Mahesh Navami Special | माहेश्वरी समाज की महेशाचार्य परंपरा | Adi Maheshacharya Maharshi Parashar | Maheshwari Samaj Ki Maheshacharya Parampara | Maheshacharya | Guru Purnima

Mahesh Navami and Guru Purnima Special - Maheshacharya tradition of the Maheshwari Community (in English & Hindi)


Maheshacharya (महेशाचार्य) is a religious title used for the peethadhipati of Divyshakti Yogpeeth Akhara (which is known as Maheshwari Akhada is famous). The word "Maheshacharya" is composed of two parts, Mahesha and Acharya. Acharya is a Sanskrit word meaning "teacher", so Maheshacharya means "teacher", who teaches the path shown by Lord Mahesha (Lord Shiva). Maheshacharya post/designation is the post of religious leadership of Maheshwari community. This post "Maheshacharya" is considered to be the most prestigious post of Maheshwari community. The title is derived from Adi Maheshacharya Maharshi Parashar (First Peethadhipati of Maheshwari Gurupeeth), the Maheshwari Gurus in the successive series of Gurus coming from his time are known as "Maheshacharya". The first Peethadhipati of Maheshwari Gurupeeth was Maharshi Parashar, hence Maharshi Parashar is "Adi Maheshacharya". Presently Yogi Premsukhanand Maheshwari is the Peethadhipati of Divyshakti Yogpeeth Akhara (Maheshwari Akhada) and Maheshacharya.



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महेशाचार्य यह माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च गुरुपीठ "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा (जो की 'माहेश्वरी अखाड़ा' के नाम से प्रसिद्ध है)" के आधिकारिक मुखिया के लिये प्रयोग की जाने वाली धार्मिक उपाधि है। महेशाचार्य शब्द दो भागों से बना है, महेश और आचार्य। आचार्य एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है "शिक्षक", इसलिए महेशाचार्य का अर्थ है "शिक्षक", जो भगवान महेश (भगवान शिव) द्वारा दिखाए गए मार्ग को सिखाते हैं। महेशाचार्य यह माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च धार्मिक नेतृत्व का पद है। यह उपाधि आदि महेशाचार्य महर्षि पराशर (माहेश्वरी गुरुपीठ के प्रथम पीठाधिपति) से ली गई है; उनके समय से चले आ रहे गुरुओं की क्रमिक श्रृंखला के गुरुओं को "महेशाचार्य" के नाम से जाना जाता है। माहेश्वरी गुरुपीठ के प्रथम पीठाधिपति महर्षि पराशर थे इसलिए महर्षि पराशर "आदि महेशाचार्य" है। वर्तमान में योगी प्रेमसुखानंद माहेश्वरी "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा (माहेश्वरी अखाड़ा)" के पीठाधिपति और महेशाचार्य हैं।




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माहेश्वरी अखाड़ा के पीठाधिपति होने के नाते महेशाचार्य के सभी गतिविधियों का मुख्य उद्देश्य भारत के विभिन्न क्षेत्रों और विश्व के किसी भी देश में बसनेवाले माहेश्वरी समाजजनों को एकता के सूत्र में बांधकर माहेश्वरी समाज के मूल सिद्धांत "सर्वे भवन्तु सुखिनः" को सार्थ करते हुए समाज को गौरव के सर्वोच्च शिखर पर स्थापित रखना है, कायम रखना होता है। महेशाचार्य प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी महाराज सनातन धर्म की रक्षा, माहेश्वरी संस्कृति और सांस्कृतिक पहचान, उसके मूल्यों और गौरव को बनाए रखने के लिए जी-जान से कार्यरत है। वो देशभर में समाजजनों से संवाद साधकर सामाजिक एकता, सुरक्षा, प्रगति, स्वास्थ्य, शिक्षा और मूल्यों का महत्व, गौ-रक्षा, महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण की समस्याएं और उनके समाधान पर संबोधित कर रहे हैं। वह 'दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा (माहेश्वरी अखाड़ा)' के माध्यम से एक सुशिक्षित, सुसंस्कृत, आत्मनिर्भर समाज बनाने, समाज और राष्ट्र की एकता को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से काम कर रहे हैं।

