Maheshwari Akhada invites Nominations for Divy Awards | Only for Maheshwari People | प्रतिष्ठित माहेश्वरी सम्मान "दिव्य पुरस्कार" के लिए नामांकन आमंत्रित | Divy Awards Are Given On Mahesh Navami

The nomination process of Divy Awards is open to the Maheshwari People. Even self-nomination can be made. Nominations/Recommendations are invited from 1st August to 15th December every year. Nominations and recommendations have been started for the prestigious Maheshwari Awards of Maheshwari Community Divy Awards (Divy Shri, Divy Bhushan, Divy Vibhushan). These Maheshwari Awards have been started by Maheshwari Akhada (whose official name is 'Divyashakti Yogpeeth Akhara'), the highest Gurupeeth of Maheshwari community. This award is given to the recipient by the Peethadhipati of Maheshwari Akhada, who is decorated with the title of Maheshacharya, the highest guru post of Maheshwari community (At the present time Yogi Premsukhanand Maheshwari is the Peethadhipati of Maheshwari Akhada and Maheshacharya). The last date for nominations for the Divy Awards is December 15. These awards are given on Mahesh Navami.

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Nominations and recommendations have also been invited for consideration on a broad basis from national office bearers of Maheshwari social organizations, state officials, Maheshwari Ratna Award winners, Maheshwari institutions/trusts and many other sources.

Nominations and recommendations for Divy Awards can only be made through WhatsApp No. 9405826464 and e-mail maheshwariakhada@gmail.com. All Maheshwari community members can also self-nominate and recommend themselves. Nominations and recommendations should include all relevant details, which should clearly include the distinguished (distinguished/notable) and extraordinary achievements of the nominee, his or her respective field, service etc.

The divine awards are announced every year in the fourth week of December or the first week of January. This award is given for distinguished and extraordinary achievements and services of a Maheshwari individual in all fields and disciplines, such as spirituality, art, education, literature, science, sports, medicine, social work (social service), science and engineering, service, business and industry. Are done. All Maheshwari people without discrimination of race, occupation, position or sex are eligible for these awards.


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प्रतिष्ठित माहेश्वरी सम्मान "दिव्य पुरस्कार" के लिए नामांकन आमंत्रित

'दिव्य विभूषण, दिव्य भूषण और दिव्यश्री' माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च पुरस्कारों में से हैं। यह पुरस्कार "माहेश्वरी अखाड़ा (दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा)" द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तरपर दीये जानेवाले प्रतिष्ठित "माहेश्वरी सम्मान" है। माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार "माहेश्वरी रत्न" के बाद क्रमशः चौथे, तीसरे और दूसरे स्थान पर दिव्यश्री', 'दिव्य भूषण' और 'दिव्य विभूषण' यह श्रेष्ठ पुरस्कार है। इस सम्मान में एक पदक और प्रशस्ति पत्र (सम्मान पत्र) दिया जाता है।

माहेश्वरी अखाड़ा द्वारा प्रदान किये जानेवाले माहेश्वरी समाज के प्रतिष्ठित सम्मान दिव्य पुरस्कारों (दिव्यश्री, दिव्य भूषण, दिव्य विभूषण) के लिए नामांकन और सिफारिशें शुरू की गई है। दिव्य पुरस्कारों के लिए नामांकन की अंतिम तिथि 15 दिसंबर है।

माहेश्वरी समाज-संगठनों के राष्ट्रिय पदाधिकारियों, प्रदेश पदाधिकारियों, माहेश्वरी रत्न पुरस्कार विजेताओं, माहेश्वरी संस्थानों/संस्थाओं/ट्रस्टों और कई अन्य स्रोतों से भी व्यापक आधार पर विचार करने के लिए नामांकन और सिफारिशें आमंत्रित की गई हैं।

दिव्य पुरस्कारों के लिए नामांकन और सिफारिशें केवल WhatsApp No. 9405826464 तथा ई-मेल maheshwariakhada@gmail.com पर प्राप्त की जाएंगी। सभी माहेश्वरी समाजजन स्वयं भी स्व-नामांकन और सिफारिश कर सकते हैं। नामांकन और सिफारिशों में सभी प्रासंगिक विवरण शामिल होने चाहिए, जिसमें स्पष्ट रूप से नामांकित व्यक्ति की प्रतिष्ठित (विशिष्ट/उल्लेखनीय) और असाधारण उपलब्धियां, उनके या उसके संबंधित क्षेत्र, सेवा आदि विवरण शामिल होने चाहिए।

दिव्य पुरस्कारों की घोषणा हर साल दिसंबर के चौथे सप्ताह में अथवा जनवरी के पहले सप्ताह में की जाती है। यह पुरस्कार सभी क्षेत्रों और विषयों, जैसे अध्यात्म, कला, शिक्षा, साहित्य, विज्ञान, खेल, चिकित्सा, सामाजिक कार्य (समाजसेवा), विज्ञान और इंजीनियरिंग, सेवा, व्यापार और उद्योग में माहेश्वरी व्यक्ति के विशिष्ट और असाधारण उपलब्धियों और सेवाओं के लिए प्रदान किये जाते है। स्पर्धा, व्यवसाय, स्थिति या लिंग (race, occupation, position or sex) के भेदभाव के बिना सभी माहेश्वरी लोग इन पुरस्कारों के लिए पात्र हैं।

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दिव्य विभूषण पुरस्कार -
दिव्य विभूषण सम्मान माहेश्वरी समाज का दूसरा सर्वोच्च सम्मान है। जो माहेश्वरी व्यक्ति अपने किसी विशिष्ट क्षेत्र में असाधारण और उत्कृष्ट सेवा करते हैं उनको दिव्य विभूषण दिया जाता है। यह सम्मान समाज के लिये बहुमूल्य योगदान के लिए भी दिया जाता है।

दिव्य भूषण पुरस्कार -
दिव्य भूषण सम्मान माहेश्वरी समाज का तीसरा सर्वोच्च सम्मान है। यह सम्मान किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट और उल्लेखनीय सेवा के लिए प्रदान किया जाता है। इसमें माहेश्वरी समाज के संगठन के पदाधिकारीयों द्वारा की गई सेवाएं भी शामिल हैं।

दिव्यश्री पुरस्कार -
दिव्यश्री या दिव्य श्री सम्मान माहेश्वरी समाज का चौथा सर्वोच्च सम्मान है। दिव्यश्री सम्मान किसी भी क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवा के लिए प्रदान किया जाता है। इसमें सरकारी कर्मचारी के तौर पर माहेश्वरी व्यक्ति द्वारा की गई सेवाएं भी शामिल हैं।

Divy Vibhushan — The second highest Maheshwari honour (award).

Divy Bhushan — The third highest Maheshwari honour (award).

Divy Shri — The fourth highest Maheshwari honour (award).

