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Maheshwari Akhada invites Nominations for Divy Awards | Only for Maheshwari People | प्रतिष्ठित माहेश्वरी सम्मान "दिव्य पुरस्कार" के लिए नामांकन आमंत्रित | Divy Awards Are Given On Mahesh Navami

The nomination process of Divy Awards is open to the Maheshwari People. Even self-nomination can be made. Nominations/Recommendations are invited from 1st August to 15th December every year. Nominations and recommendations have been started for the prestigious Maheshwari Awards of Maheshwari Community Divy Awards (Divy Shri, Divy Bhushan, Divy Vibhushan). These Maheshwari Awards have been started by Maheshwari Akhada (whose official name is 'Divyashakti Yogpeeth Akhara'), the highest Gurupeeth of Maheshwari community. This award is given to the recipient by the Peethadhipati of Maheshwari Akhada, who is decorated with the title of Maheshacharya, the highest guru post of Maheshwari community (At the present time Yogi Premsukhanand Maheshwari is the Peethadhipati of Maheshwari Akhada and Maheshacharya). The last date for nominations for the Divy Awards is December 15. These awards are given on Mahesh Navami.

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Nominations and recommendations have also been invited for consideration on a broad basis from national office bearers of Maheshwari social organizations, state officials, Maheshwari Ratna Award winners, Maheshwari institutions/trusts and many other sources.

Nominations and recommendations for Divy Awards can only be made through WhatsApp No. 9405826464 and e-mail maheshwariakhada@gmail.com. All Maheshwari community members can also self-nominate and recommend themselves. Nominations and recommendations should include all relevant details, which should clearly include the distinguished (distinguished/notable) and extraordinary achievements of the nominee, his or her respective field, service etc.

The divine awards are announced every year in the fourth week of December or the first week of January. This award is given for distinguished and extraordinary achievements and services of a Maheshwari individual in all fields and disciplines, such as spirituality, art, education, literature, science, sports, medicine, social work (social service), science and engineering, service, business and industry. Are done. All Maheshwari people without discrimination of race, occupation, position or sex are eligible for these awards.


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प्रतिष्ठित माहेश्वरी सम्मान "दिव्य पुरस्कार" के लिए नामांकन आमंत्रित

'दिव्य विभूषण, दिव्य भूषण और दिव्यश्री' माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च पुरस्कारों में से हैं। यह पुरस्कार "माहेश्वरी अखाड़ा (दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा)" द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तरपर दीये जानेवाले प्रतिष्ठित "माहेश्वरी सम्मान" है। माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार "माहेश्वरी रत्न" के बाद क्रमशः चौथे, तीसरे और दूसरे स्थान पर दिव्यश्री', 'दिव्य भूषण' और 'दिव्य विभूषण' यह श्रेष्ठ पुरस्कार है। इस सम्मान में एक पदक और प्रशस्ति पत्र (सम्मान पत्र) दिया जाता है।

माहेश्वरी अखाड़ा द्वारा प्रदान किये जानेवाले माहेश्वरी समाज के प्रतिष्ठित सम्मान दिव्य पुरस्कारों (दिव्यश्री, दिव्य भूषण, दिव्य विभूषण) के लिए नामांकन और सिफारिशें शुरू की गई है। दिव्य पुरस्कारों के लिए नामांकन की अंतिम तिथि 15 दिसंबर है।

माहेश्वरी समाज-संगठनों के राष्ट्रिय पदाधिकारियों, प्रदेश पदाधिकारियों, माहेश्वरी रत्न पुरस्कार विजेताओं, माहेश्वरी संस्थानों/संस्थाओं/ट्रस्टों और कई अन्य स्रोतों से भी व्यापक आधार पर विचार करने के लिए नामांकन और सिफारिशें आमंत्रित की गई हैं।

