजी की प्रेरणा-आशीर्वाद से इस चौक को स्थापित करने में प्रेम माहेश्वरी (साबु), जुगलकिशोर लोहिया की अग्रणी भूमिका रही. (फोटो में, दाएं से बाएं, तत्कालीन नगर परिषद पार्षद पारिखबाई, जवाहरलालजी सारडा, सुभाषचंद्रजी सारडा, तत्कालीन नगराध्यक्ष भारतभूषण क्षीरसागर, जुगलकिशोर लोहिया, प्रेमसुख साबु, जगदीश सिकची).

देश के प्रथम (पहले) महेश चौक के रजत महोत्सवी वर्ष के शुभ अवसरपर देशभर के समस्त माहेश्वरी समाज को बहुत बहुत शुभकामनाएं... बधाई ! बीड के समस्त माहेश्वरी समाज का बहुत बहुत अभिनन्दन !!!





CM Rajasthan Vasundhara Raje conveyed wishes on Mahesh Navami


महेश नवमी के पर्व पर 
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधराराजे ने दी शुभकामनाएं


माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च धार्मिक-आध्यात्मिक संस्था माहेश्वरी अखाड़ा के पीठाधिपति योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी जी ने राजस्थान के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर, महेश नवमी पर राजस्थान के मुख्यमंत्री द्वारा शुभकामनाएं... दी जानी चाहिए ऐसी अपेक्षा व्यक्त की थी, इसलिए प्रयास किये थे. इसके मद्देनजर, माहेश्वरीयों का होमलैंड माने जानेवाले "राजस्थान" के मुख्यमंत्री ने आज तक, अब तक के इतिहास में पहली बार महेश नवमी के पर्व पर माहेश्वरी समाज के लिए शुभकामनाएं प्रेषित की. माहेश्वरी अखाडा एवं समस्त माहेश्वरी समाज की ओरसे राजस्थान की मुख्यमंत्री माननीया वसुंधरा राजे एवं राजस्थान सरकार का बहुत बहुत धन्यवाद !

Letter to CM of Rajasthan for declaring public holiday at the Mahesh Navami


माहेश्वरी समाज के सबसे बड़े त्योंहार महेश नवमी के पर्व पर सार्वजनिक अवकाश (छुट्टी) घोषित करने के लिए योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी (पीठाधिपति, माहेश्वरी अखाड़ा) द्वारा माननीय मुख्यमंत्री राजस्थान वसुंधरा राजे को पत्र l

Letter to Hon'ble Chief Minister of Rajesthan Vasundhara Raje by the Yogi Premsukhanand Maheshwari (Peethadhipati of Maheshwari Akhada) for declaring public holiday at the festival of Mahesh Navami, the biggest festival of Maheshwari community.

Letter to PM Modi for declaring gazetted holiday at the Mahesh Navami


माहेश्वरी समाज के सबसे बड़े त्योंहार महेश नवमी के पर्व पर राजपत्रित अवकाश (छुट्टी) घोषित करने के लिए योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी (पीठाधिपति, माहेश्वरी अखाड़ा) द्वारा भारत के माननीय प्रधानमंत्री मोदी को पत्र l

Letter to Honorable Prime Minister of India Modi by the Yogi Premsukhanand Maheshwari (Peethadhipati of Maheshwari Akhada) for declaring gazetted holiday at the festival of Mahesh Navami, the biggest festival of Maheshwari community.

Gudi Padwa is the beginning of a New Year. Best wishes for the New Year.


जय महेश !
यह भारतीय नववर्ष आपको आरोग्य-सुख-समृद्धि देनेवाला, समस्त माहेश्वरीयों का, माहेश्वरी संस्कृति का एवं देश का गौरव बढ़ानेवाला रहे... माहेश्वरी अखाडा की ओरसे शुभकामनाएं !

Wish you and your family
 good Health, more Wealth, Happiness and so many Good Things in your Life. May Lord Mahesha & Goddess Maheshwari Bless you every day, every way, everywhere. Gudi Padwa is the beginning of a New Year. Best wishes for the New Year.

