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Mahesh Navami Special | माहेश्वरी समाज की महेशाचार्य परंपरा | Adi Maheshacharya Maharshi Parashar | Maheshwari Samaj Ki Maheshacharya Parampara | Maheshacharya | Guru Purnima

Mahesh Navami and Guru Purnima Special - Maheshacharya tradition of the Maheshwari Community (in English & Hindi)


Maheshacharya (महेशाचार्य) is a religious title used for the peethadhipati of Divyshakti Yogpeeth Akhara (which is known as Maheshwari Akhada is famous). The word "Maheshacharya" is composed of two parts, Mahesha and Acharya. Acharya is a Sanskrit word meaning "teacher", so Maheshacharya means "teacher", who teaches the path shown by Lord Mahesha (Lord Shiva). Maheshacharya post/designation is the post of religious leadership of Maheshwari community. This post "Maheshacharya" is considered to be the most prestigious post of Maheshwari community. The title is derived from Adi Maheshacharya Maharshi Parashar (First Peethadhipati of Maheshwari Gurupeeth), the Maheshwari Gurus in the successive series of Gurus coming from his time are known as "Maheshacharya". The first Peethadhipati of Maheshwari Gurupeeth was Maharshi Parashar, hence Maharshi Parashar is "Adi Maheshacharya". Presently Yogi Premsukhanand Maheshwari is the Peethadhipati of Divyshakti Yogpeeth Akhara (Maheshwari Akhada) and Maheshacharya.



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महेशाचार्य यह माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च गुरुपीठ "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा (जो की 'माहेश्वरी अखाड़ा' के नाम से प्रसिद्ध है)" के आधिकारिक मुखिया के लिये प्रयोग की जाने वाली धार्मिक उपाधि है। महेशाचार्य शब्द दो भागों से बना है, महेश और आचार्य। आचार्य एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है "शिक्षक", इसलिए महेशाचार्य का अर्थ है "शिक्षक", जो भगवान महेश (भगवान शिव) द्वारा दिखाए गए मार्ग को सिखाते हैं। महेशाचार्य यह माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च धार्मिक नेतृत्व का पद है। यह उपाधि आदि महेशाचार्य महर्षि पराशर (माहेश्वरी गुरुपीठ के प्रथम पीठाधिपति) से ली गई है; उनके समय से चले आ रहे गुरुओं की क्रमिक श्रृंखला के गुरुओं को "महेशाचार्य" के नाम से जाना जाता है। माहेश्वरी गुरुपीठ के प्रथम पीठाधिपति महर्षि पराशर थे इसलिए महर्षि पराशर "आदि महेशाचार्य" है। वर्तमान में योगी प्रेमसुखानंद माहेश्वरी "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा (माहेश्वरी अखाड़ा)" के पीठाधिपति और महेशाचार्य हैं।




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माहेश्वरी अखाड़ा के पीठाधिपति होने के नाते महेशाचार्य के सभी गतिविधियों का मुख्य उद्देश्य भारत के विभिन्न क्षेत्रों और विश्व के किसी भी देश में बसनेवाले माहेश्वरी समाजजनों को एकता के सूत्र में बांधकर माहेश्वरी समाज के मूल सिद्धांत "सर्वे भवन्तु सुखिनः" को सार्थ करते हुए समाज को गौरव के सर्वोच्च शिखर पर स्थापित रखना है, कायम रखना होता है। महेशाचार्य प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी महाराज सनातन धर्म की रक्षा, माहेश्वरी संस्कृति और सांस्कृतिक पहचान, उसके मूल्यों और गौरव को बनाए रखने के लिए जी-जान से कार्यरत है। वो देशभर में समाजजनों से संवाद साधकर सामाजिक एकता, सुरक्षा, प्रगति, स्वास्थ्य, शिक्षा और मूल्यों का महत्व, गौ-रक्षा, महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण की समस्याएं और उनके समाधान पर संबोधित कर रहे हैं। वह 'दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा (माहेश्वरी अखाड़ा)' के माध्यम से एक सुशिक्षित, सुसंस्कृत, आत्मनिर्भर समाज बनाने, समाज और राष्ट्र की एकता को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से काम कर रहे हैं।