दिव्य पुरस्कारों के लिए नामांकन और सिफारिशें केवल WhatsApp No. 9405826464 तथा ई-मेल maheshwariakhada@gmail.com पर प्राप्त की जाएंगी। सभी माहेश्वरी समाजजन स्वयं भी स्व-नामांकन और सिफारिश कर सकते हैं। नामांकन और सिफारिशों में सभी प्रासंगिक विवरण शामिल होने चाहिए, जिसमें स्पष्ट रूप से नामांकित व्यक्ति की प्रतिष्ठित (विशिष्ट/उल्लेखनीय) और असाधारण उपलब्धियां, उनके या उसके संबंधित क्षेत्र, सेवा आदि विवरण शामिल होने चाहिए।

दिव्य पुरस्कारों की घोषणा हर साल दिसंबर के चौथे सप्ताह में अथवा जनवरी के पहले सप्ताह में की जाती है। यह पुरस्कार सभी क्षेत्रों और विषयों, जैसे अध्यात्म, कला, शिक्षा, साहित्य, विज्ञान, खेल, चिकित्सा, सामाजिक कार्य (समाजसेवा), विज्ञान और इंजीनियरिंग, सेवा, व्यापार और उद्योग में माहेश्वरी व्यक्ति के विशिष्ट और असाधारण उपलब्धियों और सेवाओं के लिए प्रदान किये जाते है। स्पर्धा, व्यवसाय, स्थिति या लिंग (race, occupation, position or sex) के भेदभाव के बिना सभी माहेश्वरी लोग इन पुरस्कारों के लिए पात्र हैं।

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दिव्य विभूषण पुरस्कार -
दिव्य विभूषण सम्मान माहेश्वरी समाज का दूसरा सर्वोच्च सम्मान है। जो माहेश्वरी व्यक्ति अपने किसी विशिष्ट क्षेत्र में असाधारण और उत्कृष्ट सेवा करते हैं उनको दिव्य विभूषण दिया जाता है। यह सम्मान समाज के लिये बहुमूल्य योगदान के लिए भी दिया जाता है।

दिव्य भूषण पुरस्कार -
दिव्य भूषण सम्मान माहेश्वरी समाज का तीसरा सर्वोच्च सम्मान है। यह सम्मान किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट और उल्लेखनीय सेवा के लिए प्रदान किया जाता है। इसमें माहेश्वरी समाज के संगठन के पदाधिकारीयों द्वारा की गई सेवाएं भी शामिल हैं।

दिव्यश्री पुरस्कार -
दिव्यश्री या दिव्य श्री सम्मान माहेश्वरी समाज का चौथा सर्वोच्च सम्मान है। दिव्यश्री सम्मान किसी भी क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवा के लिए प्रदान किया जाता है। इसमें सरकारी कर्मचारी के तौर पर माहेश्वरी व्यक्ति द्वारा की गई सेवाएं भी शामिल हैं।

Divy Vibhushan — The second highest Maheshwari honour (award).

Divy Bhushan — The third highest Maheshwari honour (award).

Divy Shri — The fourth highest Maheshwari honour (award).

दिव्य पुरस्कार (दिव्यश्री, दिव्य भूषण, दिव्य विभूषण) के बारेमें अधिक जानकारी के लिए इस link पर click कीजिये > माहेश्वरी समाज के प्रतिष्ठित पुरस्कार/सम्मान- दिव्य पुरस्कार

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जाग जाये समाजबंधु, वर्ना मिट जायेगा माहेश्वरी समाज का अस्तित्व -प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी


सब कुछ है...
माहेश्वरी शिक्षित है,
तेजतर्रार है, कर्तबगार है,
संस्कारी है, समझदार है,
धनि है, दानी है, ज्ञानी है,
फिर भी...
माहेश्वरी समाज का वह रुतबा,
वह पहचान नहीं है जो होनी चाहिए थी.
क्यों? क्या कारण है?