Health first, wealth later. Make your and your family's health a priority this year. Have a healthy new year.

शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती के निधन से सनातन धर्म की बहुत बड़ी हानि -महेशाचार्य प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी



कांची कामकोटि पीठ के पूज्य शंकराचार्य श्री जयेन्द्र सरस्वती जी बुधवार (28 फरवरी 2018) सुबह में ब्रह्मलीन हो गए. वे ८२ वर्ष के थे. उनके देवलोकगमन पर माहेश्वरी अखाड़े के पीठाधिपति प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी ने गहरा दुख जताते हुए कहा है की उनके निधन से सनातन धर्म की बहुत बड़ी हानि हुई है. माहेश्वरी अखाडा एवं समस्त माहेश्वरी समाज की ओरसे शंकराचार्य श्री जयेन्द्र सरस्वती जी की पावन स्मृति को कोटि कोटि नमन !
भावभीनी श्रद्धांजलि !!!

जाग जाये समाजबंधु, वर्ना मिट जायेगा माहेश्वरी समाज का अस्तित्व -प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी


सब कुछ है...
माहेश्वरी शिक्षित है,
तेजतर्रार है, कर्तबगार है,
संस्कारी है, समझदार है,
धनि है, दानी है, ज्ञानी है,
फिर भी...
माहेश्वरी समाज का वह रुतबा,
वह पहचान नहीं है जो होनी चाहिए थी.
क्यों? क्या कारण है?

क्योंकि....
- माहेश्वरी संगठित नहीं है,
- स्व-अस्मिता, स्वाभिमान नहीं है,
- अपने इतिहास की जानकारी नहीं है,
- अपने इतिहास पर नाज नहीं है,
- अपने माहेश्वरी होने पर नाज नहीं है,
- मार्गदर्शित करनेवाली धार्मिक व्यवस्था नहीं है,
- समस्त समाज का प्रतिनिधि कहलाये ऐसा कोई संगठन नहीं है,
- समाज के भविष्य के बारे में कोई योजना नहीं है,
- संगठनों का माहेश्वरी संस्कृति को बचाने पर ध्यान नहीं है,
- समाज की परम्पराओं को निभाया जाए इसपर ध्यान नहीं है,
- माहेश्वरी संस्कृति की जानकारी नई पीढ़ी को मिले ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है,
- समाज के गौरवचिन्हों की, समाज के गौरवस्थानों (समाज में जन्मे महापुरुषों) की समाज को जानकारी नहीं है, इसकी जानकारी समाज को दे ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, परिणामतः समाज के सामने कोई प्रेरणास्त्रोत नहीं है,
- समाज में एक-दूजे के प्रति कोई अपनापन नहीं है, समाज में वास्तविक एकता की कमी है; आगे बढ़ने-बढ़ाने के लिए एक-दूजे का भरपूर सहयोग करें इस भावना की कमी है,
- व्यापार-उद्योग में समाजबंधुओं को आपसी सहयोग का लाभ मिले, व्यापार-उद्योग में परंपरागत रूप से चला आया समाज का दबदबा (रुतबा) कायम रहे इसके लिए संगठनों के पास कोई दीर्घकालीन योजना, कोई ठोस कार्यक्रम, कोई स्थाई व्यवस्था  नहीं है.

इन मुख्य कारणों के अलावा अन्य भी कई कारन है. समाज के अस्तित्व को बचाने की, समाज के गौरव को बढ़ाने के लिए कार्य करने की, समाज एवं समाजजनों को प्रगति के पथ पर अग्रेसर करने की जिम्मेदारी सिर्फ संगठन की या सिर्फ समाजबंधुओं की नहीं है बल्कि दोनों मिलकर इस कार्य को करें तभी यह संभव हो सकता है. यह कार्य असंभव नहीं है बशर्ते समाजबंधु इसे ना केवल संगठन के भरोसे छोडे बल्कि अपना सक्रीय योगदान दे, अपना सक्रीय सहभाग प्रदान करें.

