Hartalika Teej


तीज का त्योंहार भगवान महेश (शिव) और माता पार्वती के भक्ति आराधना को समर्पित है जिसे भारतीय महिलाएं जीवन में विवाह, परिवार और पारिवारिक संबंधों के महत्व को समझने-समझाने की भावना के साथ मनाती हैं और अपने पुरे परिवार के समग्र कल्याण के लिए प्रार्थना करती हैं. यह पर्व ज्यादातर उत्तर भारत और नेपाल में मनाया जाता है. तीज का पर्व राजस्थान, हरियाणा, पंजाब आदि राज्यों में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है. माहेश्वरी समाज में "महेश नवमी" के बाद समाज के सबसे बड़े उत्सव के रूप में तीज के पर्व को मनाया जाता है. माहेश्वरी समाज के लिए, विशेषतः माहेश्वरी युवतियों और महिलाओं के लिए तीज का एक विशेष महत्व है.

तीज तीन प्रकार की है, (1) श्रावणी तीज (इसे छोटी तीज और हरियाली तीज के नाम से भी जाना जाता है. (2) कजरी तीज (इसे बड़ी तीज और सातुड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है. (3) हरतालिका तीज (कहीं कहीं पर इसे हरितालिका तीज कहा जाता है अपितु इसका सही नाम 'हरतालिका तीज' ही है). मान्यता, परंपरा और शास्त्रों के अनुसार, विवाह होने तक कुमारिकाओं द्वारा हरतालिका तीज का व्रत किया जाता है और विवाह के पश्चात छोटी तीज और बड़ी तीज (श्रावणी तीज और सातुड़ी तीज) का व्रत किया जाता है. सुयोग्य पति पाने के लिए अविवाहित युवतियों के लिए हरितालिका तीज के व्रत का विधान है. अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने के लिए विवाहित महिलाओं द्वारा छोटी तीज और बड़ी तीज के पर्व को मनाने का विधान है.

हरतालिका तीज -
सुयोग्य और अनुरूप पति को पाने की कामना का परम पावन व्रत 'हरतालिका तीज' भारतीय पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को किया जाता है. "हर" भगवान महेश (महादेव) का ही एक नाम है और चूँकि महादेव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए पार्वती ने सर्वप्रथम इस व्रत को रखा था, इसलिए इस पावन व्रत को 'हरतालिका तीज' कहा जाता है. विवाहित महिलाएं भी इस व्रत को कर सकती है, करती है लेकिन हरतालिका तीज यह मुख्यतः कुवांरी युवतियों के द्वारा मनाने का त्योंहार है जो उनके द्वारा अपने लिए सुयोग्य और अनुरूप पति को प्राप्त करने के लिए श्रद्धा और निष्ठा पूर्वक किया जाता है.

इस दिन विशेष रूप से गौरी−शंकर (महेश-पार्वती) का ही पूजन किया जाता है. चूँकि यह व्रत पति-पत्नी के रिश्ते से सम्बंधित है इसलिए यह महेश-पार्वती के साकार (शारीरिक रचना वाले) स्वरुप में पूजा-आराधना का पर्व है (अर्थात तीज के पर्व में शिवपिंड अथवा शिवलिंग के स्वरुप में नहीं बल्कि महादेव-पार्वती के मूर्ति अथवा तसबीर की पूजा का महत्व है. कुछ (अज्ञानी) लोगों द्वारा यह प्रचारित किया जाता है की भगवान महादेव के मूर्ति की पूजा वर्जित है लेकिन यह सही नहीं है. भगवान महादेव की साकार और निराकार दोनों ही स्वरूपों में पूजा की जा सकती है. महादेव साकार और निराकार दोनों ही स्वरूपों में पूजनीय है. शिव महापुराण और शास्त्रों के अनुसार सन्यासियों के लिए भगवान महादेव के निराकार स्वरुप की पूजा का और गृहस्थियों के लिए साकार स्वरुप की पूजा का विधान है. शिवपिंड और शिवलिंग महादेव के निराकार स्वरुप का प्रतिक है और शारीरिक आकार दर्शाती मूर्ति तथा तसबीर उन्ही देवाधिदेव महादेव के साकार स्वरुप का प्रतिक है).


हरतालिका तीज का व्रत करने वाली युवतियां-स्त्रियां इस दिन सूर्योदय से पूर्व ही उठ जाती हैं और नहा धोकर पूरा श्रृंगार करती हैं. पूजन के लिए केले के पत्तों से मंडप बनाकर गौरी−शंकर (महेश-पार्वती) की प्रतिमा स्थापित की जाती है. इसके साथ पार्वती जी को सुहाग (श्रृंगार) का सारा सामान ((सुगन्धित फूलों का गजरा, चूड़ियां, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, मेहंदी आदि) चढ़ाया जाता है. माहेश्वरी समाज में महेश-पार्वती को युग्मपत्र (सोनपत्ता/आपटा-पर्ण) चढाने का भी विधान और परंपरा है. हरतालिका तीज के दिन उपवास करें यह प्रचारित है, प्रचलित है; कहा जाता है की हरतालिका व्रत निर्जला किया जाता हैं अर्थात पूरा दिन एवं रात अगले सूर्योदय तक जल ग्रहण नहीं किया जाता है लेकिन माहेश्वरी संस्कृति के मूल परंपरा के अनुसार इस दिन उपवास का अथवा जल ग्रहण नहीं करने का (निर्जला रहने का) कोई विधान नहीं है. माहेश्वरी समाज की मूल परंपरा के अनुसार हरतालिका व्रत में उपवास करने का अथवा निर्जला रहने का कोई विधि-विधान नहीं है. इस दिन महेश-पार्वती के मंदिर में होपहर में महा आरती (भगवान महेश, माता गौरी एवम गणेशजी की पूजा और आरती) की जाती है. हरतालिका व्रत के दिन रतजगा किया जाता हैं. रात में भजन, कीर्तन करते हुए जागरण कर तीन बार आरती की जाती है और महेशजी को ब्यावलो (शिव-पार्वती विवाह की कथा) को सुना जाता है.



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