माहेश्वरी अखाड़ा (जिसका आधिकारिक नाम दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा है) माहेश्वरी समाज का सर्वोच्च धार्मिक गुरुपीठ है, माहेश्वरी समाज की शीर्ष/सर्वोच्च धार्मिक-आध्यात्मिक प्रबंधन संस्था है। वैसे तो माहेश्वरी गुरुपीठ की परंपरा 5000 वर्ष से भी ज्यादा पुरातन है। जब ईसवी सन पूर्व 3133 में, ज्येष्ठ शुक्ल नवमी के दिन भगवान महेश जी ने माहेश्वरी समाज की वंशोत्पत्ति/उत्पत्ति की थी, इसी दिन को माहेश्वरी समुदाय माहेश्वरी समाज के स्थापना दिवस के रूपमें तथा महेश नवमी के नाम से मनाता है। तब माहेश्वरी समुदाय के स्थापना के साथ साथ ही भगवान महेशजी ने माहेश्वरी समाज को मार्गदर्शित करने का दायित्व 6 गुरुओं (ऋषियों) को सौपा था; इन्ही 6 गुरुओं द्वारा माहेश्वरी गुरुपीठ परंपरा की शुरुआत की गई थी लेकिन समय चक्र में यह माहेश्वरी गुरुपीठ परंपरा विघटित हो गई। वर्ष 2008 में माहेश्वरी समाज के इस सर्वोच्च गुरुपीठ को कानूनी एवं आधिकारिक तौर पर "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा" के नाम से पुनः स्थापित किया गया। आधिकारिक स्थापना के समय इसका नाम "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा" दर्ज किया गया था, लेकिन यह "माहेश्वरी अखाड़ा" के नाम से प्रसिद्ध है, लोकप्रिय है। माहेश्वरी अखाड़ा (दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा) के पीठाधिपति "महेशाचार्य" की उपाधि से अलंकृत होते है। केवल माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च गुरुपीठ "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा" के अध्यक्ष (पीठाधिपति) ही "महेशाचार्य" की उपाधि से अलंकृत होने के अधिकारी है / आधिकारिक रूप से अधिकृत है।


