माहेश्वरीयों की विशेष पहचान, 'ऋषि पंचमी' को रक्षाबंधन | Raksha Bandhan on Rishi Panchami, This Tradition is related to Origin Day of Maheshwari Community, Day of Mahesh Navami | Rakshabandhan | Rakhi

Unique identification of Maheshwaris,
Raksha Bandhan on the day of Rishi Panchami.

आम तौरपर भारत में रक्षाबंधन का त्योंहार श्रावण पूर्णिमा (नारळी पूर्णिमा) को मनाया जाता है लेकिन माहेश्वरी समाज (माहेश्वरी गुरुओं के वंशज जिन्हे वर्तमान में छः न्याति समाज के नाम से जाना जाता है अर्थात पारीक, दाधीच, सारस्वत, गौड़, गुर्जर गौड़, शिखवाल आदि एवं डीडू माहेश्वरी, थारी माहेश्वरी, धाटी माहेश्वरी, खंडेलवाल माहेश्वरी आदि माहेश्वरी समाज) में रक्षा-बंधन का त्यौहार ऋषिपंचमी के दिन मनाने की परंपरा है. इस परंपरा का सम्बन्ध माहेश्वरी वंशोत्पत्ति से जुड़ा हुवा है.


विदित रहे की माहेश्वरी समाज में पीढ़ी दर पीढ़ी ऋषि पंचमी के दिन रक्षाबंधन (राखी) का त्योंहार मनाने की परंपरा चली आई है. एक मान्यता यह है की जब माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई तब जो माहेश्वरी समाज के गुरु थे जिन्हें ऋषि कहा जाता था उनके द्वारा विशेष रूप से इसी दिन रक्षासूत्र बांधा जाता था इसलिए इसे 'ऋषि पंचमी' कहा जाता है. रक्षासूत्र मौली के पचरंगी धागे से बना होता था और उसमें सात गांठे होती थी. वर्तमान समय में इसी रक्षासूत्र ने राखी का रूप ले लिया है और इसे बहनों द्वारा बांधा जाता है.

प्राचीनकाल में शुभ प्रसंगों में, प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन तथा 'ऋषि पंचमी' के दिन गुरु अपने शिष्यों के हाथ पर, पुजारी और पुरोहित अपने यजमानों के हाथ पर एक सूत्र बांधते थे जिसे रक्षासूत्र कहा जाता था, इसे ही आगे चलकर राखी कहा जाने लगा. वर्तमान समय में भी रक्षासूत्र बांधने की इस परंपरा का पालन हो रहा है.

आम तौर पर यह रक्षा सूत्र बांधते हुए ब्राम्हण "येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।" यह मंत्र कहते है जिसका अर्थ है- "दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूं. हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो" लेकिन तत्थ्य बताते है की माहेश्वरी समाज में रक्षासूत्र बांधते समय जो मंत्र कहा जाता था वह है-
स्वस्त्यस्तु ते कुशलमस्तु चिरायुरस्तु,
विद्याविवेककृतिकौशलसिद्धिरस्तु।
ऐश्वर्यमस्तु विजयोऽस्तु गुरुभक्ति रस्तु,
वंशे सदैव भवतां हि सुदिव्यमस्तु।।
(अर्थ- आप सदैव आनंद से, कुशल से रहे तथा दीर्घ आयु प्राप्त करें. विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि प्राप्त करें. ऐश्वर्य व सफलता को प्राप्त करें तथा गुरु भक्ति बनी रहे. आपका वंश सदैव दिव्य गुणों को धारण करनेवाला बना रहे. इसका सन्दर्भ भी माहेश्वरी उत्पत्ति कथा से है. माहेश्वरी उत्पत्ति कथा में वर्णित कथानुसार, निष्प्राण पड़े हुए उमरावों में प्राण प्रवाहित करने और उन्हें उपदेश देने के बाद महेश-पार्वती अंतर्ध्यान हो गये. उसके पश्चात ऋषियों ने सभी को "स्वस्त्यस्तु ते कुशलमस्तु चिरायुरस्तु...." मंत्र कहते हुए सर्वप्रथम (पहली बार) रक्षासूत्र बांधा था. माना जाता है की यही से माहेश्वरी समाज में रक्षासूत्र (रक्षाबंधन या राखी) बांधने की शुरुवात हुई. उपरोक्त रक्षामंत्र भी मात्र माहेश्वरी समाज में ही प्रचलित था/है. गुरु परंपरा के ना रहने से तथा माहेश्वरी संस्कृति के प्रति समाज की अनास्था के कारन यह रक्षामंत्र लगभग विस्मृत हो चला है लेकिन माहेश्वरी संस्कृति और पुरातन परंपरा के अनुसार राखी को बांधते समय इसी मंत्र का प्रयोग किया जाना चाहिए.


