जाग जाये समाजबंधु, वर्ना मिट जायेगा माहेश्वरी समाज का अस्तित्व -प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी


सब कुछ है...
माहेश्वरी शिक्षित है,
तेजतर्रार है, कर्तबगार है,
संस्कारी है, समझदार है,
धनि है, दानी है, ज्ञानी है,
फिर भी...
माहेश्वरी समाज का वह रुतबा,
वह पहचान नहीं है जो होनी चाहिए थी.
क्यों? क्या कारण है?

क्योंकि....
- माहेश्वरी संगठित नहीं है,
- स्व-अस्मिता, स्वाभिमान नहीं है,
- अपने इतिहास की जानकारी नहीं है,
- अपने इतिहास पर नाज नहीं है,
- अपने माहेश्वरी होने पर नाज नहीं है,
- मार्गदर्शित करनेवाली धार्मिक व्यवस्था नहीं है,
- समस्त समाज का प्रतिनिधि कहलाये ऐसा कोई संगठन नहीं है,
- समाज के भविष्य के बारे में कोई योजना नहीं है,
- संगठनों का माहेश्वरी संस्कृति को बचाने पर ध्यान नहीं है,
- समाज की परम्पराओं को निभाया जाए इसपर ध्यान नहीं है,
- माहेश्वरी संस्कृति की जानकारी नई पीढ़ी को मिले ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है,
- समाज के गौरवचिन्हों की, समाज के गौरवस्थानों (समाज में जन्मे महापुरुषों) की समाज को जानकारी नहीं है, इसकी जानकारी समाज को दे ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, परिणामतः समाज के सामने कोई प्रेरणास्त्रोत नहीं है,
- समाज में एक-दूजे के प्रति कोई अपनापन नहीं है, समाज में वास्तविक एकता की कमी है; आगे बढ़ने-बढ़ाने के लिए एक-दूजे का भरपूर सहयोग करें इस भावना की कमी है,
- व्यापार-उद्योग में समाजबंधुओं को आपसी सहयोग का लाभ मिले, व्यापार-उद्योग में परंपरागत रूप से चला आया समाज का दबदबा (रुतबा) कायम रहे इसके लिए संगठनों के पास कोई दीर्घकालीन योजना, कोई ठोस कार्यक्रम, कोई स्थाई व्यवस्था  नहीं है.

इन मुख्य कारणों के अलावा अन्य भी कई कारन है. समाज के अस्तित्व को बचाने की, समाज के गौरव को बढ़ाने के लिए कार्य करने की, समाज एवं समाजजनों को प्रगति के पथ पर अग्रेसर करने की जिम्मेदारी सिर्फ संगठन की या सिर्फ समाजबंधुओं की नहीं है बल्कि दोनों मिलकर इस कार्य को करें तभी यह संभव हो सकता है. यह कार्य असंभव नहीं है बशर्ते समाजबंधु इसे ना केवल संगठन के भरोसे छोडे बल्कि अपना सक्रीय योगदान दे, अपना सक्रीय सहभाग प्रदान करें.

संगठन ने समाज के लिए कार्य करते हुए कुछ अच्छे कार्य किये है, कुछ कमियां भी रही है. हमने विगत 3-4 वर्षों में समाज की इन बातों को लेकर संगठन 'अ. भा. माहेश्वरी महासभा' से बात करने की कई बार कोशिश की लेकिन संगठन को बात करने में कोई रूचि नहीं है. हम अ. भा. माहेश्वरी महासभा से आग्रह करते है की समाजहित में वे अपने भूमिका को सकारात्मक बनावे. हमारा मानना है की समाज को आध्यात्मिक मार्गदर्शन करनेवाली संस्था और समाज के लिए सामाजिक कार्य करनेवाली संस्था यह समाज नामक रथ के 2 पहिये है. यह दोनों पहिये एकसाथ, एक दिशा में चले तो समाज को प्रगति पथ पर तेज गति से दौड़ने से कोई नहीं रोक सकता ! इसे समझा जाये की 'आध्यात्मिक संस्था' समाज की आत्मा होती है और 'सामाजिक संस्था' समाज का शरीर. बिना आत्मा के शरीर का कोई मूल्य नहीं है और बिना शरीर के आत्मा का कोई अर्थ नहीं है. जैसे शरीर के बिना आत्मा शून्य है और आत्मा के बिना शरीर 'शव' है वैसे ही आध्यात्मिक मार्गदर्शक संस्था के बिना समाज निष्प्राण हो जाता है, दिशाहीन हो जाता है, समाज में एक रिक्तता निर्माण हो जाती है; और बिना सामाजिक संस्था (संगठन) के समाज अक्रियाशील, कुछ भी करने में असमर्थ हो जाता है. समाजरूपी रथ को दौड़ने के लिए दोनों पहिये आवश्यक है. समाज के लिए 'मार्गदर्शन करनेवाली आध्यात्मिक संस्था' और 'कार्य करनेवाली सामाजिक संस्था' दोनों का समान महत्व है, दोनों आवश्यक है.