माहेश्वरी अखाड़ा (जिसका आधिकारिक नाम दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा है) माहेश्वरी समाज का सर्वोच्च धार्मिक गुरुपीठ है, माहेश्वरी समाज की शीर्ष/सर्वोच्च धार्मिक-आध्यात्मिक प्रबंधन संस्था है। वैसे तो माहेश्वरी गुरुपीठ की परंपरा 5000 वर्ष से भी ज्यादा पुरातन है। जब ईसवी सन पूर्व 3133 में, ज्येष्ठ शुक्ल नवमी के दिन भगवान महेश जी ने माहेश्वरी समाज की वंशोत्पत्ति/उत्पत्ति की थी, इसी दिन को माहेश्वरी समुदाय माहेश्वरी समाज के स्थापना दिवस के रूपमें तथा महेश नवमी के नाम से मनाता है। तब माहेश्वरी समुदाय के स्थापना के साथ साथ ही भगवान महेशजी ने माहेश्वरी समाज को मार्गदर्शित करने का दायित्व 6 गुरुओं (ऋषियों) को सौपा था; इन्ही 6 गुरुओं द्वारा माहेश्वरी गुरुपीठ परंपरा की शुरुआत की गई थी लेकिन समय चक्र में यह माहेश्वरी गुरुपीठ परंपरा विघटित हो गई। वर्ष 2008 में माहेश्वरी समाज के इस सर्वोच्च गुरुपीठ को कानूनी एवं आधिकारिक तौर पर "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा" के नाम से पुनः स्थापित किया गया। आधिकारिक स्थापना के समय इसका नाम "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा" दर्ज किया गया था, लेकिन यह "माहेश्वरी अखाड़ा" के नाम से प्रसिद्ध है, लोकप्रिय है। माहेश्वरी अखाड़ा (दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा) के पीठाधिपति "महेशाचार्य" की उपाधि से अलंकृत होते है। केवल माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च गुरुपीठ "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा" के अध्यक्ष (पीठाधिपति) ही "महेशाचार्य" की उपाधि से अलंकृत होने के अधिकारी है / आधिकारिक रूप से अधिकृत है।


संक्षेप में कहें तो, माहेश्वरी वंशोत्पत्ति इतिहास के अनुसार ऋषियों के शाप के कारन मृत/पत्थरवत पड़े हुए 72 क्षत्रिय उमरावों को भगवान महेशजी के वरदान से ऋषियों के शाप से मुक्ति मिली, नया जीवन मिला। नया जीवन देने के बाद, देवी पार्वती द्वारा अनुरोध करने पर भगवान महेशजी ने उन 72 क्षत्रिय उमरावों को वरदान देकर नया जीवन दिया था इसलिए महेशजी ने उन्हें देवी महेश्वरी (देवी पार्वती) के नाम पर, देवी महेश्वरी की छाप हमेशा उनपर रहे इसलिए "माहेश्वरी" यह एक नया नाम, नई पहचान भी दी। भगवान महेशजी ने उन्हें युद्धकर्म छोड़कर व्यापार कर्म करने का आदेश दिया। इसीके साथ लक्ष्मी-कुबेर भंडारी भगवान महेशजी ने माहेश्वरीयों को व्यापार में खूब तरक्की और बरकत का भी वरदान दिया। साथ ही माहेश्वरीयों/माहेश्वरी समाज को धर्म के मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शन करनेका दायित्व भगवान महेशजी ने ऋषि पराशर, सारस्वत, ग्वाला, गौतम, श्रृंगी, दाधीच इन छः (6) ऋषियों को सौपा (परंपरागत माहेश्वरी वंशोत्पत्ति चित्र/फोटो में उन 6 ऋषियों को बैठे हुए दिखाया गया है)। कालांतर में इन गुरुओं ने महर्षि भारद्वाज को भी माहेश्वरी गुरु पद प्रदान किया जिससे माहेश्वरी गुरुओं की संख्या सात हो गई जिन्हे माहेश्वरीयों में सप्तर्षि कहा जाता है। इन माहेश्वरी गुरुओं ने माहेश्वरी समाज के प्रबंधन और मार्गदर्शन का कार्य सुचारू रूप से चले इसलिए एक 'गुरुपीठ' को स्थापन किया जिसे "माहेश्वरी गुरुपीठ" कहा जाता था। गुरुपीठ के पीठाधिपति “महेशाचार्य” की उपाधि से अलंकृत थे, इसलिए उन्हें "महेशाचार्य" कहा जाता था। "महेशाचार्य" यह माहेश्वरी समाज का सर्वोच्च गुरु पद माना जाता था। इस माहेश्वरी गुरुपीठ के माध्यम से समाजगुरु माहेश्वरी समाज को मार्गदर्शित करते थे। गुरुओं ने गुरुपीठ के माध्यम से अपने कर्तव्य और जिम्मेदारी का निर्वाहन करते हुए माहेश्वरी समाज की "वे ऑफ़ लाइफ" के लिए एक आचारसंहिता और नियमावली को बनाया। समाज की विशिष्ठ पहचान कायम रहे इसलिए माहेश्वरी समाज का धार्मिक प्रतीकचिन्ह और ध्वज का सृजन किया, निर्माण किया। 72 उमरावों की नए नाम (सरनेम) से 72 खांपे बनाई। अगले कुछ वर्षों में इन्ही गुरुओं ने माहेश्वरी गुरुपीठ के तत्वावधान में अन्य समाज के पांच परिवारों को माहेश्वरी समाज में शामिल किया, माहेश्वरी बनाया। इससे माहेश्वरी खापों की संख्या 77 हो गई। वंशोत्पत्ति के बाद कुछ शतकों तक यह गुरुपीठ परंपरा चलती रही, लेकिन समय के प्रवाह में माहेश्वरी गुरुपीठ की यह परंपरा खंडित हो गई। इसी माहेश्वरी गुरुपीठ की खंडित हुई परंपरा को योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी ने वर्ष 2008 में कानूनी एवं आधिकारिक तौर पर "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा" के नाम से पुनः स्थापित किया है। धार्मिक विधाओं और रीती-रिवाजों के अनुसार आधिकारिक स्थापना के समय इसका नाम "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा" दर्ज किया गया था, लेकिन यह "माहेश्वरी अखाड़ा" के नाम से प्रसिद्ध है, लोकप्रिय है।

दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा (जो की "माहेश्वरी अखाड़ा" के नाम से प्रसिद्ध है) के मुखिया/पीठाधिपति के अतिरिक्त भी भारत में कुछ अन्य लोग "महेशाचार्य" पद लगाने वाले मिलते हैं जो माहेश्वरी समाज की परंपरागत परम्परानुसार नहीं बल्कि स्वैच्छिक हैं। वास्तविक/असली महेशाचार्य "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा (जो की 'माहेश्वरी अखाड़ा' के नाम से प्रसिद्ध है)" के पीठाधिपति पद पर आसीन को ही माना जाता है।

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माहेश्वरी समाज के धार्मिक नेतृत्व करनेवाले माहेश्वरी गुरुपीठ (माहेश्वरी अखाड़ा) की कार्य व्यवस्था-


माहेश्वरी उत्पत्ति कथा के अनुसार माहेश्वरीयों/माहेश्वरी समाज को धर्म के मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शन करनेका दायित्व भगवान महेशजी ने ऋषि पराशर, सारस्वत, ग्वाला, गौतम, श्रृंगी, दाधीच इन छः (6) ऋषियों को सौपा। कालांतर में इन गुरुओं ने महर्षि भारद्वाज को भी माहेश्वरी गुरु पद प्रदान किया जिससे माहेश्वरी गुरुओं की संख्या सात हो गई जिन्हे माहेश्वरीयों में सप्तर्षि कहा जाता है। इन सप्तगुरुओं ने माहेश्वरी समाज के प्रबंधन-मार्गदर्शन का कार्य सुचारू रूप से चले इसलिए एक 'गुरुपीठ' को स्थापन किया जिसे "माहेश्वरी गुरुपीठ" कहा जाता था। इस माहेश्वरी गुरुपीठ के इष्ट देव 'महेश परिवार' (भगवान महेश, पार्वती, गणेश आदि...) है। सप्तगुरुओं ने माहेश्वरी समाज के प्रतिक-चिन्ह 'मोड़' (जिसमें एक त्रिशूल और त्रिशूल के बीच के पाते में एक वृत्त तथा वृत्त के बीच ॐ (प्रणव) होता है) और ध्वज का सृजन किया। ध्वज को "दिव्य ध्वज" कहा गया। दिव्य ध्वज (केसरिया रंग के ध्वजा पर अंकित मोड़ का निशान) माहेश्वरी समाज की ध्वजा बनी। गुरुपीठ के पीठाधिपति “महेशाचार्य” की उपाधि से अलंकृत थे। महेशाचार्य- यह माहेश्वरी समाज का सर्वोच्च गुरु पद है। महर्षि पराशर माहेश्वरी गुरुपीठ के प्रथम पीठाधिपति है और इसीलिए महर्षि पराशर "आदि महेशाचार्य" है। अन्य ऋषियों को 'आचार्यश्रेष्ठ' इस अलंकरण से जाना जाता था। गुरुपीठ माहेश्वरीयों/माहेश्वरी समाज का सर्वोच्च आध्यात्मिक केन्द्र माना जाता था। माहेश्वरीयों से सम्बन्धीत किसी भी आध्यात्मिक-सामाजिक विवाद पर गुरुपीठ द्वारा लिया/किया गया निर्णय अंतिम माना जाता था।

कालांतर में गुरुपीठ के स्थायित्व के लिए सप्तगुरुओं द्वारा महेशाचार्य, महाचार्य, आचार्यश्रेष्ठ, आचार्य, समाचार्य, पुजारी/पुरोहित और गण की श्रेणियों को परिभाषित किया गया-

महेशाचार्य- महेशाचार्य माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च धार्मिक-आध्यात्मिक संस्था के मुखिया के लिये प्रयोग की जाने वाली उपाधि है। महेशाचार्य माहेश्वरी समाज में सर्वोच्च समाज गुरु (धर्म गुरु) का पद है।

महाचार्य- माहेश्वरी गुरुपीठ के पीठाधिपति (महेशाचार्य) द्वारा घोषित उनका उत्तराधिकारी।

आचार्यश्रेष्ठ- पीठाधिपति (महेशाचार्य) और महाचार्य के आलावा अन्य पांच माहेश्वरी गुरु। ये पीठाधिपति के सलाहकार मंडल के रूप में कार्य करते है।

आचार्य- अपने अध्ययन, ज्ञान, अनुभव और कार्य के आधारपर समाज के लिए आवश्यक एवं उपयोगी भिन्न-भिन्न विषयों पर समाज को मार्गदर्शित करने का कार्य करते है।

समाचार्य- किसी विशेष विषय के अपने अध्ययन, ज्ञान, अनुभव और कार्य के आधारपर समाज के लिए समय-समयपर आवश्यक एवं उपयोगी मार्गदर्शन करनेवालें समाचार्य (आचार्य के समान) है।

पुजारी/पुरोहित- मिन्दरों में, यजमान के घर, व्यावसायिक स्थान पर अथवा तीर्थस्थान पर यजमान के लिए पूजा-अर्चनादि विधियों को संपन्न करनेवाले।