संगठन ने समाज के लिए कार्य करते हुए कुछ अच्छे कार्य किये है, कुछ कमियां भी रही है. हमने विगत 3-4 वर्षों में समाज की इन बातों को लेकर संगठन 'अ. भा. माहेश्वरी महासभा' से बात करने की कई बार कोशिश की लेकिन संगठन को बात करने में कोई रूचि नहीं है. हम अ. भा. माहेश्वरी महासभा से आग्रह करते है की समाजहित में वे अपने भूमिका को सकारात्मक बनावे. हमारा मानना है की समाज को आध्यात्मिक मार्गदर्शन करनेवाली संस्था और समाज के लिए सामाजिक कार्य करनेवाली संस्था यह समाज नामक रथ के 2 पहिये है. यह दोनों पहिये एकसाथ, एक दिशा में चले तो समाज को प्रगति पथ पर तेज गति से दौड़ने से कोई नहीं रोक सकता ! इसे समझा जाये की 'आध्यात्मिक संस्था' समाज की आत्मा होती है और 'सामाजिक संस्था' समाज का शरीर. बिना आत्मा के शरीर का कोई मूल्य नहीं है और बिना शरीर के आत्मा का कोई अर्थ नहीं है. जैसे शरीर के बिना आत्मा शून्य है और आत्मा के बिना शरीर 'शव' है वैसे ही आध्यात्मिक मार्गदर्शक संस्था के बिना समाज निष्प्राण हो जाता है, दिशाहीन हो जाता है, समाज में एक रिक्तता निर्माण हो जाती है; और बिना सामाजिक संस्था (संगठन) के समाज अक्रियाशील, कुछ भी करने में असमर्थ हो जाता है. समाजरूपी रथ को दौड़ने के लिए दोनों पहिये आवश्यक है. समाज के लिए 'मार्गदर्शन करनेवाली आध्यात्मिक संस्था' और 'कार्य करनेवाली सामाजिक संस्था' दोनों का समान महत्व है, दोनों आवश्यक है.

देश में तेजी से आर्थिक और सामाजिक बदलाव हो रहे है. यही समय है की भविष्य में माहेश्वरी समाज के अस्तित्व को, रुतबे को, माहेश्वरी संस्कृति को कायम रखने और बढ़ाने के लिए सभी को जाग जाना चाहिए. यही समय है की समाजबंधुओं की प्रगति को सुनिश्चित करने के लिए कार्य करने की दिशा में ठोस और स्थायी योजना बनाकर तत्परता से उसपर कार्य किया जाना चाहिए. समय किसी के लिए रुकता नहीं है, बाद में सिवाय पछतावे के बिना कुछ बचता नहीं है.