क्योंकि....
- माहेश्वरी संगठित नहीं है,
- स्व-अस्मिता, स्वाभिमान नहीं है,
- अपने इतिहास की जानकारी नहीं है,
- अपने इतिहास पर नाज नहीं है,
- अपने माहेश्वरी होने पर नाज नहीं है,
- मार्गदर्शित करनेवाली धार्मिक व्यवस्था नहीं है,
- समस्त समाज का प्रतिनिधि कहलाये ऐसा कोई संगठन नहीं है,
- समाज के भविष्य के बारे में कोई योजना नहीं है,
- संगठनों का माहेश्वरी संस्कृति को बचाने पर ध्यान नहीं है,
- समाज की परम्पराओं को निभाया जाए इसपर ध्यान नहीं है,
- माहेश्वरी संस्कृति की जानकारी नई पीढ़ी को मिले ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है,
- समाज के गौरवचिन्हों की, समाज के गौरवस्थानों (समाज में जन्मे महापुरुषों) की समाज को जानकारी नहीं है, इसकी जानकारी समाज को दे ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, परिणामतः समाज के सामने कोई प्रेरणास्त्रोत नहीं है,
- समाज में एक-दूजे के प्रति कोई अपनापन नहीं है, समाज में वास्तविक एकता की कमी है; आगे बढ़ने-बढ़ाने के लिए एक-दूजे का भरपूर सहयोग करें इस भावना की कमी है,
- व्यापार-उद्योग में समाजबंधुओं को आपसी सहयोग का लाभ मिले, व्यापार-उद्योग में परंपरागत रूप से चला आया समाज का दबदबा (रुतबा) कायम रहे इसके लिए संगठनों के पास कोई दीर्घकालीन योजना, कोई ठोस कार्यक्रम, कोई स्थाई व्यवस्था  नहीं है.

इन मुख्य कारणों के अलावा अन्य भी कई कारन है. समाज के अस्तित्व को बचाने की, समाज के गौरव को बढ़ाने के लिए कार्य करने की, समाज एवं समाजजनों को प्रगति के पथ पर अग्रेसर करने की जिम्मेदारी सिर्फ संगठन की या सिर्फ समाजबंधुओं की नहीं है बल्कि दोनों मिलकर इस कार्य को करें तभी यह संभव हो सकता है. यह कार्य असंभव नहीं है बशर्ते समाजबंधु इसे ना केवल संगठन के भरोसे छोडे बल्कि अपना सक्रीय योगदान दे, अपना सक्रीय सहभाग प्रदान करें.

संगठन ने समाज के लिए कार्य करते हुए कुछ अच्छे कार्य किये है, कुछ कमियां भी रही है. हमने विगत 3-4 वर्षों में समाज की इन बातों को लेकर संगठन 'अ. भा. माहेश्वरी महासभा' से बात करने की कई बार कोशिश की लेकिन संगठन को बात करने में कोई रूचि नहीं है. हम अ. भा. माहेश्वरी महासभा से आग्रह करते है की समाजहित में वे अपने भूमिका को सकारात्मक बनावे. हमारा मानना है की समाज को आध्यात्मिक मार्गदर्शन करनेवाली संस्था और समाज के लिए सामाजिक कार्य करनेवाली संस्था यह समाज नामक रथ के 2 पहिये है. यह दोनों पहिये एकसाथ, एक दिशा में चले तो समाज को प्रगति पथ पर तेज गति से दौड़ने से कोई नहीं रोक सकता ! इसे समझा जाये की 'आध्यात्मिक संस्था' समाज की आत्मा होती है और 'सामाजिक संस्था' समाज का शरीर. बिना आत्मा के शरीर का कोई मूल्य नहीं है और बिना शरीर के आत्मा का कोई अर्थ नहीं है. जैसे शरीर के बिना आत्मा शून्य है और आत्मा के बिना शरीर 'शव' है वैसे ही आध्यात्मिक मार्गदर्शक संस्था के बिना समाज निष्प्राण हो जाता है, दिशाहीन हो जाता है, समाज में एक रिक्तता निर्माण हो जाती है; और बिना सामाजिक संस्था (संगठन) के समाज अक्रियाशील, कुछ भी करने में असमर्थ हो जाता है. समाजरूपी रथ को दौड़ने के लिए दोनों पहिये आवश्यक है. समाज के लिए 'मार्गदर्शन करनेवाली आध्यात्मिक संस्था' और 'कार्य करनेवाली सामाजिक संस्था' दोनों का समान महत्व है, दोनों आवश्यक है.