गण- गण अर्थात शिष्य अथवा दूत। गण अर्थात किसी समान उद्देश्य वाले लोगों का समूह (यहाँ पर माहेश्वरी वंश के (समस्त जनसामान्य) लोगों के लिए 'गण' शब्द का प्रयोग किया गया है)।

गुरुपीठ ने विधान बनाया की कोई भी ब्राम्हर्षि/माहेश्वरी, गुरुपीठ द्वारा निर्धारित विधि के अनुसार, अपने अध्ययन, ज्ञान, अनुभव, कार्य और सदाचार के आधारपर महाचार्य, आचार्यश्रेष्ठ, आचार्य, समाचार्य अथवा पुजारी/पुरोहित बन सकता है। गुरुपीठ ने महेशाचार्य, महाचार्य, आचार्यश्रेष्ठ और आचार्य को गुरु की श्रेणी में और अन्य सभी को शिष्य की श्रेणी में रखा। समाज को अनवरत मार्गदर्शन प्राप्त होता रहे इसलिए यह समाज के लिए किया गया बहुत बड़ा, ऐतिहासिक एवं शाश्वत कार्य है।

कई शतकों तक गुरु मार्गदर्शित व्यवस्था बनी रही। तथ्य बताते है की प्रारंभ में 'गुरुमहाराज' द्वारा बताई गयी नित्य प्रार्थना, वंदना (महेश वंदना), नित्य अन्नदान, करसेवा, गो-ग्रास आदि नियमोंका समाज कड़ाई से पालन करता था। फिर मध्यकाल में भारत के शासन व्यवस्था में भारी उथल-पुथल तथा बदलाओंका दौर चला। दुर्भाग्यसे जिसका असर माहेश्वरीयों की सामाजिक व्यवस्थापर भी पड़ा और जाने-अनजाने में माहेश्वरी समाज के लोग अपने गुरुपीठ और गुरूओं को भूलते चले गए जिससे स्वयं भगवान महेशजी ने माहेश्वरी समाज को उचित मार्गदर्शन करने के लिए बनाई हुई व्यवस्था (माहेश्वरी समाजगुरु की व्यवस्था) ही समाप्त हो गई। जिसके कारन- समाज के गुरुओं द्वारा समाज को मिलनेवाले धार्मिक-आध्यात्मिक मार्गदर्शन के आभाव में समाज का बड़ा नुकसान हो रहा था, समाज की बहुत बड़ी क्षति हो रही थी, दुर्गति हो रही थी। समाज का धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक ढांचा बिखरता जा रहा था।

काल के प्रवाह में माहेश्वरी समाज को मार्गर्दर्शित करनेवाली इस खंडित हुई माहेश्वरी गुरुपीठ और माहेश्वरी समाजगुरु की प्रभावी व्यवस्था को योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी महाराज ने वर्ष 2008 में दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा (जो की 'माहेश्वरी अखाड़ा' के नाम से प्रसिद्ध हुवा है) के नाम से, धार्मिक विधाओं एवं रीति-रिवाजों और सरकारी कानून के तहत आधिकारिक रूप से पुनर्स्थापित करके समस्त माहेश्वरी समाज को धार्मिक/आध्यात्मिक/सांस्कृतिक मार्गदर्शन करनेवाली व्यवस्था को पुनः सुचारु किया है, कायम किया है। इसके माध्यम से माहेश्वरी समाज को मार्गदर्शित करनेवाली एक आधिकारिक व्यवस्था पुनः क्रियान्वित हुई है, जिसका एक बहुत अच्छा लाभ समाज को देखने को मिल रहा है। माहेश्वरी अखाड़ा के पीठाधिपति एवं महेशाचार्य द्वारा समाजजनों के साथ मिलकर किए जा रहे प्रयासों के कारण माहेश्वरी संस्कृति का पुनरुत्थान हो रहा है, समाज और समाजजनों में माहेश्वरी अस्मिता और आत्मसम्मान की भावना जागृत हो रही है; अपने माहेश्वरी समाज की संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन और प्रचार-प्रसार के बारे में जागृति दिखाई दे रही है। यह निश्चित रूप से भविष्य के लिए एक शुभ संकेत है।



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Chandrayaan-3's Touchdown Point To Be Called ShivShakti, August 23 - National Space Day: PM Modi

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Chandrayaan-3 Vikram Lander landed successfully on the moon's south pole.

The spot on the Moon where Chandrayaan-3's lander Vikram touched down will be known as 'ShivShakti Point', Prime Minister Narendra Modi announced while addressing the scientists of ISRO in Bengaluru.

The PM Modi said also that the date of Chandrayaan-3 landing - August 23 - will be celebrated as National Space Day.

Happy National Space Day To all.

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"शिवशक्ति" के नाम से जाना जाएगा चंद्रयान-3 का लैंडिंग प्वाइंट

बेंगलुरु में इसरो टेलीमेट्री ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क मिशन कंट्रोल कॉम्प्लेक्स में इसरो वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक अहम घोषणा की. पीएम मोदी ने कहा कि जिस स्थान पर चंद्रयान-3 का मून लैंडर उतरा है, उस स्थान को 'शिवशक्ति' के नाम से जाना जाएगा. पीएम मोदी ने आगे कहा कि चंद्रमा के जिस स्थान पर चंद्रयान-2 ने अपने पदचिन्ह छोड़े हैं, वो प्वाइंट अब “तिरंगा” कहलाएगा.