हमारे लिए यह संतोष की बात है की पिछले 3-4 वर्षों में समाज के कई कार्यकर्ता और अनेको समाजबंधुओं ने व्यक्तिगत रूप से समाज के इस कार्य में अपना अदभुत योगदान दिया है/दे रहे है. कुछ छोटे संगठन भी इस कार्य में अपना योगदान देते दिखाई दे रहे है लेकिन समाज के सबसे बड़े संगठन के ज्यादातर पदाधिकारी, वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता, समाज के चिंतक, समाज के बड़े बड़े लोग ना केवल दूर है बल्कि मौन धारण करके बैठे हुए है. महाभारतपर्व में, राजसभा में द्रौपदी के चीरहरण के समय भी भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, बड़े बड़े योद्धा, रथी-महारथियों ने मौन धारण किया था लेकिन बाद में महाभारत के धर्मयुद्ध में उन सबका क्या हश्र हुवा और इतिहास ने उन्हें कैसे भाषित किया यह हम सब जानते है, पितामह भीष्म को तो कई दिनों तक अपने मृत्यु की प्रतीक्षा करते शरशैया पर सोना पड़ा. आज समाज के अस्तित्व को बचाने के लिए, माहेश्वरी संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन के लिए, माहेश्वरी समाज के गौरव को पुनःस्थापित करने के लिए, समाज की सर्वांगीण प्रगति के लिए हम एक धर्मयुद्ध लड़ रहे है और इस समय संगठन के कुछ पदाधिकारी, ज्यादातर वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता, समाज के चिंतक, समाज के बड़े बड़े लोग मौन धारण करके बैठे हुए है, लेकिन इतिहास में इनका यह मौन भी दर्ज होगा. मुझे तो ना कुछ बनना है और ना ही कुछ पाना है लेकिन इतिहास में मेरा यह छोटासा योगदान जरूर दर्ज होगा. मेरे जीते जी भले ही ना किया जाये लेकिन मेरे जाने के 100-200 वर्षों के बाद इतिहास मुझे जरूर याद करेगा. भगवान महेशजी की असीम कृपा से मुझे अपना सम्पूर्ण जीवन माहेश्वरी समाज के लिए समर्पित करने का सुअवसर मिला यह मेरे लिए सौभाग्य की, गौरव की बात है.

मुझे विश्वास है की भगवान महेशजी और देवी महेश्वरी (पार्वती) द्वारा स्थापित यह महान माहेश्वरी संस्कृति, माहेश्वरी समाज देश-दुनिया में पुनः अपना परचम जरूर लहरायेगा. जैसे पहले के समय में माहेश्वरी समाज औरों के लिए मार्गदर्शक और प्रेरणादायक था वही गौरवपूर्ण स्थान पुनः पाने में समाज जरूर सफल होगा. जय महेश ! 

- प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी
(पीठाधिपति, माहेश्वरी अखाडा) 

महेशाष्टक (महेश वंदना)


देव, दनुज, ऋषि, महर्षि, योगीन्द्र, मुनीन्द्र, सिद्ध, गन्धर्व सब महेश्वर को गा कर प्रसन्न करते है. महेशाष्टक, महेश चालीसा, महेश मानस स्तोत्र जैसे स्तोत्रों का पाठ करने से अद्भुत कृपा प्राप्त होती है. महेशाष्टकम् सर्वश्रेष्ठ एवं कर्णप्रिय स्तुतियों में से एक है. महेशाष्टक यह माहेश्वरी अखाडा (दिव्यशक्ति योगपीठ अखाडा) के पीठाधिपति महेशाचार्य श्री प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी महाराज द्वारा रचित भाव प्रस्तुति है. इस महेशाष्टक को घर में या मंदिर में महेश-पार्वती/महेश परिवार के समीप श्रृद्धा सहित पाठ करने से मन को सुख मिलता है, भगवान महेश-पार्वती और गणेशजी की कृपा प्राप्त होती है.

महेशाष्टक (महेश वंदना)

महेशं अनन्तं शिव महादेवम् करुणावतारं गिरिजावल्लभम् ।
देवाधिदेवं भक्तप्रतिपालकम् गजाननतातं उमानाथं नमो ।। १ ।।

योगीयोगेश्वरं महाकालकालम् अर्धनारीश्वरं गणाधिनायकम् ।
हर सत्यं शिवं सुंदरं मधुरम् गजाननतातं उमानाथं नमो ।। २ ।।

सगुणं साकारं निर्गुण निराकारम् गुणातीतरूपं तपोयोगगम्यम् ।
शाश्वतं सर्वज्ञं श्रुतिज्ञानगम्यम् गजाननतातं उमानाथं नमो ।। ३ ।।

दाता भोलेनाथं त्राता वैद्यनाथम् महामृत्युंजयं नटराज नृत्यम् ।
आदिगुरु ज्ञानं त्वं जगतगुरुम् गजाननतातं उमानाथं नमो ।। ४ ।।

अनादि अनन्तं ओंकारस्वरूपम् जगन्नाथनाथं ब्रम्हांडनायकम् ।
सोम साधूसिद्धाःस्वांतस्थमीश्वरम् गजाननतातं उमानाथं नमो ।। ५ ।।