दिव्य पुरस्कार (दिव्यश्री, दिव्य भूषण, दिव्य विभूषण) के बारेमें अधिक जानकारी के लिए इस link पर click कीजिये > माहेश्वरी समाज के प्रतिष्ठित पुरस्कार/सम्मान- दिव्य पुरस्कार

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माहेश्वरी समाज के प्रतिष्ठित पुरस्कार/सम्मान- दिव्य पुरस्कार


दिव्य पुरस्कार 3 श्रेणियों में प्रदान किए जाते हैं- दिव्यश्री, दिव्य भूषण, दिव्य विभूषण। माहेश्वरी अखाड़ा द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिए जानेवाले माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च सम्मान 'माहेश्वरी रत्न’ के बाद क्रमशः चौथे, तीसरे और दूसरे स्थान पर दिव्यश्री, दिव्य भूषण और दिव्य विभूषण यह श्रेष्ठ पुरस्कार है।

दिव्य पुरस्कार माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च पुरस्कारों में से हैं। दिव्य पुरस्कार (दिव्यश्री, दिव्य भूषण, दिव्य विभूषण) आम तौर पर सिर्फ माहेश्वरीयों कों दिए जाने वाले सम्मान है जो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों जैसे कि, अध्यात्म, कला, शिक्षा, उद्योग, साहित्य, विज्ञान, खेल, चिकित्सा, समाज सेवा और सार्वजनिक जीवन आदि में उनके विशिष्ट योगदान के लिए दिए जाते है। इस सम्मान में एक पदक और प्रशस्ति पत्र (सम्मान पत्र) दिया जाता है। यह पुरस्कार प्रतिवर्ष दिसंबर माह में घोषित किये जाते है और आम तौर पर महेश नवमी के दिन प्रदान किये जाते है।

दिव्य पुरस्कारों के लिए स्पष्टरुप से मापदण्ड यह होते हैं कि जो माहेश्वरी व्यक्ति किसी विशिष्ट क्षेत्र में असाधारण और उत्कृष्ट सेवा करते हैं उनको दिव्य विभूषण दिया जाता है। इसी तरह दिव्य भूषण के मापदण्ड उच्च श्रेणी की उत्कृष्ट सेवाओं पर आधारित होते हैं, तो वहीं दिव्यश्री सिर्फ उत्कृष्ट सेवाओं के लिए प्रदान किए जाते हैं।

दिव्य पुरस्कारों के लिए एक सँख्या-सीमा निर्धारित की गई है। कुल दिव्य पुरस्कारों की अधिकतम संख्या 28 ही हो सकती है जिनमें अधिकतम 4 दिव्य विभूषण, 8 दिव्य भूषण और 16 दिव्यश्री है। एक बार दिव्यश्री मिलने के बाद यदि किसी को उससे उच्चतर श्रेणी का दिव्य पुरस्कार यानि दिव्यभूषण या दिव्यविभूषण के लिए चयन करना है तो ऐसे किसी मामले में पूर्व दिव्य पुरस्कार प्रदान किए जाने के समय से कम से कम पांच वर्ष की अवधि समाप्त हो जाने के बाद ही वे प्रदान किए जा सकते हैं।

दिव्य विभूषण पुरस्कार -
दिव्य विभूषण सम्मान माहेश्वरी समाज का दूसरा सर्वोच्च सम्मान है। जो माहेश्वरी व्यक्ति अपने किसी विशिष्ट क्षेत्र में असाधारण और उत्कृष्ट सेवा करते हैं उनको दिव्य विभूषण दिया जाता है। यह सम्मान समाज के लिये बहुमूल्य योगदान के लिए भी दिया जाता है।

दिव्य भूषण पुरस्कार -
दिव्य भूषण सम्मान माहेश्वरी समाज का तीसरा सर्वोच्च सम्मान है। यह सम्मान किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट और उल्लेखनीय सेवा के लिए प्रदान किया जाता है। इसमें माहेश्वरी समाज के संगठन के पदाधिकारीयों द्वारा की गई सेवाएं भी शामिल हैं।

दिव्यश्री पुरस्कार -
दिव्यश्री या दिव्य श्री सम्मान माहेश्वरी समाज का चौथा सर्वोच्च सम्मान है। दिव्यश्री सम्मान किसी भी क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवा के लिए प्रदान किया जाता है। इसमें सरकारी कर्मचारी के तौर पर माहेश्वरी व्यक्ति द्वारा की गई सेवाएं भी शामिल हैं।

दिव्य पुरस्कार पदक का डिजाइन -
दिव्य विभूषण — इस पदक का डिजाइन गोलाकार है। गोल हिस्‍से की गोलाई 4.4 सेंटीमीटर तथा मोटाई करीब 0.6 मिलीमीटर है। इसके ऊपर गोलाकार में तीन सितारों (3 Stars) की नक्‍काशी की गई है तीन सितारों के ऊपर 'दिव्य' और निचे 'विभूषण' हिंदी लिपि में उकेरा गया है। इसके पीछे गोलाकार में माहेश्वरी समाज के प्रतीक चिन्‍ह- मोड़ की नक्‍काशी की गई है। मोड़ के निचे हिंदी में 'माहेश्वरी' उकेरा गया है।

दिव्यभूषण — यह पदक दिव्य विभूषण की तरह ही है लेकिन इसके ऊपर सामने से गोलाकार में दो सितारों (2 Stars) की नक्‍काशी की गई है। दो सितारों के ऊपर 'दिव्य' और निचे 'भूषण' हिंदी लिपि में उकेरा गया है।

दिव्यश्री — दूसरे दिव्य पदकों की तरह ही यह पदक है लेकिन इसके ऊपर गोलाकार में सामने से एक सितारे (1 Star) की नक्‍काशी की गई है। एक सितारे के ऊपर 'दिव्य' और निचे 'श्री' हिंदी लिपि में उकेरा गया है।

Divy awards (दिव्य पुरस्कार)

Divy Awards (दिव्य पुरस्कार) are Maheshwari Akhada's highest Maheshwari awards. Divy Awards were instituted in the year 2017. The award is given in three categories, namely, Divy Vibhushan (दिव्य विभूषण), Divy Bhushan (दिव्य भूषण) and Divy Shri (दिव्य श्री).

The award seeks to recognise work of any distinction and is given for distinguished and exceptional achievements/service in all fields of activities/disciplines, such as Art, Literature and Education, Sports, Medicine, Social Work, Science and Engineering, Public Affairs, Civil Service, Trade and Industry etc.

The recommendations made by the Awards Committee are submitted to the Mahamantri and the President for their approval. No award is conferred except on the recommendation of the Awards Committee.

The Awards are announced in December every year and are presented by the Peethadhipati of Maheshwari Akhada. The ceremony is generally held on Mahesh Navmi.