संक्षेप में कहें तो, माहेश्वरी वंशोत्पत्ति इतिहास के अनुसार ऋषियों के शाप के कारन मृत/पत्थरवत पड़े हुए 72 क्षत्रिय उमरावों को भगवान महेशजी के वरदान से ऋषियों के शाप से मुक्ति मिली, नया जीवन मिला। नया जीवन देने के बाद, देवी पार्वती द्वारा अनुरोध करने पर भगवान महेशजी ने उन 72 क्षत्रिय उमरावों को वरदान देकर नया जीवन दिया था इसलिए महेशजी ने उन्हें देवी महेश्वरी (देवी पार्वती) के नाम पर, देवी महेश्वरी की छाप हमेशा उनपर रहे इसलिए "माहेश्वरी" यह एक नया नाम, नई पहचान भी दी। भगवान महेशजी ने उन्हें युद्धकर्म छोड़कर व्यापार कर्म करने का आदेश दिया। इसीके साथ लक्ष्मी-कुबेर भंडारी भगवान महेशजी ने माहेश्वरीयों को व्यापार में खूब तरक्की और बरकत का भी वरदान दिया। साथ ही माहेश्वरीयों/माहेश्वरी समाज को धर्म के मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शन करनेका दायित्व भगवान महेशजी ने ऋषि पराशर, सारस्वत, ग्वाला, गौतम, श्रृंगी, दाधीच इन छः (6) ऋषियों को सौपा (परंपरागत माहेश्वरी वंशोत्पत्ति चित्र/फोटो में उन 6 ऋषियों को बैठे हुए दिखाया गया है)। कालांतर में इन गुरुओं ने महर्षि भारद्वाज को भी माहेश्वरी गुरु पद प्रदान किया जिससे माहेश्वरी गुरुओं की संख्या सात हो गई जिन्हे माहेश्वरीयों में सप्तर्षि कहा जाता है। इन माहेश्वरी गुरुओं ने माहेश्वरी समाज के प्रबंधन और मार्गदर्शन का कार्य सुचारू रूप से चले इसलिए एक 'गुरुपीठ' को स्थापन किया जिसे "माहेश्वरी गुरुपीठ" कहा जाता था। गुरुपीठ के पीठाधिपति “महेशाचार्य” की उपाधि से अलंकृत थे, इसलिए उन्हें "महेशाचार्य" कहा जाता था। "महेशाचार्य" यह माहेश्वरी समाज का सर्वोच्च गुरु पद माना जाता था। इस माहेश्वरी गुरुपीठ के माध्यम से समाजगुरु माहेश्वरी समाज को मार्गदर्शित करते थे। गुरुओं ने गुरुपीठ के माध्यम से अपने कर्तव्य और जिम्मेदारी का निर्वाहन करते हुए माहेश्वरी समाज की "वे ऑफ़ लाइफ" के लिए एक आचारसंहिता और नियमावली को बनाया। समाज की विशिष्ठ पहचान कायम रहे इसलिए माहेश्वरी समाज का धार्मिक प्रतीकचिन्ह और ध्वज का सृजन किया, निर्माण किया। 72 उमरावों की नए नाम (सरनेम) से 72 खांपे बनाई। अगले कुछ वर्षों में इन्ही गुरुओं ने माहेश्वरी गुरुपीठ के तत्वावधान में अन्य समाज के पांच परिवारों को माहेश्वरी समाज में शामिल किया, माहेश्वरी बनाया। इससे माहेश्वरी खापों की संख्या 77 हो गई। वंशोत्पत्ति के बाद कुछ शतकों तक यह गुरुपीठ परंपरा चलती रही, लेकिन समय के प्रवाह में माहेश्वरी गुरुपीठ की यह परंपरा खंडित हो गई। इसी माहेश्वरी गुरुपीठ की खंडित हुई परंपरा को योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी ने वर्ष 2008 में कानूनी एवं आधिकारिक तौर पर "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा" के नाम से पुनः स्थापित किया है। धार्मिक विधाओं और रीती-रिवाजों के अनुसार आधिकारिक स्थापना के समय इसका नाम "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा" दर्ज किया गया था, लेकिन यह "माहेश्वरी अखाड़ा" के नाम से प्रसिद्ध है, लोकप्रिय है।

दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा (जो की "माहेश्वरी अखाड़ा" के नाम से प्रसिद्ध है) के मुखिया/पीठाधिपति के अतिरिक्त भी भारत में कुछ अन्य लोग "महेशाचार्य" पद लगाने वाले मिलते हैं जो माहेश्वरी समाज की परंपरागत परम्परानुसार नहीं बल्कि स्वैच्छिक हैं। वास्तविक/असली महेशाचार्य "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा (जो की 'माहेश्वरी अखाड़ा' के नाम से प्रसिद्ध है)" के पीठाधिपति पद पर आसीन को ही माना जाता है।

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माहेश्वरी समाज के धार्मिक नेतृत्व करनेवाले माहेश्वरी गुरुपीठ (माहेश्वरी अखाड़ा) की कार्य व्यवस्था-