इसके साथ ही एक और अहम ऐलान करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि 23 अगस्त को जब भारत ने चंद्रमा पर तिरंगा फहराया उस दिन को अब ‘National Space Day’ के रूप मे मनाया जाएगा.

समस्त समाजबंधुओं एवं देशवासियों को 'भारतीय अंतरिक्ष दिवस' की हार्दिक शुभकामनाएं !

जय हिन्द, जय महेश !

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Mahesh Navami 2022

प्रतिवर्ष, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को "महेश नवमी" का उत्सव मनाया जाता है. "महेश नवमी" यह माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिवस है अर्थात इसी दिन माहेश्वरी समाज की वंशोत्पत्ति (माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति) हुई थी. इसीलिए इस दिन को माहेश्वरी समाज के स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है.


मान्यता है कि, भगवान महेश और आदिशक्ति माता पार्वति ने ऋषियों के शाप के कारन पत्थरवत् बने हुए 72 क्षत्रिय उमराओं को युधिष्ठिर संवत 9 ज्येष्ठ शुक्ल नवमी के दिन शापमुक्त किया और नया जीवन देते हुए कहा की, "आज से तुम्हारे वंशपर (धर्मपर) हमारी छाप रहेगी, तुम “माहेश्वरी’’ कहलाओगे". भगवान महेशजी के आशीर्वाद से नया जीवन और "माहेश्वरी" नाम प्राप्त होने के कारन तभी से माहेश्वरी समाज ज्येष्ठ शुक्ल नवमी को "महेश नवमी" के नाम से 'माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिवस (माहेश्वरी समाज स्थापना दिवस)' के रूप में मनाता है. भगवान महेश और देवी महेश्वरी (माता पार्वती) की कृपा से माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई इसलिए भगवान महेश और देवी महेश्वरी को माहेश्वरी समाज के संस्थापक मानकर माहेश्वरी समाज में यह दिन 'महेश नवमी' के नामसे बहुत ही भव्य रूप में और बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है. महेश नवमी का पर्व मुख्य रूप से भगवान महेश (महादेव) और माता पार्वती की आराधना को समर्पित है, उनके द्वारा बताये गए जीवनमार्ग एवं सिद्धांतों पर जीवन जीने के संकल्प के प्रति समर्पित

ईसापूर्व 3133 में माहेश्वरी समाज की स्थापना के साथ ही माहेश्वरी समाज को मार्गदर्शित करने के लिए भगवान महेशजी ने माहेश्वरी समाज को "गुरु" प्रदान किये, समाजगुरु बनाये. इन गुरुओं ने माहेश्वरी समाज के लिए कुछ व्यवस्थाएं और कुछ नियम भी बनाए थे. हरएक माहेश्वरी का कर्तव्य है, अनिवार्य दायित्व है कि वो गुरु के बनाए व्यवस्था व नियमों का पालन करे, महेश नवमी का दिन है इस बात के दृढ़संकल्प को दोहराने का ! महेश नवमी का दिन है माहेश्वरी समाज द्वारा अपने समाज के पालक-संरक्षक भगवान महेशजी के प्रति विशेष आभार प्रकट करने का ! भगवान महेशजी, आदिशक्ति माता पार्वती और गुरुओं द्वारा दिखाए-बताये मार्ग पर चलते रहने के प्रति प्रतिबद्धता प्रकट करने का ! अपने आचार-विचार से सम्पूर्ण विश्व के मानव जाती के सामने एक सही जीवनपद्धति सादर करने के जिस महान उद्देश्य से भगवान महेशजी ने माहेश्वरी वंश का, माहेश्वरी समाज का निर्माण किया उस उद्देश्य की पूर्ति में लगे रहने का, समर्पित रहने का !


Mahesh Navami is a Maheshwari festival which is celebrated as a celebration of the origin of the Maheshwari community. As per traditional Indian calendar, the Mahesh Navami is observed on the ninth day of the Shukla Paksha in the month of Jyeshta.

The festival of Mahesh Navami is dedicated primarily to the worship of Lord Mahesh (Mahadev) and Mata Parvati, dedicated to the determination of living life on the paths and principles given by them.


Guru Purnima Special | Guru Purnima Date | Maheshwari Samaj ki Maheshwari Gurupeeth Evam Maheshacharya Parampara | Wish you a very Happy Guru Purnima! | Adi Maheshacharya

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आदि महेशाचार्य महर्षि पराशर के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम !


Guru is the bridge built to connect the Soul with God (Jeev with Shiv) and the job of the Guru is to show the right destination and right path to the disciple. The bridge that takes one to the destination or from one side to the other (like from darkness to light, from ignorance to knowledge, from problem to solution) is Guru. Without the blessings and guidance of the Guru, even the Gods cannot attain divinity, cannot maintain their divinity. On the auspicious occasion of Guru Purnima, respectful greetings to all the Gurus of the universe!