Divy Vibhushan — The second highest Maheshwari honour (award).
Divy Bhushan — The third highest Maheshwari honour (award).
Divy Shri — The fourth highest Maheshwari honour (award).

देखें Link > प्रतिष्ठित माहेश्वरी सम्मान "दिव्य पुरस्कार" के लिए नामांकन आमंत्रित

माहेश्वरी समाज की धार्मिक परंपरा के अनुसार धनतेरस के दिन हाथी पूजन का है विशेष महत्व


माहेश्वरी समाज की धार्मिक परंपरा के अनुसार धनतेरस के दिन हाथी की पूजा करने का विधान है। माहेश्वरी धार्मिक मान्यता के अनुसार हाथी को स्वास्थ्य, शक्ति और ऐश्वर्य प्रदाता के रूप में 'गजान्तलक्ष्मी' कहा जाता है। हाथी के पर्याय के रूप में, जिसका सामने का दाहिना पैर आगे हो ऐसे सोने, चांदी, तांबे, पीतल, कांसे या लाल मिट्टी के हाथी को पूजा जाता है। चांदी अथवा पीतल के हाथी को पूजाघर में, हाथी का मुख उत्तर दिशा की ओर करकर रखा जाता है तथा उसकी नित्य पूजा की जाती है।

कहते हैं कि‍ एक बार महाभारत काल में धनतेरस के दिन पूरे हस्‍त‍िनापुर में गजलक्ष्मी पर्व मनाया गया। इस उत्‍सव पर हस्‍तिनापुर की महारानी गांधारी ने पूरे नगर को शाम‍िल होने के ल‍िए आमंत्रित क‍िया था लेक‍िन कुंती को नहीं बुलाया। व‍िधान के अनुसार इसमें मिट्टी के हाथी की पूजा होनी थी। ऐसे में गांधारी के 100 कौरव पुत्रों ने म‍िट्टी लाकर महल के बीच व‍िशालकाय हाथी बनाया। जि‍ससे कि‍ सभी लोग उसकी पूजा कर सके। ऐसे में पूजा में हस्‍तिनापुर की महारानी गांधारी द्वारा न बुलाए जाने से कुंती काफी दुखी थी। ज‍िससे उनके बेटे अर्जुन से मां का दुख देखा नहीं गया। उन्‍होंने मां से कहा क‍ि वह पूजा की तैयारी करें और वह म‍िट्टी का नहीं बल्‍क‍ि जीव‍ित हाथी लेकर आते हैं। फिर अर्जुन ने देवताओं के राजा इंद्र से ऐरावत हाथी को पूजने हेतु भेजने का आवाहन किया। अर्जुन के आवाहन पर इंद्र ने ऐरावत हाथी को अर्जुन के पास भेजा। अर्जुन ने हाथी को मां कुंती के सामने खड़ा कर द‍िया और कहा कि तुम इसकी पूजा करो। कुंती को ऐरावत हाथी की पूजा करते देख गांधारी को अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्‍होंने कुंती से क्षमा मांगी। इसके बाद से ही गजलक्ष्‍मी के रूपमें हाथी की पूजा शुरू हो गई। तभी से धनतेरस के दिन सजे-धजे सोने, चांदी, तांबे, पीतल, कांसे या लाल मिट्टी के हाथी को पूजने की परंपरा आरंभ हुई। महालक्ष्मी के गजलक्ष्मी स्वरुप को हाथी के रूपमें पूजा जाने लगा। 

गजलक्ष्मी- महालक्ष्मी के आठ स्वरुप है जिनके अधीन है अष्टसम्पदायें, इन्हे अष्टलक्ष्मी के नाम से जाना जाता है। इन्ही अष्टलक्ष्मीयों में से एक है- गजलक्ष्मी। इन्हीं की कृपा से बल और आरोग्य के साथ साथ धन-वैभव-समृद्धि के साथ ही राजपद का आशीर्वाद प्राप्त होता है; इसीलिए गजलक्ष्मी देवी को राजलक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है। गज (हाथी) को वर्षा करने वाले मेघों तथा उर्वरता का भी प्रतीक माना जाता है इसलिए गजलक्ष्मी उर्वरता तथा समृद्धि की देवी भी हैं। इसी गजलक्ष्मी को हाथी के रूपमें गजान्तलक्ष्मी के नाम से पूजा जाता है।


धनतेरस अर्थात धन्वन्तरि तेरस धन्वन्तरि से धन और उनके प्राकट्य का दिन 'तेरस' मिलकर "धनतेरस" शब्द बना है कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धन्वन्तरि का प्राकट्य हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थीं, उसी प्रकार आयुर्वेद के देवता भगवान धन्वंतरी भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं धन्वन्तरि आरोग्य, सेहत, स्वास्थ्य, आयु और तेज के आराध्य देवता हैं (Lord Dhanvantari is God of Health) दीपावली के पांच दिवसीय पर्व का पहला दिन है- धनतेरस इसी दिन से दीपावली पर्व की शुरुवात होती है

धनतेरस की पूजाविधि-
महालक्ष्मी पूजन से 2 दिन पहले आरोग्‍य व दीर्घायु की कामना के साथ धनतेरस पर्व मनाया जाता है, आरोग्यदेव भगवान धन्वन्तरि की पूजा की जाती है। धनतेरस के दिन स्वास्थ्य के अनुकूल ऐसे रसोई के बर्तन खरीदने की परंपरा है। पीतल धातु भगवान धन्वन्तरि को बहुत प्रिय है, इसलिए धनतेरस के दिन पीतल की चीज़ों का खरीदना बहुत शुभ माना जाता है। सफाई के लिए नई झाडू और सूपड़ा/सुपली खरीदकर उसकी पूजा की जाती है। इस दिन रसोईघर की साफसफाई की जाती है, रसोई में प्रयोग किये जानेवाले प्रमुख बर्तनो (जैसे की चकला/चकलुटा- यह लकड़ी का बना होता है जिसपर चपाती और रोटी बेली जाती है, बेलन, तवा, कढ़ई आदि) और चूल्हे की (वर्तमान समय में गॅस को ही चूल्हा समझे) पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि धनवंतरी भगवान संध्या काल में प्रकट हुए थे अतः संध्या के समय पूजन किया जाना उत्तम माना जाता है। पूजन में आयुर्वैदिक घरेलु ओषधियाँ जैसे आंवला, हरड़, हल्दी आदि अवश्य रखें। जल से भरे घड़े में हरितकी (हरड़), सुपारी, हल्दी, दक्षिणा, लौंग का जोड़ा आदि वस्तुएं डाल कर कलश स्थापना करें। भगवान धन्वंतरि की पूजा में सात धान्यों की पूजा होती है। जैसे कि गेहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर। इन सब के साथ ही पूजा में विशेष रूप से स्वर्णपुष्पा के पुष्प से माँ दुर्गा का पूजन करना बहुत ही लाभकारी होता है। इस दिन भगवान धन्वंतरि के साथ ही माँ दुर्गा के पूजा का विशेष महत्व है। धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि को भोग में श्वेत मिष्ठान्न का भोग लगाना चाहिए। आयुर्वेद के देवता धन्वन्तरि के साथ ही योग के देवता भगवान महेश (शिव) और बल (स्वास्थ/शक्ति) की देवता महाकाली (देवी दुर्गा) का पूजन भी किया जाता है। धनतेरस पर हाथी की पूजा करने का भी विधान है। धनतेरस की संध्या (शाम) को यम देवता के नाम पर दक्षिण दिशा में एक दीप जलाकर रखा जाता है।