माहेश्वरी उत्पत्ति कथा के अनुसार माहेश्वरीयों/माहेश्वरी समाज को धर्म के मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शन करनेका दायित्व भगवान महेशजी ने ऋषि पराशर, सारस्वत, ग्वाला, गौतम, श्रृंगी, दाधीच इन छः (6) ऋषियों को सौपा। कालांतर में इन गुरुओं ने महर्षि भारद्वाज को भी माहेश्वरी गुरु पद प्रदान किया जिससे माहेश्वरी गुरुओं की संख्या सात हो गई जिन्हे माहेश्वरीयों में सप्तर्षि कहा जाता है। इन सप्तगुरुओं ने माहेश्वरी समाज के प्रबंधन-मार्गदर्शन का कार्य सुचारू रूप से चले इसलिए एक 'गुरुपीठ' को स्थापन किया जिसे "माहेश्वरी गुरुपीठ" कहा जाता था। इस माहेश्वरी गुरुपीठ के इष्ट देव 'महेश परिवार' (भगवान महेश, पार्वती, गणेश आदि...) है। सप्तगुरुओं ने माहेश्वरी समाज के प्रतिक-चिन्ह 'मोड़' (जिसमें एक त्रिशूल और त्रिशूल के बीच के पाते में एक वृत्त तथा वृत्त के बीच ॐ (प्रणव) होता है) और ध्वज का सृजन किया। ध्वज को "दिव्य ध्वज" कहा गया। दिव्य ध्वज (केसरिया रंग के ध्वजा पर अंकित मोड़ का निशान) माहेश्वरी समाज की ध्वजा बनी। गुरुपीठ के पीठाधिपति “महेशाचार्य” की उपाधि से अलंकृत थे। महेशाचार्य- यह माहेश्वरी समाज का सर्वोच्च गुरु पद है। महर्षि पराशर माहेश्वरी गुरुपीठ के प्रथम पीठाधिपति है और इसीलिए महर्षि पराशर "आदि महेशाचार्य" है। अन्य ऋषियों को 'आचार्यश्रेष्ठ' इस अलंकरण से जाना जाता था। गुरुपीठ माहेश्वरीयों/माहेश्वरी समाज का सर्वोच्च आध्यात्मिक केन्द्र माना जाता था। माहेश्वरीयों से सम्बन्धीत किसी भी आध्यात्मिक-सामाजिक विवाद पर गुरुपीठ द्वारा लिया/किया गया निर्णय अंतिम माना जाता था।

कालांतर में गुरुपीठ के स्थायित्व के लिए सप्तगुरुओं द्वारा महेशाचार्य, महाचार्य, आचार्यश्रेष्ठ, आचार्य, समाचार्य, पुजारी/पुरोहित और गण की श्रेणियों को परिभाषित किया गया-

महेशाचार्य- महेशाचार्य माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च धार्मिक-आध्यात्मिक संस्था के मुखिया के लिये प्रयोग की जाने वाली उपाधि है। महेशाचार्य माहेश्वरी समाज में सर्वोच्च समाज गुरु (धर्म गुरु) का पद है।

महाचार्य- माहेश्वरी गुरुपीठ के पीठाधिपति (महेशाचार्य) द्वारा घोषित उनका उत्तराधिकारी।

आचार्यश्रेष्ठ- पीठाधिपति (महेशाचार्य) और महाचार्य के आलावा अन्य पांच माहेश्वरी गुरु। ये पीठाधिपति के सलाहकार मंडल के रूप में कार्य करते है।

आचार्य- अपने अध्ययन, ज्ञान, अनुभव और कार्य के आधारपर समाज के लिए आवश्यक एवं उपयोगी भिन्न-भिन्न विषयों पर समाज को मार्गदर्शित करने का कार्य करते है।

समाचार्य- किसी विशेष विषय के अपने अध्ययन, ज्ञान, अनुभव और कार्य के आधारपर समाज के लिए समय-समयपर आवश्यक एवं उपयोगी मार्गदर्शन करनेवालें समाचार्य (आचार्य के समान) है।

पुजारी/पुरोहित- मिन्दरों में, यजमान के घर, व्यावसायिक स्थान पर अथवा तीर्थस्थान पर यजमान के लिए पूजा-अर्चनादि विधियों को संपन्न करनेवाले।

गण- गण अर्थात शिष्य अथवा दूत। गण अर्थात किसी समान उद्देश्य वाले लोगों का समूह (यहाँ पर माहेश्वरी वंश के (समस्त जनसामान्य) लोगों के लिए 'गण' शब्द का प्रयोग किया गया है)।