देश में तेजी से आर्थिक और सामाजिक बदलाव हो रहे है. यही समय है की भविष्य में माहेश्वरी समाज के अस्तित्व को, रुतबे को, माहेश्वरी संस्कृति को कायम रखने और बढ़ाने के लिए सभी को जाग जाना चाहिए. यही समय है की समाजबंधुओं की प्रगति को सुनिश्चित करने के लिए कार्य करने की दिशा में ठोस और स्थायी योजना बनाकर तत्परता से उसपर कार्य किया जाना चाहिए. समय किसी के लिए रुकता नहीं है, बाद में सिवाय पछतावे के बिना कुछ बचता नहीं है.

हमारे लिए यह संतोष की बात है की पिछले 3-4 वर्षों में समाज के कई कार्यकर्ता और अनेको समाजबंधुओं ने व्यक्तिगत रूप से समाज के इस कार्य में अपना अदभुत योगदान दिया है/दे रहे है. कुछ छोटे संगठन भी इस कार्य में अपना योगदान देते दिखाई दे रहे है लेकिन समाज के सबसे बड़े संगठन के ज्यादातर पदाधिकारी, वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता, समाज के चिंतक, समाज के बड़े बड़े लोग ना केवल दूर है बल्कि मौन धारण करके बैठे हुए है. महाभारतपर्व में, राजसभा में द्रौपदी के चीरहरण के समय भी भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, बड़े बड़े योद्धा, रथी-महारथियों ने मौन धारण किया था लेकिन बाद में महाभारत के धर्मयुद्ध में उन सबका क्या हश्र हुवा और इतिहास ने उन्हें कैसे भाषित किया यह हम सब जानते है, पितामह भीष्म को तो कई दिनों तक अपने मृत्यु की प्रतीक्षा करते शरशैया पर सोना पड़ा. आज समाज के अस्तित्व को बचाने के लिए, माहेश्वरी संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन के लिए, माहेश्वरी समाज के गौरव को पुनःस्थापित करने के लिए, समाज की सर्वांगीण प्रगति के लिए हम एक धर्मयुद्ध लड़ रहे है और इस समय संगठन के कुछ पदाधिकारी, ज्यादातर वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता, समाज के चिंतक, समाज के बड़े बड़े लोग मौन धारण करके बैठे हुए है, लेकिन इतिहास में इनका यह मौन भी दर्ज होगा. मुझे तो ना कुछ बनना है और ना ही कुछ पाना है लेकिन इतिहास में मेरा यह छोटासा योगदान जरूर दर्ज होगा. मेरे जीते जी भले ही ना किया जाये लेकिन मेरे जाने के 100-200 वर्षों के बाद इतिहास मुझे जरूर याद करेगा. भगवान महेशजी की असीम कृपा से मुझे अपना सम्पूर्ण जीवन माहेश्वरी समाज के लिए समर्पित करने का सुअवसर मिला यह मेरे लिए सौभाग्य की, गौरव की बात है.

मुझे विश्वास है की भगवान महेशजी और देवी महेश्वरी (पार्वती) द्वारा स्थापित यह महान माहेश्वरी संस्कृति, माहेश्वरी समाज देश-दुनिया में पुनः अपना परचम जरूर लहरायेगा. जैसे पहले के समय में माहेश्वरी समाज औरों के लिए मार्गदर्शक और प्रेरणादायक था वही गौरवपूर्ण स्थान पुनः पाने में समाज जरूर सफल होगा. जय महेश ! 