आरोग्य रूपी धन से सम्बंधित है धनतेरस, ना की सोना-चांदी-हिरे-जवारात रूपी धन से लोग धनतेरस के दिन को सोने-चांदी के गहने/अलंकार खरीदने का शुभ दिन समझने लगे है और इसीलिए इस दिन धन अर्थात रूपया-पैसा, सोने-चांदी के गहने/अलंकार आदि खरीदते है तथा कुबेर और रूपया-पैसा, सोने-चांदी के गहनों की पूजा करते है लेकिन वस्तुतः रूपया-पैसा-सोना-चांदी-हीरे-जवारात रूपी धन की पूजा के लिए महालक्ष्मी-पूजन (दीपावली) का दिन है, धनतेरस का नहीं 

धनतेरस का पर्व स्वास्थ्य के प्रति समर्पित दिन होने के कारन इस दिन स्वास्थ्य साधनों के उपकरण (Health Instrument, Exercise & Fitness Instrument) खरीदने चाहिए तथा इनकी पूजा की जानी चाहिए; स्वास्थ्य से सम्बंधित सेमीनार, कार्यशाला, चिकित्सा शिबिर (हेल्थ कैंप), गोष्टी आदि का आयोजन किया जाना चाहिए, यही धनतेरस की मूल भावना के अनुरूप, संयुक्तिक और औचित्यपूर्ण है। हमें यह समझने की जरुरत है की- धनतेरस के दिन को स्वास्थ्य के दिन के रूप में भूलकर/भुलाकर इसके कुबेर पूजन और सोने-चांदी के गहने/अलंकार खरीदने के दिन के रूप में प्रचारित होने से ना केवल इस दिन की मूलभावना, मूल उद्देश्य समाप्त होता है बल्कि भारतीय संस्कृति और जीवनदर्शन को दर्शानेवाले इस पर्व की सार्थकता और औचित्य ही समाप्त हो जाता है। यह भारतीय संस्कृति की बहुत बड़ी हानि है।

धनतेरस का सन्देश यही है की इस दिन अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग होना है, जीवन में स्वास्थ्य के महत्त्व को समझना है, आनेवाले समय में अपने स्वास्थ्य को सुनिश्चित करना है, अपने बेहतर स्वास्थ्य का नियोजन करना है और भगवान धन्वन्तरि से प्रार्थना करनी है कि वे समस्त जगत को निरोग कर मानव समाज को दीर्घायु प्रदान करें।





जैसे राजपूत माने शेर (Loin), जैसे सिख माने बाघ (Tiger)
वैसे ही माहेश्वरी माने "हाथी" (Elephant)

- भगवान महेशजी की संतान गणेशजी का मुख (Face) हाथी का है और माहेश्वरी खुद को भगवान महेशजी की संतान मानते है इसलिए माहेश्वरीयो का प्रतिक है "हाथी"

- 'शेर' की तरह अपना पेट भरने के लिए किसी और को जान से नहीं मारता है हाथी ; यही माहेश्वरी संस्कृति है इसलिए माहेश्वरीयो का प्रतिक है "हाथी"

- शक्तिशाली होनेपर भी आम तौर पर हाथी शांतिप्रिय होता है लेकिन अगर बिफर जाये तो फिर सामनेवाले को कुचलकर रख देता है. हाथी से तो राजा कहलानेवाला शेर भी खौफ खाता है. यही है माहेश्वरी attitude... इसलिए माहेश्वरीयो का प्रतिक है "हाथी"

- हाथी को 'समृद्धि और ऐश्वर्य' का प्रतिक माना जाता है इसलिए माहेश्वरीयो का प्रतिक है "हाथी" 
So, Elephant is a Maheshwari symbol of lifestyle.

अधर्म पर धर्म की विजय का पर्व विजयादशमी सम्पूर्ण समाज और राष्ट्र के लिये मंगलमय हो...


नवरात्रि के नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति/देवी के विविध रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि का दसवां "विजयादशमी" का दिन आदिशक्ति की पूजा का है। इसी तिथि पर माँ आदिशक्ति ने महिषासुरमर्दिनि के रूपमें असुर महिषासुर का वध किया था। त्रेता युग में इसी तिथि पर श्रीराम ने लंकापति दशानन रावण का वध किया था। असुरों और असुरी शक्तियों पर पूर्ण विजय का दिन है- विजयादशमी।

Happy Dussehra to all of you. May Goddess Adishakti gives you and everyone Success, Joy and all the Happiness.
Jay Maa Bhawani ! Jay Mahesh !!

आप सभी को धर्म, सत्य, न्याय और मानवता की जीत के प्रतिक का दिन "विजया दशमी" की हार्दिक बधाई ! आपको जीवन में सदैव यश, विजय (सक्सेस) मिले यही शुभकामनाएं...!
जय माँ भवानी ! जय महेश !!

- शुभेच्छुक -
माहेश्वरी अखाड़ा
(दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा)




वर्ष 2018, देश में सर्वप्रथम स्थापित "महेश चौक" का रजत महोत्सवी वर्ष


देश का पहला महेश चौक स्थापित हुवा था महाराष्ट्र के बीड में,

वर्ष 2018 है रजत महोत्सवी वर्ष


आज हम देश के कई शहरों में "महेश चौक" स्थापित हुए है. यह हम माहेश्वरीयों के लिए, माहेश्वरी समाज के लिए गौरव की बात है. जिस शहर के माहेश्वरी समाज से प्रेरणा लेकर अपने-अपने शहर में महेश चौक बनाने की प्रेरणा देशभर के माहेश्वरी समाज को मिली है, जिस शहर के माहेश्वरी समाज द्वारा स्थापित देश के पहले "महेश चौक" से मिली है, वो है महाराष्ट्र के बीड शहर में. माहेश्वरी समाज बीड द्वारा वर्ष 1994 में बीड शहर में "महेश चौक" के नाम से एक चौक बनाया गया जो देशभर में बना हुवा पहला " महेश चौक " है. देश में बने इस प्रथम (पहले) महेश चौक को 24 वर्ष पूर्ण हुए है और वर्ष 2018 यह इसका रजत महोत्सवी वर्ष है. भगवान महेशजी की प्रेरणा-आशीर्वाद से इस चौक को स्थापित करने में प्रेम माहेश्वरी (साबु), जुगलकिशोर लोहिया की अग्रणी भूमिका रही. (फोटो में, दाएं से बाएं, तत्कालीन नगर परिषद पार्षद पारिखबाई, जवाहरलालजी सारडा, सुभाषचंद्रजी सारडा, तत्कालीन नगराध्यक्ष भारतभूषण क्षीरसागर, जुगलकिशोर लोहिया, प्रेमसुख साबु, जगदीश सिकची).