रुद्रं वीरभद्रं भुजंगभूषणम् कर्पूरगौरं जटाजूटधारणम् ।
पार्वतीप्रियं सुरासुरपूजितम् गजाननतातं उमानाथं नमो ।। ६ ।।

गवेन्द्राधिरूढं कराभ्यां त्रिशुलम् साधुनां रक्षितं दुष्टाय मर्दितम् ।
परिवारसमेतं कैलासवसन्तम् गजाननतातं उमानाथं नमो ।। ७ ।।

नमो पञ्चवक्त्रं भवानीकलत्रम् सहस्त्रलोचनं महापापनाशम् ।
नमामि नमामि भवानीसहितम् गजाननतातं उमानाथं नमो ।। ८ ।।

महेशस्याष्टकं य: पठेदिष्टदं प्रेमत: प्रत्यहं पूरुष: सस्पृहम् l
वृत्तत: सुन्दरं कर्तृमहेश्वरं तस्य वश्यो हरर्जायते सत्वरम् ।।

॥ इति श्रीमहेशाचार्यप्रेमसुखानन्दविरचितं श्रीमहेशाष्टकं संपूर्णम् ॥

- महेशजी की आरती के लिए इस Link पर click करें > महेशजी की आरती

- भगवान गणेशजी की आरती के लिए इस Link पर click करें > ॐ जय श्री गणेश हरे

माहेश्वरी ही है आचार्य किशोरजी व्यास एवं मारवाड़ी ब्राम्हण


जिन्हे मारवाड़ी ब्राम्हण कहा जाता है वे माहेश्वरियों से अलग नहीं बल्कि "माहेश्वरी" ही है

हाल के दिनों में देशभर के समाजबंधुओं से चर्चा में कुछ सजग समाजबंधुओं द्वारा कुछ प्रश्न उपस्थित किये गए है- आचार्य किशोरजी व्यास 'माहेश्वरी' है या नहीं? जिनको हम माहेश्वरी या मारवाड़ी ब्राम्हण कहते है वे माहेश्वरी है या नहीं? अगर से वे माहेश्वरी है तो उन्हें समाज के संगठनों में क्यों शामिल नहीं किया गया है? इस बात पर माहेश्वरी समाज की सर्वोच्च आध्यात्मिक संस्था 'माहेश्वरी अखाडा' के पीठाधिपति प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी महाराज ने निर्णय दिया है की आचार्य किशोरजी व्यास एवं जो मारवाड़ी ब्राम्हण है, "माहेश्वरी" ही है.

इस निर्णय के आधार को समाज के सामने प्रस्तुत करने की आवश्यकता को प्रतिपादित करते हुए उन्होंने कहा की ...इस बातको हमें तथ्यों और प्रमाणों के आधार पर समझना होगा, इसके मूल में जाना होगा. कुछ समाजबंधुओं को माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के बारे में पूर्णरूपेण जानकारी नहीं होने के कारन उनके मन में ऐसा प्रश्न आना स्वाभाविक है. माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के अनुसार जब माहेश्वरी वंशोत्पत्ति हुई उसी समय भगवान महेशजी ने महर्षि पराशर, सारस्वत, ग्वाला, गौतम, श्रृंगी, दाधीच इन छः (6) ऋषियों को माहेश्वरियों का गुरु बनाया (गुरुपद दिया). कालांतर में इन गुरुओं ने महर्षि भारद्वाज को भी माहेश्वरी गुरु पद प्रदान किया जिससे माहेश्वरी गुरुओं की संख्या सात हो गई जिन्हे माहेश्वरीयों में सप्तर्षि (सप्त गुरु) कहा जाता है. एक सर्वमान्य परंपरा यह है की समाज के जो गुरु होते है वे उसी समाज के माने जाते है जिस समाज के वे समाजगुरु है, जैसे की जैनों के गुरु जैन ही होते है, सिखों के गुरु सिख ही होते है. इस सर्वमान्य परंपरा के अनुसार एवं माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के तथ्यों के आधारपर यह स्पष्ट है की उपरोक्त वर्णित सात ऋषियों (माहेश्वरी गुरुओं) के वंशज 'माहेश्वरी' ही है.