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माहेश्वरी उत्पत्ति कथा के अनुसार भगवान महेशजी ने महर्षि पराशर, सारस्‍वत, ग्‍वाला, गौतम, श्रृंगी, दाधीच इन छः (6) ऋषियों को माहेश्वरीयों का गुरु बनाया और उनपर माहेश्वरीयों/माहेश्वरी समाज को धर्म के मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शन करनेका दायित्व सौपा। इन्हे गुरुमहाराज के नाम से जाना जाने लगा। कालांतर में इन गुरुओं ने ऋषि भरद्वाज को भी माहेश्वरी गुरु पद प्रदान किया जिससे माहेश्वरी गुरुओं की संख्या सात (7) हो गई जिन्हे माहेश्वरीयों में सप्तर्षि कहा जाता है। सात गुरु योग के 7 अंगों का प्रतीक हैं, 8वां अंग साक्षात् भगवान महेशजी का प्रतिक मोक्ष है। गुरुमहाराज माहेश्वरी समाज का ही (एक) अंग है।


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सप्तगुरुओं ने माहेश्वरी समाज के प्रबंधन-मार्गदर्शन का कार्य सुचारू रूप से चले इसलिए एक 'गुरुपीठ' को स्थापन किया था जिसे "माहेश्वरी गुरुपीठ" कहा जाता था। इस माहेश्वरी गुरुपीठ के इष्ट देव 'महेश परिवार' (भगवान महेश, पार्वती, गणेश आदि...) है। सप्तगुरुओं ने माहेश्वरी समाज के प्रतिक-चिन्ह 'मोड़' (जिसमें एक त्रिशूल और त्रिशूल के बीच के पाते में एक वृत्त तथा वृत्त के बीच ॐ (प्रणव) होता है) और ध्वज का सृजन किया। ध्वज को "दिव्य ध्वज" कहा गया। दिव्य ध्वज (केसरिया रंग के ध्वजा पर अंकित मोड़ का निशान) माहेश्वरी समाज की ध्वजा बनी। गुरुपीठ के पीठाधिपति “महेशाचार्य” की उपाधि से अलंकृत थे। महेशाचार्य- यह माहेश्वरी समाज का सर्वोच्च गुरु पद है। महर्षि पराशर माहेश्वरी गुरुपीठ के प्रथम पीठाधिपति है और इसीलिए महर्षि पराशर आदि महेशाचार्य है। अन्य ऋषियों को 'आचार्य' इस अलंकरण से जाना जाता था। गुरुपीठ माहेश्वरीयों/माहेश्वरी समाज का सर्वोच्च आध्यात्मिक केन्द्र माना जाता था। माहेश्वरीयों से सम्बन्धीत किसी भी आध्यात्मिक-सामाजिक विवाद पर गुरुपीठ द्वारा लिया/किया गया निर्णय अंतिम माना जाता था।


आदि महेशाचार्य महर्षि पराशर 

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महाभारत काल में एक महान ऋषि हुए, जिन्हें महर्षि पराशर के नाम से जाना जाता हैं। महर्षि पराशर मुनि शक्ति के पुत्र तथा वसिष्ठ के पौत्र थे। ये महाभारत ग्रन्थ के रचयिता महर्षि वेदव्यास के पिता थे (पराशर के पुत्र होने के कारन कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास को ‘पाराशर’ के नाम से भी जाना जाता है)। पराशर की परंपरा में आगे वेदव्यास के शुकदेव, शुकदेव के गौड़पादाचार्य, गौड़पादाचार्य के गोविंदपाद, गोविंदपाद के शंकराचार्य (आदि शंकराचार्य) हुए। सबके सब आदिशक्ति माँ भगवती के उपासक रहे है। महर्षि पराशर प्राचीन भारतीय ऋषि मुनि परंपरा की श्रेणी में एक महान ऋषि हैं। योग सिद्दियों के द्वारा अनेक महान शक्तियों को प्राप्त करने वाले महर्षि पराशर महान तप, साधना और भक्ति द्वारा जीवन के पथ प्रदर्शक के रुप में सामने आते हैं। इनका दिव्य जीवन अत्यंत आलोकिक एवम अद्वितीय हैं। महर्षि पराशर के वंशज पारीक कहलाए।

महर्षि पराशर ने धर्म शास्त्र, ज्योतिष, वास्तुकला, आयुर्वेद, नीतिशास्त्र विषयक ज्ञान मानव मात्र को दिया। उनके द्वारा रचित ग्रन्थ “व्रह्त्पराषर, होराशास्त्र, लघुपराशरी, व्रह्त्पराशरी, पराशर स्मृति (धर्म संहिता), पराशरोदितं, वास्तुशास्त्रम, पराशर संहिता (आयुर्वेद), पराशर नीतिशास्त्र आदि मानव मात्र के कल्याण के लिए रचित ग्रन्थ जग प्रसिद्ध हैं। महर्षि पराशर ने अनेक ग्रंथों की रचना की जिसमें से ज्योतिष के उपर लिखे गए उनके ग्रंथ बहुत ही महत्वपूर्ण रहे। कहा जाता है कि कलयुग में पराशर के समान कोई ज्योतिष शास्त्री अब तक नहीं हुए। यद्यपि महर्षि पराशर ज्योतिष ज्ञान के कारन प्रसिद्ध है लेकिन इससे भी बढ़कर उनका कार्य है की, उन्होंने धर्म की स्थापना के लिए अथक प्रयास किया।