देश के प्रथम (पहले) महेश चौक के रजत महोत्सवी वर्ष के शुभ अवसरपर देशभर के समस्त माहेश्वरी समाज को बहुत बहुत शुभकामनाएं... बधाई ! बीड के समस्त माहेश्वरी समाज का बहुत बहुत अभिनन्दन !!!





CM Rajasthan Vasundhara Raje conveyed wishes on Mahesh Navami


महेश नवमी के पर्व पर 
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधराराजे ने दी शुभकामनाएं


माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च धार्मिक-आध्यात्मिक संस्था माहेश्वरी अखाड़ा के पीठाधिपति योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी जी ने राजस्थान के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर, महेश नवमी पर राजस्थान के मुख्यमंत्री द्वारा शुभकामनाएं... दी जानी चाहिए ऐसी अपेक्षा व्यक्त की थी, इसलिए प्रयास किये थे. इसके मद्देनजर, माहेश्वरीयों का होमलैंड माने जानेवाले "राजस्थान" के मुख्यमंत्री ने आज तक, अब तक के इतिहास में पहली बार महेश नवमी के पर्व पर माहेश्वरी समाज के लिए शुभकामनाएं प्रेषित की. माहेश्वरी अखाडा एवं समस्त माहेश्वरी समाज की ओरसे राजस्थान की मुख्यमंत्री माननीया वसुंधरा राजे एवं राजस्थान सरकार का बहुत बहुत धन्यवाद !

Letter to CM of Rajasthan for declaring public holiday at the Mahesh Navami


माहेश्वरी समाज के सबसे बड़े त्योंहार महेश नवमी के पर्व पर सार्वजनिक अवकाश (छुट्टी) घोषित करने के लिए योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी (पीठाधिपति, माहेश्वरी अखाड़ा) द्वारा माननीय मुख्यमंत्री राजस्थान वसुंधरा राजे को पत्र l

Letter to Hon'ble Chief Minister of Rajesthan Vasundhara Raje by the Yogi Premsukhanand Maheshwari (Peethadhipati of Maheshwari Akhada) for declaring public holiday at the festival of Mahesh Navami, the biggest festival of Maheshwari community.

Letter to PM Modi for declaring gazetted holiday at the Mahesh Navami


माहेश्वरी समाज के सबसे बड़े त्योंहार महेश नवमी के पर्व पर राजपत्रित अवकाश (छुट्टी) घोषित करने के लिए योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी (पीठाधिपति, माहेश्वरी अखाड़ा) द्वारा भारत के माननीय प्रधानमंत्री मोदी को पत्र l

Letter to Honorable Prime Minister of India Modi by the Yogi Premsukhanand Maheshwari (Peethadhipati of Maheshwari Akhada) for declaring gazetted holiday at the festival of Mahesh Navami, the biggest festival of Maheshwari community.

Mahesh Navami 2018 Celebration Date and Significance

महेश नवमी उत्सव की तारीख में युधिष्ठिर संवत का महत्व :-


प्रतिवर्ष, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को "महेश नवमी" का उत्सव मनाया जाता है. "महेश नवमी" यह माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिवस है अर्थात इसी दिन माहेश्वरी समाज की वंशोत्पत्ति (माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति) हुई थी. इसीलिए माहेश्वरी समाज इस दिन को माहेश्वरी समाज के स्थापना दिवस के रूप में मनाता है.

ऐसी मान्यता है कि, भगवान महेश और आदिशक्ति माता पार्वति ने ऋषियों के शाप के कारन पत्थरवत् बने हुए 72 क्षत्रिय उमराओं को युधिष्ठिर संवत 9 ज्येष्ठ शुक्ल नवमी के दिन शापमुक्त किया और पुनर्जीवन देते हुए कहा की, "आज से तुम्हारे वंशपर (धर्मपर) हमारी छाप रहेगी, तुम “माहेश्वरी’’ कहलाओगे". भगवान महेशजी के आशीर्वाद से पुनर्जीवन और माहेश्वरी नाम प्राप्त होने के कारन तभी से माहेश्वरी समाज ज्येष्ठ शुक्ल नवमी (महेश नवमी) को 'माहेश्वरी उत्पत्ति दिन (स्थापना दिन)' के रूप में मनाता है. इसी दिन भगवान महेश और देवी महेश्वरी (माता पार्वती) की कृपा से माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई इसलिए भगवान महेश और देवी महेश्वरी को माहेश्वरी धर्म के संस्थापक मानकर माहेश्वरी समाज में यह उत्सव 'माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिन' के रुपमें बहुत ही भव्य रूप में और बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है. महेश नवमी का यह पर्व मुख्य रूप से भगवान महेश (महादेव) और माता पार्वती की आराधना को समर्पित है.


आज ई.स. 2018 में युधिष्ठिर संवत 5160 चल रहा है. माहेश्वरी वंशोत्पत्ति युधिष्ठिर संवत 9 में हुई है तो इसके हिसाब से माहेश्वरी वंशोत्पत्ति आज से 5151 वर्ष पूर्व हुई है. "महेश नवमी उत्सव 2018" को माहेश्वरी समाज अपना 5151 वा वंशोत्पत्ति दिन मना रहा है.

माहेश्वरी समाज में युधिष्ठिर सम्वत का है प्रचलन
समयगणना के मापदंड (कैलेंडर वर्ष) को 'संवत' कहा जाता है. किसी भी राष्ट्र या संस्कृति द्वारा अपनी प्राचीनता एवं विशिष्ठता को स्पष्ट करने के लिए किसी एक विशिष्ठ कालगणना वर्ष/संवत (कैलेंडर) का प्रयोग (use) किया जाता है. आज के आधुनिक समय में सम्पूर्ण विश्व में ईसाइयत का ग्रेगोरीयन कैलेंडर प्रचलित है. इस ग्रेगोरीयन कैलेंडर का वर्ष 1 जनवरी से शुरू होता है. भारत में कालगणना के लिए युधिष्ठिर संवत, युगाब्द संवत्सर, विक्रम संवत्सर, शक संवत (शालिवाहन संवत) आदि भारतीय कैलेंडर का प्रयोग प्रचलन में है. भारतीय त्योंहारों की तिथियां इन्ही भारतीय कैलेंडर से बताई जाती है, नामकरण संस्कार, विवाह आदि के कार्यक्रम पत्रिका अथवा निमंत्रण पत्रिका में भारतीय कैलेंडर के अनुसार तिथि और संवत (कार्यक्रम का दिन और वर्ष) बताने की परंपरा है.


माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति जब हुई तब कालगणना के लिए युधिष्ठिर संवत प्रचलन में था. मान्यता के अनुसार माहेश्वरी वंशोत्पत्ति युधिष्ठिर संवत 9 में ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष के नवमी को हुई है. इसीलिए पुरातन समय में माहेश्वरी समाज में कालगणना के लिए 'युधिष्ठिर संवत' का प्रयोग (use) किया जाता रहा है. वर्तमान समय में देखा जा रहा है की माहेश्वरी समाज में युधिष्ठिर संवत के बजाय विक्रम सम्वत या शक सम्वत का प्रयोग किया जा रहा है. विक्रम या शक सम्वत के प्रयोग में हर्ज नहीं है लेकिन इससे माहेश्वरी समाज की विशिष्ठता और प्राचीनता दृष्टिगत नहीं होती है. जैसे की यदि युधिष्ठिर संवत का प्रयोग किया जाता है तो, वर्तमान समय में चल रहे युधिष्ठिर संवत (वर्ष) में से 9 वर्ष को कम कर दे तो माहेश्वरी वंशोत्पत्ति वर्ष मिल जाता है. 

माहेश्वरी संस्कृति की असली पहचान युधिष्ठिर संवत से होती है. माहेश्वरी समाज की सांस्कृतिक पहचान है युधिष्ठिर संवत. इसलिए माहेश्वरी समाज के सांस्कृतिक पर्व-उत्सव, नामकरण, विवाह, गृहप्रवेश, सामाजिक व्यापारिक-व्यावसायिक कार्यों  के अनुष्ठान, इन सबका दिन बताने के लिए युधिष्ठिर संवत का उल्लेख किया जाना चाहिए; विक्रम संवत, शक संवत या अन्य किसी संवत का नहीं (जैसे की- महेश नवमी उत्सव 2018 मित्ति ज्येष्ठ शु. ९ युधिष्ठिर संवत ५१६० गुरूवार, दि. 21 जून 2018).




माहेश्वरीयों के प्रथम आराध्य भगवान महेशजी

Gudi Padwa is the beginning of a New Year. Best wishes for the New Year.


जय महेश !
यह भारतीय नववर्ष आपको आरोग्य-सुख-समृद्धि देनेवाला, समस्त माहेश्वरीयों का, माहेश्वरी संस्कृति का एवं देश का गौरव बढ़ानेवाला रहे... माहेश्वरी अखाडा की ओरसे शुभकामनाएं !

Wish you and your family
 good Health, more Wealth, Happiness and so many Good Things in your Life. May Lord Mahesha & Goddess Maheshwari Bless you every day, every way, everywhere. Gudi Padwa is the beginning of a New Year. Best wishes for the New Year.

Health first, wealth later. Make your and your family's health a priority this year. Have a healthy new year.

शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती के निधन से सनातन धर्म की बहुत बड़ी हानि -महेशाचार्य प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी



कांची कामकोटि पीठ के पूज्य शंकराचार्य श्री जयेन्द्र सरस्वती जी बुधवार (28 फरवरी 2018) सुबह में ब्रह्मलीन हो गए. वे ८२ वर्ष के थे. उनके देवलोकगमन पर माहेश्वरी अखाड़े के पीठाधिपति प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी ने गहरा दुख जताते हुए कहा है की उनके निधन से सनातन धर्म की बहुत बड़ी हानि हुई है. माहेश्वरी अखाडा एवं समस्त माहेश्वरी समाज की ओरसे शंकराचार्य श्री जयेन्द्र सरस्वती जी की पावन स्मृति को कोटि कोटि नमन !
भावभीनी श्रद्धांजलि !!!

Happy Maha Shivratri !


महाशिवरात्रि भगवान शिव (महेश्वर) का एक प्रमुख पर्व है. सनातन धर्म को माननेवालों का एक प्रमुख त्योहार है. सनातन धर्म के सभी लोग इस पर्व को भक्तिभाव से मनाते है लेकिन माहेश्वरी समाज में 'महाशिवरात्रि' को महापर्व के रूप में मनाया जाता है और माहेश्वरीयों के लिए महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है.

महाशिवरात्रि का यह दिन भगवान महेश्वर (शिव) के अनेक लीलाओं से सम्बंधित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सर्वप्रथम शिवलिंग का प्राकट्य हुवा था. शिवलिंग का यह प्रथम प्राकट्य अग्निलिंग के स्वरुप में हुवा था. महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान महेश्वर (शिव) ने कालकूट नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था जो समुद्र मंथन के समय बाहर आया था. अन्य एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान महेश्वर (शिव) का विवाह पार्वति (देवी महेश्वरी) के साथ जिस दिन हुवा था वह दिन भी महाशिवरात्रि का ही दिन था.

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है इसे लेकर कई पौराणिक कथाएं और लोक मान्यताएं प्रचलित हैं, फिर भी युवा पीढ़ी को समझाने के लिए एक लाइन में कहा जा सकता है कि आज महेश और पार्वती का मैरिज डे है. महेश-पार्वती के मिलन का पर्व है- महाशिवरात्रि. महेश-पार्वती के विवाह की वर्षगांठ (Marriage Anniversary) है- महाशिवरात्रि. महेश-पार्वती का विवाह कोई साधारण विवाह नहीं था. प्रेम, समर्पण और तप की परिणति था यह विवाह. दुनिया की बड़ी से बड़ी लव स्टोरी इसके आगे फेल है. जितनी नाटकीयता और उतार-चढ़ाव इस प्रेम कहानी में है, वो दुनिया की सबसे हिट रोमांटिक फिल्म की लव स्टोरी में भी नहीं होगी.

माहेश्वरीयों के लिए क्यों खास है महाशिवरात्रि -
माहेश्वरी समाज के उत्पत्तिकर्ता होने के कारन माहेश्वरीयों के प्रथम आराध्य और इष्टदेव है- महेश-पार्वती. महेश यह भगवान महेश्वर का संक्षिप्त नाम है. महेश (महेश्वर) यह शिव का साकार स्वरुप है. इस ब्रह्माण्ड के उत्पत्तिकर्ता के निराकार स्वरुप का नाम है 'शिव' तथा निराकार स्वरुप का प्रतिक है 'शिवलिंग' और उनके साकार स्वरुप का प्रतिक है विग्रह (शारीरिक आकर को दर्शाती उनकी मूर्ति) जिसे महेश्वर अथवा महादेव के नाम से जाना जाता है. इसे समझना आवश्यक है की इस ब्रह्माण्ड के उत्पत्तिकर्ता के निराकार स्वरुप को 'शिव' कहा जाता है और उनके साकार स्वरुप को 'महेश्वर' कहा जाता है. निराकार स्वरुप को निष्क्रिय स्थिति वाला स्वरुप माना जाता है (क्योंकि निराकार स्वरुप में कोई भी क्रिया की नहीं जा सकती) तो साकार स्वरुप को सक्रीय, क्रियाशील स्वरुप माना जाता है.