आम तौर पर इन्हें माहेश्वरी ब्राम्हण कहा जाता है. जब 'माहेश्वरी ब्राम्हण' इस शब्द का प्रयोग किया जाया है तो इसमें माहेश्वरी इस शब्द के लगने से ही यह प्रमाणित हो जाता है की वे माहेश्वरी ही है लेकिन कहीं कहीं इन्हें माहेश्वरी ब्राम्हण के बजाय मारवाड़ी ब्राम्हण भी कहा जाता है जिससे कुछ समाजबंधुओं को यह संदेह होता है की यह ब्राम्हण समाज तो मारवाड़ी ब्राम्हण है इन्हें केवल "माहेश्वरी" कैसे कहा जा सकता है. मारवाड़ यह राजस्थान के एक भूभाग का नाम है. मुग़ल काल व राजपूत शाषकों के समय से इस भूभाग को मारवाड़ के नाम से जाना जाने लगा. तथ्य बताते है की माहेश्वरी वंशोत्पत्ति इससे कई पूर्व में द्वापर युग के उत्तरार्ध में (अर्थात महाभारत काल) में हुई है, उस समय में राजस्थान को 'राजस्थान' के नाम से या राजस्थान के मारवाड़ को 'मारवाड़' नाम से जाना ही नहीं जाता था, बल्कि यह भूभाग मत्स्य देश (मत्स्य जनपद) के नाम से जाना जाता था. जब उस समय मारवाड़ ही नहीं था तो मारवाड़ी शब्द भी नहीं था. यह तो बाद में रहने के स्थान के नाम पर अस्तित्व में आया है. अर्थात जिन्हें हम मारवाड़ी ब्राम्हण कहते है वे मूलतः माहेश्वरी ही है. उपरोक्त वर्णित सात माहेश्वरी गुरुओं के वंशज (वर्तमान में जिनके उपनाम (सरनेम) पारीक, दायमा, दाधीच, व्यास आदि है) निःसंदेह रूप से माहेश्वरी है. इन्हें समाज के संगठनों में शामिल नहीं किया जाना यह अबतक की हुई बहुत बड़ी चूक है, इसे अविलम्ब दुरुस्त किया जाना चाहिए.

Happy Navratri to All


समस्त माहेश्वरीयों एवं देशवासियों को...
नवरात्री के पावन पर्व की बहुत-बहुत शुभकामनाएं... 

- शुभेच्छुक -
प्रेमसुखानंद माहेश्वरी महाराज
पीठाधिपति, माहेश्वरी अखाड़ा (दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा)

Radha and Krishna




आम तौर पर राधा और कृष्ण को प्रेम (Love) के प्रतिक के रूप में देखा जाता है लेकिन यथार्थ यह है की कृष्ण और राधा में केवल बाल्यावस्था की बालसुलभ मित्रता थी. भलेही आज हमारे देखने में राधा-कृष्ण की युवावस्था की प्रतिमा (मूर्ति) या चित्र (फोटो) आते हो लेकिन वास्तविकता यह है की कृष्ण और राधा की उनके युवा अवस्था में कभी मुलाकात तक नहीं हुई है. कृष्ण की अपनी 9 वर्ष की ऊम्र के बाद कृष्ण और राधा की कभी मुलाकात भी नहीं हुई और ना ही ऐसा कोई तथ्य है की कृष्ण ने राधा का कहीं जिक्र किया हो. श्रीमद भागवत में एक बार भी कही 'राधा' यह नाम, यह शब्द तक नहीं है.