द्वापर युग के उत्तरार्ध में (जिसे महाभारतकाल कहा जाता है) धर्म की स्थापना के लिए दो महान व्यक्तित्वों ने प्रयास किये उनमें एक है श्रीकृष्ण और दूसरे है महर्षि पराशर। श्रीकृष्ण ने शस्त्र के माध्यम से और महर्षि पराशर ने शास्त्र के माध्यम से धर्म की स्थापना के लिए प्रयास किया। तत्कालीन शास्त्रों में उल्लेख मिलते है की धर्म की स्थापना के लिए महर्षि पराशर ने अथक प्रयास किये, वे कई राजाओं से मिले, उनके इस प्रयास से कुछ लोग नाराज हुए, महर्षि पराशर पर हमले किये गए, उन्हें गम्भीर चोटें पहुंचाई गई। महर्षि पराशर द्वारा रचित "पराशर स्मृति" (धर्म संहिता), उनके धर्म स्थापना के इसी प्रयासों में से किया गया एक प्रमुख कार्य है।

पराशर स्मृति- ग्रन्थों में वेद को श्रुति और अन्य ग्रंथों को स्मृति की संज्ञा दी गई है। ग्रन्थों में स्मृतियों का भी ऐतिहासिक महत्व है। प्रमुख रूप से 18 स्मृतियां मानी गई है। मनु, विष्णु, याज्ञवल्क्य, नारद, वृहस्पति, गौतम, शंख, पराशर आदि की स्मृतियाँ प्रसिद्ध हैं जो धर्म शास्त्र के रूप में स्वीकार की जाती हैं। स्मृतियों को धर्मशास्त्र भी कहा जाता है। 12 अध्यायों में विभक्त पराशर-स्मृति के प्रणेता वेदव्यास के पिता महर्षि पराशर हैं, जिन्होंने चारों युगों की धर्मव्यवस्था को समझकर सहजसाध्य रूप धर्म की मर्यादा निर्दिष्ट (निर्देशित) की है। पराशर स्मृति में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यह स्मृति कृतयुग (कलियुग) के लिए प्रमाण है, गौतम लिखित त्रेता के लिए, शंखलिखित स्मृति द्वापर के लिए और पराशर स्मृति कलि (कलियुग) के लिए। महर्षि पराशर अपने एक सूत्र में कहते है की- ज्योतिष, धर्म और आयुर्वेद एक-दूसरे में पूर्णत: गुंथे हुए हैं (Future, Religion and Health are completely interconnected -Adi Maheshacharya Maharshi Parashar)।

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Seth means Maheshwari people. "सेठ" अर्थात माहेश्वरी


'सेठ' उपाधि सिर्फ माहेश्वरीयों के लिए प्रयुक्त होती है,
जैसे सरदार सिर्फ सिखों के लिए प्रयुक्त होनेवाली उपाधि है।

यह 100% सत्य बात है, क्योंकी माहेश्वरी उत्पत्ति (वंशोत्पत्ति) के समय भगवान महेशजी ने ऋषियों के श्राप से पत्थरवत बने हुए 72 उमरावों को शापमुक्त करके नवजीवन देकर "माहेश्वरी" यह नया नाम देते हुए कहा था की आप जगत में "श्रेष्ठ" कहलाओगे... आगे चलकर इसी श्रेष्ठ शब्द का अपभ्रंश होकर "सेठ" कहा जाने लगा। अर्थात माहेश्वरीयों को "सेठ" गरीबी-अमीरी के आधारपर नहीं बल्कि माहेश्वरी उत्पत्ति के समय भगवान महेशजी द्वारा दिए वरदान के कारन कहा जाता है, श्रेष्ठ होने के कारन कहा जाता है।

हम माहेश्वरीयों को लोग सेठ अथवा सेठ सा क्यों बोलते है... क्योंकि वो हमारी इज़्ज़त करते है, हमारे माहेश्वरी वंश के वारिस होने की इज़्ज़त करते है। तो हम माहेश्वरीयों का भी दायित्व है की हमें लोगों द्वारा दी जानेवाली इज्जत और सम्मान को हम बरकरार रखें। हम अपना आचरण, रहन-सहन, वाणी, व्यवहार, विचार एवं खानपान ठीक वैसा ही रखें जिसके कारन लोग हम माहेश्वरीयों की इज्जत करते है, हम माहेश्वरीयों को "सेठ" बोलते है।


माहेश्वरी इतिहास के आधुनिक इतिहासकार — योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी | Modern Historian of Maheshwari History — Yogi Premsukhanand Maheshwari | Book : Maheshwari Utpatti Evam Sankshipt Itihas | Mahesh Navami

| साभार- पाक्षिक पत्रिका 'माहेश्वरी एकता', महेश नवमी - 2019 विशेषांक |


While working away from fame and respect, Maheshacharya Premsukhanand Maheshwari is continuously engaged in the work of social, cultural and organizational revival of Maheshwari community. Many thanks to the fortnightly news magazine Maheshwari Ekta and its editorial board for taking cognizance of this about twelve years work of Yogi Premsukhanandji! Heartfelt gratitude!!!