- प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी
(पीठाधिपति, माहेश्वरी अखाडा) 

Hartalika Teej


तीज का त्योंहार भगवान महेश (शिव) और माता पार्वती के भक्ति आराधना को समर्पित है जिसे भारतीय महिलाएं जीवन में विवाह, परिवार और पारिवारिक संबंधों के महत्व को समझने-समझाने की भावना के साथ मनाती हैं और अपने पुरे परिवार के समग्र कल्याण के लिए प्रार्थना करती हैं. यह पर्व ज्यादातर उत्तर भारत और नेपाल में मनाया जाता है. तीज का पर्व राजस्थान, हरियाणा, पंजाब आदि राज्यों में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है. माहेश्वरी समाज में "महेश नवमी" के बाद समाज के सबसे बड़े उत्सव के रूप में तीज के पर्व को मनाया जाता है. माहेश्वरी समाज के लिए, विशेषतः माहेश्वरी युवतियों और महिलाओं के लिए तीज का एक विशेष महत्व है.

तीज तीन प्रकार की है, (1) श्रावणी तीज (इसे छोटी तीज और हरियाली तीज के नाम से भी जाना जाता है. (2) कजरी तीज (इसे बड़ी तीज और सातुड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है. (3) हरतालिका तीज (कहीं कहीं पर इसे हरितालिका तीज कहा जाता है अपितु इसका सही नाम 'हरतालिका तीज' ही है). मान्यता, परंपरा और शास्त्रों के अनुसार, विवाह होने तक कुमारिकाओं द्वारा हरतालिका तीज का व्रत किया जाता है और विवाह के पश्चात छोटी तीज और बड़ी तीज (श्रावणी तीज और सातुड़ी तीज) का व्रत किया जाता है. सुयोग्य पति पाने के लिए अविवाहित युवतियों के लिए हरितालिका तीज के व्रत का विधान है. अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने के लिए विवाहित महिलाओं द्वारा छोटी तीज और बड़ी तीज के पर्व को मनाने का विधान है.

हरतालिका तीज -
सुयोग्य और अनुरूप पति को पाने की कामना का परम पावन व्रत 'हरतालिका तीज' भारतीय पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को किया जाता है. "हर" भगवान महेश (महादेव) का ही एक नाम है और चूँकि महादेव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए पार्वती ने सर्वप्रथम इस व्रत को रखा था, इसलिए इस पावन व्रत को 'हरतालिका तीज' कहा जाता है. विवाहित महिलाएं भी इस व्रत को कर सकती है, करती है लेकिन हरतालिका तीज यह मुख्यतः कुवांरी युवतियों के द्वारा मनाने का त्योंहार है जो उनके द्वारा अपने लिए सुयोग्य और अनुरूप पति को प्राप्त करने के लिए श्रद्धा और निष्ठा पूर्वक किया जाता है.

इस दिन विशेष रूप से गौरी−शंकर (महेश-पार्वती) का ही पूजन किया जाता है. चूँकि यह व्रत पति-पत्नी के रिश्ते से सम्बंधित है इसलिए यह महेश-पार्वती के साकार (शारीरिक रचना वाले) स्वरुप में पूजा-आराधना का पर्व है (अर्थात तीज के पर्व में शिवपिंड अथवा शिवलिंग के स्वरुप में नहीं बल्कि महादेव-पार्वती के मूर्ति अथवा तसबीर की पूजा का महत्व है. कुछ (अज्ञानी) लोगों द्वारा यह प्रचारित किया जाता है की भगवान महादेव के मूर्ति की पूजा वर्जित है लेकिन यह सही नहीं है. भगवान महादेव की साकार और निराकार दोनों ही स्वरूपों में पूजा की जा सकती है. महादेव साकार और निराकार दोनों ही स्वरूपों में पूजनीय है. शिव महापुराण और शास्त्रों के अनुसार सन्यासियों के लिए भगवान महादेव के निराकार स्वरुप की पूजा का और गृहस्थियों के लिए साकार स्वरुप की पूजा का विधान है. शिवपिंड और शिवलिंग महादेव के निराकार स्वरुप का प्रतिक है और शारीरिक आकार दर्शाती मूर्ति तथा तसबीर उन्ही देवाधिदेव महादेव के साकार स्वरुप का प्रतिक है).