परंपरागत मान्यता के अनुसार माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के समय महेश-पार्वती ने साकार स्वरूप में प्रकट होकर दर्शन दिए और उनके वरदान से माहेश्वरी वंशोत्पत्ति हुई इसलिए माहेश्वरीयों में महेश-पार्वती की साकार स्वरुप में भक्ति-आराधना करने की परंपरा है. महेश-पार्वती विवाह यह भी शिव के साकार स्वरुप में की गई उनकी लीला है. माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के समय ही महेश-पार्वती द्वारा माहेश्वरी वंशोत्पत्ति करने के बाद जो सबसे पहला कार्य किया गया था वो था माहेश्वरीयों का विवाहकार्य (माहेश्वरी समाज में विवाह की विधि में बारला फेरा (बाहर के फेरे) लेने का कारन और रिवाज भी तभी से चला आ रहा है. देखें- Maheshwari - Origin and brief History). इसीलिए माहेश्वरीयों में 'विवाह संस्कार' को सबसे महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है और इसे मंगल कारज कहा जाता है. इसीलिए महेश-पार्वती के विवाह का दिन 'महाशिवरात्रि' माहेश्वरीयों के लिए खास है और माहेश्वरी समाज इसे महापर्व के रूप में बड़े धूमधाम से से मनाता है. 

माहेश्वरी समाज में 'महाशिवरात्रि' महेश-पार्वती के प्रति सम्पूर्ण समर्पण और आराधना का पर्व है. इस दिन माहेश्वरीयों के हर घर-परिवार में महेश-पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. अभिषेक किया जाता है. महेशाष्टक का पाठ किया जाता है. महेशजी के अष्टाक्षर मंत्र "ॐ नमो महेश्वराय" का जाप किया जाता है. महेशजी की आरती करके उन्हें मिष्ठानों का भोग लगाया जाता है. महाशिवरात्रि के दिन रात्रि में आधी रात तक जागकर भजन किये जाते है. आम तौर पर सनातन धर्म को माननेवाले महाशिवरात्रि के दिन उपवास रखते है लेकिन माहेश्वरीयों में महाशिवरात्रि का उपवास रखने की परंपरा नहीं है. अनेको स्थानों पर महेश-पार्वती के विवाह का आयोजन किया जाता है, महेशजी की बारात (आम बोलचाल में इसे शिव बारात कहा जाता है) नीकाली जाती है.

माहेश्वरीयों की परंपरागत मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन महेश-पार्वती की भक्ति-आराधना से साधक के सभी दुखों, पीड़ाओं का अंत तो होता ही है साथ ही सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है, धन-धान्य, सुख-सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है. कुवांरे लड़कों और लड़कियों को अनुकूल मनचाहा जीवनसाथी मिलता है. वैवाहिक जीवन में पति-पत्नी में आजीवन प्रेममय सम्बन्ध बने रहते है. भक्तों पर महेश परिवार की अपार कृपा बरसती है.

अनंतकोटी ब्रह्मांडनायक देवाधिदेव योगिराज परब्रह्म 
भक्तप्रतिपालक पार्वतीपतये श्री महेश भगवान की जय

आप सभी को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं ! महेश-पार्वती की कृपा आप सभी पर सदैव बनी रहे. आप सभी का कल्याण हो, मंगल हो !

महेशाष्टक के लिए कृपया इस Link पर click कीजिये > महेशाष्टक

महेशजी की आरती के लिए इस Link पर click करें > महेशजी की आरती

भगवान गणेशजी की आरती के लिए इस Link पर click करें > ॐ जय श्री गणेश हरे


सेठ दामोदरदासजी राठी की जयंती पर उन्हें शत शत नमन


सेठ दामोदरदासजी राठी भारत के चमकते हुऐ सितारों में से एक थे। प्रखर देशभक्त, निष्काम दानी, भारत के उज्वल पुरूष-रत्न, भारत माता के सच्चे सपूत, मारवाड़ मुकुट थे l सेठ दामोदरदासजी राठी को माहेश्वरी समाज का (माहेश्वरीयों का) राजा कहा जाता था। आपको तिलक युग का भामाशाह कहा जाता है l माहेश्वरी अखाड़ा द्वारा दिया जानेवाला माहेश्वरी समाज का सर्वोच्च सम्मान 'माहेश्वरीरत्न' पुरस्कार वर्ष 2013 में कै. सेठ दामोदरदासजी राठी को दिया गया।

सेठ दामोदरदासजी राठी के जीवन परिचय की अधिक जानकारी के लिए कृपया इस Link पर click कीजिये > माहेश्वरी रत्न शेठ दामोदरदास राठी का जीवन परिचय

जाग जाये समाजबंधु, वर्ना मिट जायेगा माहेश्वरी समाज का अस्तित्व -प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी


सब कुछ है...
माहेश्वरी शिक्षित है,
तेजतर्रार है, कर्तबगार है,
संस्कारी है, समझदार है,
धनि है, दानी है, ज्ञानी है,
फिर भी...
माहेश्वरी समाज का वह रुतबा,
वह पहचान नहीं है जो होनी चाहिए थी.
क्यों? क्या कारण है?

क्योंकि....
- माहेश्वरी संगठित नहीं है,
- स्व-अस्मिता, स्वाभिमान नहीं है,
- अपने इतिहास की जानकारी नहीं है,
- अपने इतिहास पर नाज नहीं है,
- अपने माहेश्वरी होने पर नाज नहीं है,
- मार्गदर्शित करनेवाली धार्मिक व्यवस्था नहीं है,
- समस्त समाज का प्रतिनिधि कहलाये ऐसा कोई संगठन नहीं है,
- समाज के भविष्य के बारे में कोई योजना नहीं है,
- संगठनों का माहेश्वरी संस्कृति को बचाने पर ध्यान नहीं है,
- समाज की परम्पराओं को निभाया जाए इसपर ध्यान नहीं है,
- माहेश्वरी संस्कृति की जानकारी नई पीढ़ी को मिले ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है,
- समाज के गौरवचिन्हों की, समाज के गौरवस्थानों (समाज में जन्मे महापुरुषों) की समाज को जानकारी नहीं है, इसकी जानकारी समाज को दे ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, परिणामतः समाज के सामने कोई प्रेरणास्त्रोत नहीं है,
- समाज में एक-दूजे के प्रति कोई अपनापन नहीं है, समाज में वास्तविक एकता की कमी है; आगे बढ़ने-बढ़ाने के लिए एक-दूजे का भरपूर सहयोग करें इस भावना की कमी है,
- व्यापार-उद्योग में समाजबंधुओं को आपसी सहयोग का लाभ मिले, व्यापार-उद्योग में परंपरागत रूप से चला आया समाज का दबदबा (रुतबा) कायम रहे इसके लिए संगठनों के पास कोई दीर्घकालीन योजना, कोई ठोस कार्यक्रम, कोई स्थाई व्यवस्था  नहीं है.