गुरुपीठ ने विधान बनाया की कोई भी ब्राम्हर्षि/माहेश्वरी, गुरुपीठ द्वारा निर्धारित विधि के अनुसार, अपने अध्ययन, ज्ञान, अनुभव, कार्य और सदाचार के आधारपर महाचार्य, आचार्यश्रेष्ठ, आचार्य, समाचार्य अथवा पुजारी/पुरोहित बन सकता है। गुरुपीठ ने महेशाचार्य, महाचार्य, आचार्यश्रेष्ठ और आचार्य को गुरु की श्रेणी में और अन्य सभी को शिष्य की श्रेणी में रखा। समाज को अनवरत मार्गदर्शन प्राप्त होता रहे इसलिए यह समाज के लिए किया गया बहुत बड़ा, ऐतिहासिक एवं शाश्वत कार्य है।

कई शतकों तक गुरु मार्गदर्शित व्यवस्था बनी रही। तथ्य बताते है की प्रारंभ में 'गुरुमहाराज' द्वारा बताई गयी नित्य प्रार्थना, वंदना (महेश वंदना), नित्य अन्नदान, करसेवा, गो-ग्रास आदि नियमोंका समाज कड़ाई से पालन करता था। फिर मध्यकाल में भारत के शासन व्यवस्था में भारी उथल-पुथल तथा बदलाओंका दौर चला। दुर्भाग्यसे जिसका असर माहेश्वरीयों की सामाजिक व्यवस्थापर भी पड़ा और जाने-अनजाने में माहेश्वरी समाज के लोग अपने गुरुपीठ और गुरूओं को भूलते चले गए जिससे स्वयं भगवान महेशजी ने माहेश्वरी समाज को उचित मार्गदर्शन करने के लिए बनाई हुई व्यवस्था (माहेश्वरी समाजगुरु की व्यवस्था) ही समाप्त हो गई। जिसके कारन- समाज के गुरुओं द्वारा समाज को मिलनेवाले धार्मिक-आध्यात्मिक मार्गदर्शन के आभाव में समाज का बड़ा नुकसान हो रहा था, समाज की बहुत बड़ी क्षति हो रही थी, दुर्गति हो रही थी। समाज का धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक ढांचा बिखरता जा रहा था।

काल के प्रवाह में माहेश्वरी समाज को मार्गर्दर्शित करनेवाली इस खंडित हुई माहेश्वरी गुरुपीठ और माहेश्वरी समाजगुरु की प्रभावी व्यवस्था को योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी महाराज ने वर्ष 2008 में दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा (जो की 'माहेश्वरी अखाड़ा' के नाम से प्रसिद्ध हुवा है) के नाम से, धार्मिक विधाओं एवं रीति-रिवाजों और सरकारी कानून के तहत आधिकारिक रूप से पुनर्स्थापित करके समस्त माहेश्वरी समाज को धार्मिक/आध्यात्मिक/सांस्कृतिक मार्गदर्शन करनेवाली व्यवस्था को पुनः सुचारु किया है, कायम किया है। इसके माध्यम से माहेश्वरी समाज को मार्गदर्शित करनेवाली एक आधिकारिक व्यवस्था पुनः क्रियान्वित हुई है, जिसका एक बहुत अच्छा लाभ समाज को देखने को मिल रहा है। माहेश्वरी अखाड़ा के पीठाधिपति एवं महेशाचार्य द्वारा समाजजनों के साथ मिलकर किए जा रहे प्रयासों के कारण माहेश्वरी संस्कृति का पुनरुत्थान हो रहा है, समाज और समाजजनों में माहेश्वरी अस्मिता और आत्मसम्मान की भावना जागृत हो रही है; अपने माहेश्वरी समाज की संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन और प्रचार-प्रसार के बारे में जागृति दिखाई दे रही है। यह निश्चित रूप से भविष्य के लिए एक शुभ संकेत है।



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