हरतालिका तीज का व्रत करने वाली युवतियां-स्त्रियां इस दिन सूर्योदय से पूर्व ही उठ जाती हैं और नहा धोकर पूरा श्रृंगार करती हैं. पूजन के लिए केले के पत्तों से मंडप बनाकर गौरी−शंकर (महेश-पार्वती) की प्रतिमा स्थापित की जाती है. इसके साथ पार्वती जी को सुहाग (श्रृंगार) का सारा सामान ((सुगन्धित फूलों का गजरा, चूड़ियां, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, मेहंदी आदि) चढ़ाया जाता है. माहेश्वरी समाज में महेश-पार्वती को युग्मपत्र (सोनपत्ता/आपटा-पर्ण) चढाने का भी विधान और परंपरा है. हरतालिका तीज के दिन उपवास करें यह प्रचारित है, प्रचलित है; कहा जाता है की हरतालिका व्रत निर्जला किया जाता हैं अर्थात पूरा दिन एवं रात अगले सूर्योदय तक जल ग्रहण नहीं किया जाता है लेकिन माहेश्वरी संस्कृति के मूल परंपरा के अनुसार इस दिन उपवास का अथवा जल ग्रहण नहीं करने का (निर्जला रहने का) कोई विधान नहीं है. माहेश्वरी समाज की मूल परंपरा के अनुसार हरतालिका व्रत में उपवास करने का अथवा निर्जला रहने का कोई विधि-विधान नहीं है. इस दिन महेश-पार्वती के मंदिर में होपहर में महा आरती (भगवान महेश, माता गौरी एवम गणेशजी की पूजा और आरती) की जाती है. हरतालिका व्रत के दिन रतजगा किया जाता हैं. रात में भजन, कीर्तन करते हुए जागरण कर तीन बार आरती की जाती है और महेशजी को ब्यावलो (शिव-पार्वती विवाह की कथा) को सुना जाता है.



श्री श्री श्रीजी महाराज की पावन स्मृति को शत शत नमन !


निम्बार्क पीठाधीश्वर आचार्य 1008 जगद्गुरु श्री श्री श्रीजी महाराज का देवलोकगमन हो गया है । श्रीजी महाराज की प्रसिद्धि निम्बार्क सम्प्रदाय में ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण भारतवर्ष के धार्मिक एवं आध्यात्मिक जगत में थी ।आप उच्च कोटि के संत थे और आपके जाने से सनातन धर्म की अपूरणीय क्षति हुई है । श्रीजी महाराज की पावन स्मृति को शत शत नमन एवं भावभीनी श्रद्धांजलि !
-प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी (पीठाधिपति- माहेश्वरी अखाडा)

माहेश्वरी ही है आचार्य किशोरजी व्यास एवं मारवाड़ी ब्राम्हण


जिन्हे मारवाड़ी ब्राम्हण कहा जाता है वे माहेश्वरियों से अलग नहीं बल्कि "माहेश्वरी" ही है

हाल के दिनों में देशभर के समाजबंधुओं से चर्चा में कुछ सजग समाजबंधुओं द्वारा कुछ प्रश्न उपस्थित किये गए है- आचार्य किशोरजी व्यास 'माहेश्वरी' है या नहीं? जिनको हम माहेश्वरी या मारवाड़ी ब्राम्हण कहते है वे माहेश्वरी है या नहीं? अगर से वे माहेश्वरी है तो उन्हें समाज के संगठनों में क्यों शामिल नहीं किया गया है? इस बात पर माहेश्वरी समाज की सर्वोच्च आध्यात्मिक संस्था 'माहेश्वरी अखाडा' के पीठाधिपति प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी महाराज ने निर्णय दिया है की आचार्य किशोरजी व्यास एवं जो मारवाड़ी ब्राम्हण है, "माहेश्वरी" ही है.