इन मुख्य कारणों के अलावा अन्य भी कई कारन है. समाज के अस्तित्व को बचाने की, समाज के गौरव को बढ़ाने के लिए कार्य करने की, समाज एवं समाजजनों को प्रगति के पथ पर अग्रेसर करने की जिम्मेदारी सिर्फ संगठन की या सिर्फ समाजबंधुओं की नहीं है बल्कि दोनों मिलकर इस कार्य को करें तभी यह संभव हो सकता है. यह कार्य असंभव नहीं है बशर्ते समाजबंधु इसे ना केवल संगठन के भरोसे छोडे बल्कि अपना सक्रीय योगदान दे, अपना सक्रीय सहभाग प्रदान करें.

संगठन ने समाज के लिए कार्य करते हुए कुछ अच्छे कार्य किये है, कुछ कमियां भी रही है. हमने विगत 3-4 वर्षों में समाज की इन बातों को लेकर संगठन 'अ. भा. माहेश्वरी महासभा' से बात करने की कई बार कोशिश की लेकिन संगठन को बात करने में कोई रूचि नहीं है. हम अ. भा. माहेश्वरी महासभा से आग्रह करते है की समाजहित में वे अपने भूमिका को सकारात्मक बनावे. हमारा मानना है की समाज को आध्यात्मिक मार्गदर्शन करनेवाली संस्था और समाज के लिए सामाजिक कार्य करनेवाली संस्था यह समाज नामक रथ के 2 पहिये है. यह दोनों पहिये एकसाथ, एक दिशा में चले तो समाज को प्रगति पथ पर तेज गति से दौड़ने से कोई नहीं रोक सकता ! इसे समझा जाये की 'आध्यात्मिक संस्था' समाज की आत्मा होती है और 'सामाजिक संस्था' समाज का शरीर. बिना आत्मा के शरीर का कोई मूल्य नहीं है और बिना शरीर के आत्मा का कोई अर्थ नहीं है. जैसे शरीर के बिना आत्मा शून्य है और आत्मा के बिना शरीर 'शव' है वैसे ही आध्यात्मिक मार्गदर्शक संस्था के बिना समाज निष्प्राण हो जाता है, दिशाहीन हो जाता है, समाज में एक रिक्तता निर्माण हो जाती है; और बिना सामाजिक संस्था (संगठन) के समाज अक्रियाशील, कुछ भी करने में असमर्थ हो जाता है. समाजरूपी रथ को दौड़ने के लिए दोनों पहिये आवश्यक है. समाज के लिए 'मार्गदर्शन करनेवाली आध्यात्मिक संस्था' और 'कार्य करनेवाली सामाजिक संस्था' दोनों का समान महत्व है, दोनों आवश्यक है.

देश में तेजी से आर्थिक और सामाजिक बदलाव हो रहे है. यही समय है की भविष्य में माहेश्वरी समाज के अस्तित्व को, रुतबे को, माहेश्वरी संस्कृति को कायम रखने और बढ़ाने के लिए सभी को जाग जाना चाहिए. यही समय है की समाजबंधुओं की प्रगति को सुनिश्चित करने के लिए कार्य करने की दिशा में ठोस और स्थायी योजना बनाकर तत्परता से उसपर कार्य किया जाना चाहिए. समय किसी के लिए रुकता नहीं है, बाद में सिवाय पछतावे के बिना कुछ बचता नहीं है.

हमारे लिए यह संतोष की बात है की पिछले 3-4 वर्षों में समाज के कई कार्यकर्ता और अनेको समाजबंधुओं ने व्यक्तिगत रूप से समाज के इस कार्य में अपना अदभुत योगदान दिया है/दे रहे है. कुछ छोटे संगठन भी इस कार्य में अपना योगदान देते दिखाई दे रहे है लेकिन समाज के सबसे बड़े संगठन के ज्यादातर पदाधिकारी, वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता, समाज के चिंतक, समाज के बड़े बड़े लोग ना केवल दूर है बल्कि मौन धारण करके बैठे हुए है. महाभारतपर्व में, राजसभा में द्रौपदी के चीरहरण के समय भी भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, बड़े बड़े योद्धा, रथी-महारथियों ने मौन धारण किया था लेकिन बाद में महाभारत के धर्मयुद्ध में उन सबका क्या हश्र हुवा और इतिहास ने उन्हें कैसे भाषित किया यह हम सब जानते है, पितामह भीष्म को तो कई दिनों तक अपने मृत्यु की प्रतीक्षा करते शरशैया पर सोना पड़ा. आज समाज के अस्तित्व को बचाने के लिए, माहेश्वरी संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन के लिए, माहेश्वरी समाज के गौरव को पुनःस्थापित करने के लिए, समाज की सर्वांगीण प्रगति के लिए हम एक धर्मयुद्ध लड़ रहे है और इस समय संगठन के कुछ पदाधिकारी, ज्यादातर वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता, समाज के चिंतक, समाज के बड़े बड़े लोग मौन धारण करके बैठे हुए है, लेकिन इतिहास में इनका यह मौन भी दर्ज होगा. मुझे तो ना कुछ बनना है और ना ही कुछ पाना है लेकिन इतिहास में मेरा यह छोटासा योगदान जरूर दर्ज होगा. मेरे जीते जी भले ही ना किया जाये लेकिन मेरे जाने के 100-200 वर्षों के बाद इतिहास मुझे जरूर याद करेगा. भगवान महेशजी की असीम कृपा से मुझे अपना सम्पूर्ण जीवन माहेश्वरी समाज के लिए समर्पित करने का सुअवसर मिला यह मेरे लिए सौभाग्य की, गौरव की बात है.

मुझे विश्वास है की भगवान महेशजी और देवी महेश्वरी (पार्वती) द्वारा स्थापित यह महान माहेश्वरी संस्कृति, माहेश्वरी समाज देश-दुनिया में पुनः अपना परचम जरूर लहरायेगा. जैसे पहले के समय में माहेश्वरी समाज औरों के लिए मार्गदर्शक और प्रेरणादायक था वही गौरवपूर्ण स्थान पुनः पाने में समाज जरूर सफल होगा. जय महेश ! 

- प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी
(पीठाधिपति, माहेश्वरी अखाडा)