देश में तेजी से आर्थिक और सामाजिक बदलाव हो रहे है. यही समय है की भविष्य में माहेश्वरी समाज के अस्तित्व को, रुतबे को, माहेश्वरी संस्कृति को कायम रखने और बढ़ाने के लिए सभी को जाग जाना चाहिए. यही समय है की समाजबंधुओं की प्रगति को सुनिश्चित करने के लिए कार्य करने की दिशा में ठोस और स्थायी योजना बनाकर तत्परता से उसपर कार्य किया जाना चाहिए. समय किसी के लिए रुकता नहीं है, बाद में सिवाय पछतावे के बिना कुछ बचता नहीं है.

हमारे लिए यह संतोष की बात है की पिछले 3-4 वर्षों में समाज के कई कार्यकर्ता और अनेको समाजबंधुओं ने व्यक्तिगत रूप से समाज के इस कार्य में अपना अदभुत योगदान दिया है/दे रहे है. कुछ छोटे संगठन भी इस कार्य में अपना योगदान देते दिखाई दे रहे है लेकिन समाज के सबसे बड़े संगठन के ज्यादातर पदाधिकारी, वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता, समाज के चिंतक, समाज के बड़े बड़े लोग ना केवल दूर है बल्कि मौन धारण करके बैठे हुए है. महाभारतपर्व में, राजसभा में द्रौपदी के चीरहरण के समय भी भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, बड़े बड़े योद्धा, रथी-महारथियों ने मौन धारण किया था लेकिन बाद में महाभारत के धर्मयुद्ध में उन सबका क्या हश्र हुवा और इतिहास ने उन्हें कैसे भाषित किया यह हम सब जानते है, पितामह भीष्म को तो कई दिनों तक अपने मृत्यु की प्रतीक्षा करते शरशैया पर सोना पड़ा. आज समाज के अस्तित्व को बचाने के लिए, माहेश्वरी संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन के लिए, माहेश्वरी समाज के गौरव को पुनःस्थापित करने के लिए, समाज की सर्वांगीण प्रगति के लिए हम एक धर्मयुद्ध लड़ रहे है और इस समय संगठन के कुछ पदाधिकारी, ज्यादातर वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता, समाज के चिंतक, समाज के बड़े बड़े लोग मौन धारण करके बैठे हुए है, लेकिन इतिहास में इनका यह मौन भी दर्ज होगा. मुझे तो ना कुछ बनना है और ना ही कुछ पाना है लेकिन इतिहास में मेरा यह छोटासा योगदान जरूर दर्ज होगा. मेरे जीते जी भले ही ना किया जाये लेकिन मेरे जाने के 100-200 वर्षों के बाद इतिहास मुझे जरूर याद करेगा. भगवान महेशजी की असीम कृपा से मुझे अपना सम्पूर्ण जीवन माहेश्वरी समाज के लिए समर्पित करने का सुअवसर मिला यह मेरे लिए सौभाग्य की, गौरव की बात है.

मुझे विश्वास है की भगवान महेशजी और देवी महेश्वरी (पार्वती) द्वारा स्थापित यह महान माहेश्वरी संस्कृति, माहेश्वरी समाज देश-दुनिया में पुनः अपना परचम जरूर लहरायेगा. जैसे पहले के समय में माहेश्वरी समाज औरों के लिए मार्गदर्शक और प्रेरणादायक था वही गौरवपूर्ण स्थान पुनः पाने में समाज जरूर सफल होगा. जय महेश ! 

- प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी
(पीठाधिपति, माहेश्वरी अखाडा) 

2 comments:

  1. बहुत ही अच्छे विचार है जी ।

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  2. जय महेश जय माहेश्वरी .जो हो रहा सब भगवान् महेश्वर कि ृपा से हो रहा है

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