कुछ माहेश्वरी समाजबंधु रक्षाबंधन का पर्व माहेश्वरी परंपरा के अनुसार "ऋषि पंचमी" को मनाने के बजाय श्रावण पूर्णिमा को ही मना रहे है तो कुछ समाजबंधु यह पर्व मनाते तो ऋषि पंचमी के हिसाब से ही है लेकिन अपनी सुविधा के अनुसार 2-4 दिन आगे-पीछे रक्षाबंधन कर लेते है जो की उचित नहीं है. शास्त्रों और परम्पराओं के अनुसार कुछ विशेष दिनों का, कुछ विशेष स्थानों का अपना एक महत्व होता है. दीवाली 'दीवाली' के दिन ही मनाई जाती है, किसी दूसरे दिन नहीं. क्या अपनी सुविधा के अनुसार 'गुढी' गुढीपाडवा के बजाय 2-4 दिन आगे-पीछे लगाई (उभारी) जाती है? तो रक्षाबंधन ऋषिपंचमी के दिन के बजाय किसी और दिन कैसे मनाया जा सकता है? यदि माहेश्वरी हैं तो रक्षा बंधन का त्योंहार "ऋषी पंचमी" के दिन ही मनाकर गर्व महसूस करें. यदि माहेश्वरी हैं तो... रक्षाबंधन का त्योंहार "ऋषी पंचमी" के दिन ही मनाये.


दूसरी एक बात...
आम तौर पर रक्षाबंधन (राखी) का त्योंहार श्रावणी पूर्णिमा (राखी पूर्णिमा) के दिन मनाया जाता है लेकिन माहेश्वरी समाज में परंपरागत रूपसे रक्षाबंधन का त्योंहार ऋषि पंचमी के दिन मनाया जाता है. "ऋषि पंचमी के दिन रक्षाबंधन" यह बात दुनियाभर में माहेश्वरी संस्कृति (माहेश्वरीत्व) की, माहेश्वरी समाज की विशिष्ठ पहचान बनी है; यह हम माहेश्वरीयों की सांस्कृतिक धरोहर है, विरासत है.  माहेश्वरी रक्षाबंधन के इस त्योंहार को भाई-बहन के गोल्डन रिलेशनशिप के पवित्र धार्मिक त्योंहार के रूपमें परंपरागत विधि-विधान और रीती-रिवाज के साथ मनाया जाता है, मनाया जाना चाहिए लेकिन विगत कुछ वर्षों से, कई बहने राखी बांधने के बाद भाई को श्रीफल (नारियल) के बजाय रुमाल या कोई दूसरी चीज दे रही है. क्या भगवान के मंदिर में नारियल फोड़कर चढाने के बजाय रुमाल फाड़ कर चढ़ाया जा सकता है...? हर चीज का अपनी जगह एक महत्व होता है इस बात के महत्व को समझते हुए श्रीफल की जगह 'श्रीफल' ही दिया जाना चाहिए (हाँ, इसे कुछ विशेष सजावट के साथ या ले जाने में सुविधा हो इस तरह से पैकिंग करके दिया जा सकता है). भाईयों को भी चाहिए की बहन की मंगलकामनाओं और दुवाओं के प्रतिक के रूपमें दिए जानेवाले श्रीफल को अपने साथ अपने घर पर ले जाएं और इसे घर के सभी परिवारजनों के साथ प्रसाद के रूपमें ग्रहण करें.

जिन्हे सगी बहन ना हो वे अपने चचेरी बहन से राखी बांधे लेकिन माहेश्वरी संस्कृति के अनुसार ऋषि पंचमी के दिन केवल माँ-जाई (सगी) बहन से राखी बांधना पर्याप्त है. जीन भाईयोको माँ-जाई बहन और चचेरी बहन ना हो वह, मित्र की बहन से या अपने कुल के पुरोहित से अथवा मंदिर के पुजारी से राखी बंधाए, और यदि कोई बहन को भाई ना हो तो वह भगवान गणेशजी को राखी बांधे.









श्री गणेश चतुर्थी के अगले दिन होती है- ऋषि पंचमी (माहेश्वरी रक्षाबंधन)




समस्त माहेश्वरी समाजजनों को ऋषि पंचमी (माहेश्वरी रक्षाबंधन) की हार्दिक शुभकामनाएं !

4 comments:

  1. अपने समाज वाले रक्षा बंधन वालेे दिन badne लगे है, क्युकी उन्हें शर्म आती है

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  2. Apni parampara ko bhulna nahi chahiye

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  3. Hamari Sanskrit Hamari pahchan

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