प्रसिद्धि से, मान-सम्मान से दूर रहकर कार्य करते हुए योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी लगातार माहेश्वरी समाज के सामाजिक, सांस्कृतिक, संगठनात्मक पुनरुत्थान के कार्य में लगे हुए है। योगी प्रेमसुखानन्दजी के इस एक तप के कार्य का संज्ञान लेने पर पाक्षिक समाचार पत्रिका "माहेश्वरी एकता" और उनके संपादक मंडल को अनेकानेक साधुवाद ! मनःपूर्वक आभार !!!

– एस. बी. लोहिया (ट्रस्टी व प्रवक्ता, माहेश्वरी अखाड़ा)

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माहेश्वरी - उत्पत्ति एवं संक्षिप्त इतिहास नामक यह पुस्तक कई माहेश्वरीयों की आंखें खोलने वाली पुस्तक (Book) है, फिर वो माहेश्वरी भारत में रहनेवाले हों या विदेशों में। यह पुस्तक माहेश्वरी इतिहास, दर्शन और संस्कृति का एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करती है, जैसा कि माहेश्वरी समुदाय (माहेश्वरी समाज) और माहेश्वरी संस्कृति की रक्षा के लिए लड़ने वाले एक माहेश्वरी की नजर से देखा गया है। इस पुस्तक को व्यापक रूप से माहेश्वरी इतिहास पर बेहतरीन आधुनिक कार्यों में से एक माना जाता है। "माहेश्वरी - उत्पत्ति एवं संक्षिप्त इतिहास" पुस्तक "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा (जो माहेश्वरी अखाड़ा के नाम से प्रसिद्ध है)" के पीठाधिपति एवं महेशाचार्य योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी द्वारा लिखी गई है।

हरएक माहेश्वरी को इस बारे में जानकारी होनी ही चाहिए की अपने समाज की उत्पत्ति कब हुई? कैसे हुई? किसने की? क्यों की? अपने समाज का इतिहास क्या है? इसकी जानकारी होगी तभी तो वह जान पायेगा की वह कितने गौरवशाली तथा सम्मानित समाज का अंग है, उसके समाज का इतिहास कितना गौरवपूर्ण और वैभवशाली है। इसे जानने के लिए योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी द्वारा लिखित यह पुस्तक "माहेश्वरी - उत्पत्ति एवं संक्षिप्त इतिहास" आपकी बहुत मदत करती है। प्रेमसुखानंद माहेश्वरी द्वारा लिखित पुस्तक, "माहेश्वरी - उत्पत्ति एवं संक्षिप्त इतिहास" महेश नवमी - 2014 पर प्रकाशित हुई है। इस पुस्तक को पढ़कर आपको जरूर आनंद, ख़ुशी और गर्व की अनुभूति होगी।

"माहेश्वरी - उत्पत्ति एवं संक्षिप्त इतिहास" पुस्तक के कुछ मुख्य अंशों को पढ़ने के लिए इस Link पर click / touch कीजिये > The Book, Maheshwari Origin And Brief History | Author - Yogi Premsukhanand Maheshwari | माहेश्वरी उत्पत्ति और संक्षिप्त इतिहास, योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी द्वारा लिखित पुस्तक

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योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी (पीठाधिपति, माहेश्वरी अखाड़ा) माहेश्वरी समाज के इतिहास के शोधकर्ता, लेखक एवं इतिहासकार हैं। महेशाचार्य योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी महाराज माहेश्वरी समाज के सबसे प्रसिद्ध इतिहासकारों, शोधकर्ताओं और लेखकों में से एक हैं। उन्हें माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति और प्राचीन माहेश्वरी इतिहास पर शोध में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए जाना जाता है। प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी ना केवल माहेश्वरी समाज के इतिहास के एक शोधकर्ता, लेखक और इतिहासकार हैं; बल्कि माहेश्वरी अखाड़े के पीठाधिपति और महेशाचार्य के रूप में माहेश्वरी समाज और माहेश्वरी संस्कृति के "संरक्षक" के रूप में भी जाने जाते हैं।


महेशाचार्य योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी ने भारतभर में लगभग 150 योग एवं स्वास्थ्य शिबिरों का सफलतापूर्वक सञ्चालन किया है। उन्होंने छात्रों / विद्यार्थियों की बुद्धिमत्ता को और अधिक निखारने में योग की भूमिका पर एक दिवसीय (देढ़ घंटा) के कई सेमिनार लिए है, जिससे छात्रों को खुदको तनावमुक्त रख सकने में भी लाभ मिला है।

प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी महाराज के सभी गतिविधियों का मुख्य उद्देश्य भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बसनेवाले माहेश्वरी समाजजनों को एकता के सूत्र में बांधकर माहेश्वरी समाज के मूल सिद्धांत "सर्वे भवन्तु सुखिनः" को सार्थ करते हुए समाज को गौरव के सर्वोच्च शिखर पर पुनःस्थापित करना है। प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी, माहेश्वरी संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन, स्वास्थ्य, तनावमुक्त जीवन आदि विषयोंपर व्याख्यान देनेका कार्य कर रहे हैं। योगी प्रेमसुखानन्दजी लगातार सनातन धर्म और माहेश्वरी संस्कृति के प्रचार-प्रसार तथा माहेश्वरी समाज के पुनरुत्थान के लिए कार्य कर रहे हैं।

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