दूसरी बात राधा किसी और की पत्नी थी, राधा कृष्ण की नहीं बल्कि किसी और की विवाहिता थी ऐसे में राधा-कृष्ण के बालसुलभ मित्रता को प्रेमी या पति-पत्नी की तरह के प्रेम के रूप में दिखाना या देखना ना सिर्फ राधा की बदनामी करना है बल्कि भगवान कृष्ण को भी चरित्रहीन ठहराना है. धर्मसंस्थापनार्थाय अवतार लेनेवाले भगवान श्री कृष्ण और राधा ('राधा' जो की कृष्ण की नहीं बल्कि किसी और की पत्नी है) को 'प्रेम' का प्रतिक बताना यह केवल गलत ही नहीं है बल्कि पाप है, अधर्म है. राधा को 'भक्ति' का प्रतिक माना जा सकता है, 'श्रद्धा' का प्रतिक माना जा सकता है लेकिन राधा और कृष्ण को 'प्रेम' (वैसा प्रेम जो विवाह से पूर्व में प्रेमी-पेमिका में होता है या जो प्रेम पति-पत्नी में होता है) का प्रतिक तो कतई नहीं माना जा सकता. राधा-कृष्ण के चित्र में ज्यादातर उन्हें ऐसे ही विवाह से पूर्व की प्रेमी-पेमिकावाले या पति-पत्नीवाले प्रेम के रूप में दिखाया जाता है. राधा-कृष्ण की मूर्ति में भी वह बाल्य-अवस्था के नहीं बल्कि 'युवा' दिखाते है जो की सर्वथा वास्तविकता से परे है.

संत मीरा बाई और राधा यह दोनों ही श्री कृष्ण के अनन्य भक्त थी लेकिन कृष्ण की समकालीन होने के कारन शायद राधा को कृष्ण की प्रेमिका के रूप में दिखाना, दिखानेवालों के लिए ज्यादा श्रेयस्कर रहा हो. भारत की संस्कृति में 'चरित्र' को बहुत महत्त्व दिया जाता रहा है और यही भारतीय संस्कृति के सनातन रहने का कारन है, 'चरित्र' ही है जो भारतीय संस्कृति का मजबूत स्तम्भ है. विवाह और परिवारवाली जीवनपद्धति भारतीय संस्कृति का आधारस्तम्भ रही है. शायद इसी आधारस्तम्भ को समाप्त करके पाश्चिमात्य जीवनपद्धति को भारत में फैलाकर भारत की संस्कृति को समाप्त करने की यह एक सोची-समझी साजिश ही लगती है.

भारतीय पौराणिक साहित्य में प्रेम को अनदेखा या दुर्लक्षित नहीं किया गया है. महादेव और पार्वती के प्रेम-प्रसंगो से पौराणिक साहित्य भरा पड़ा है. महादेव-पार्वती प्रेमी-प्रेमिका एवं पति-पत्नी के रूप में प्रेम के वैश्विक प्रतिक है, लेकिन महादेव-पार्वती का प्रेम भारतीय संस्कृति के अनुकूल है जिनके प्रेम की परिणीति विवाह है और राधा-कृष्ण का प्रेम जो दर्शाया जाता है वह पाश्चिमात्य संस्कृति की तरह लिव-इन-रिलेशनशिप की संकल्पना जैसा है. शायद इसीलिए महादेव-पार्वती के बजाय राधा-कृष्ण के प्रेम को महत्त्व दिया गया जिससे की भारतीय संस्कृति को तहस-नहस किया जा सके. राधा-कृष्ण का प्रेम (जो की कभी भी प्रेमी-प्रेमिका या पति-पत्नी जैसा प्रेम था ही नहीं) को प्रचारित कर के समाज में कौनसी धारणा का प्रसार किया जा रहा है? समाज को क्या सन्देश दिया जा रहा है?

राधा और कृष्ण को प्रेमी-प्रेमिका के आदर्श के रूप में स्थापित करना यह भारत की संस्कृति को तहस-नहस करने की साजिश -प्रेमसुखानंद माहेश्वरी