इस निर्णय के आधार को समाज के सामने प्रस्तुत करने की आवश्यकता को प्रतिपादित करते हुए उन्होंने कहा की ...इस बातको हमें तथ्यों और प्रमाणों के आधार पर समझना होगा, इसके मूल में जाना होगा. कुछ समाजबंधुओं को माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के बारे में पूर्णरूपेण जानकारी नहीं होने के कारन उनके मन में ऐसा प्रश्न आना स्वाभाविक है. माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के अनुसार जब माहेश्वरी वंशोत्पत्ति हुई उसी समय भगवान महेशजी ने महर्षि पराशर, सारस्वत, ग्वाला, गौतम, श्रृंगी, दाधीच इन छः (6) ऋषियों को माहेश्वरियों का गुरु बनाया (गुरुपद दिया). कालांतर में इन गुरुओं ने महर्षि भारद्वाज को भी माहेश्वरी गुरु पद प्रदान किया जिससे माहेश्वरी गुरुओं की संख्या सात हो गई जिन्हे माहेश्वरीयों में सप्तर्षि (सप्त गुरु) कहा जाता है. एक सर्वमान्य परंपरा यह है की समाज के जो गुरु होते है वे उसी समाज के माने जाते है जिस समाज के वे समाजगुरु है, जैसे की जैनों के गुरु जैन ही होते है, सिखों के गुरु सिख ही होते है. इस सर्वमान्य परंपरा के अनुसार एवं माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के तथ्यों के आधारपर यह स्पष्ट है की उपरोक्त वर्णित सात ऋषियों (माहेश्वरी गुरुओं) के वंशज 'माहेश्वरी' ही है.

आम तौर पर इन्हें माहेश्वरी ब्राम्हण कहा जाता है. जब 'माहेश्वरी ब्राम्हण' इस शब्द का प्रयोग किया जाया है तो इसमें माहेश्वरी इस शब्द के लगने से ही यह प्रमाणित हो जाता है की वे माहेश्वरी ही है लेकिन कहीं कहीं इन्हें माहेश्वरी ब्राम्हण के बजाय मारवाड़ी ब्राम्हण भी कहा जाता है जिससे कुछ समाजबंधुओं को यह संदेह होता है की यह ब्राम्हण समाज तो मारवाड़ी ब्राम्हण है इन्हें केवल "माहेश्वरी" कैसे कहा जा सकता है. मारवाड़ यह राजस्थान के एक भूभाग का नाम है. मुग़ल काल व राजपूत शाषकों के समय से इस भूभाग को मारवाड़ के नाम से जाना जाने लगा. तथ्य बताते है की माहेश्वरी वंशोत्पत्ति इससे कई पूर्व में द्वापर युग के उत्तरार्ध में (अर्थात महाभारत काल) में हुई है, उस समय में राजस्थान को 'राजस्थान' के नाम से या राजस्थान के मारवाड़ को 'मारवाड़' नाम से जाना ही नहीं जाता था, बल्कि यह भूभाग मत्स्य देश (मत्स्य जनपद) के नाम से जाना जाता था. जब उस समय मारवाड़ ही नहीं था तो मारवाड़ी शब्द भी नहीं था. यह तो बाद में रहने के स्थान के नाम पर अस्तित्व में आया है. अर्थात जिन्हें हम मारवाड़ी ब्राम्हण कहते है वे मूलतः माहेश्वरी ही है. उपरोक्त वर्णित सात माहेश्वरी गुरुओं के वंशज (वर्तमान में जिनके उपनाम (सरनेम) पारीक, दायमा, दाधीच, व्यास आदि है) निःसंदेह रूप से माहेश्वरी है. इन्हें समाज के संगठनों में शामिल नहीं किया जाना यह अबतक की हुई बहुत बड़ी चूक है, इसे अविलम्ब दुरुस्त किया जाना चाहिए.

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