Maheshwari Akhada is the highest Gurupeeth of Maheshwari community. Maheshwari Akhada is the top religious-spiritual management organization of Maheshwari community. Maheshwari Akhara whose official name is 'Divyashakti Yogpeeth Akhara' but it is famous as "Maheshwari Akhara (Maheshwari Akhada). The main objective and function of Maheshwari Akhada is to organize, strengthen Maheshwari community and protect Maheshwari culture.
जैसे राजपूत माने शेर (Loin), सिख माने बाघ (Tiger), वैसे ही माहेश्वरी माने "हाथी" (Elephant)
- भगवान महेशजी की संतान गणेशजी का मुख (Face) हाथी का है और माहेश्वरी खुद
को भगवान महेशजी की संतान मानते है इसलिए माहेश्वरीयो का प्रतिक है "हाथी"
- 'शेर' की तरह अपना पेट भरने के लिए किसी और को जान से नहीं मारता है हाथी ;
यही माहेश्वरी संस्कृति है इसलिए माहेश्वरीयो का प्रतिक है "हाथी"
- शक्तिशाली होनेपर भी आम तौर पर हाथी शांतिप्रिय होता है लेकिन अगर बिफर
जाये तो फिर सामनेवाले को कुचलकर रख देता है. हाथी से तो राजा कहलानेवाला
शेर भी खौफ खाता है. यही है माहेश्वरी attitude... इसलिए माहेश्वरीयो का
प्रतिक है "हाथी"
- हाथी को 'समृद्धि और ऐश्वर्य' का प्रतिक माना जाता है इसलिए माहेश्वरीयो का प्रतिक है "हाथी"
So, Elephant is a Maheshwari symbol of lifestyle.
देखें link > हाथी है जंगल का राजा, शेर तो आतंकवादी है, आतंकी है।
Happy Dussehra to All
अधर्म पर धर्म की विजय का पर्व विजयादशमी
सम्पूर्ण समाज और राष्ट्र के लिये मंगलमय हो...!
नवरात्रि के नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति/देवी के विविध रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि का दसवां "विजयादशमी" का दिन आदिशक्ति की पूजा का है। इसी तिथि पर माँ आदिशक्ति ने महिषासुरमर्दिनि के रूपमें असुर महिषासुर का वध किया था। त्रेता युग में इसी तिथि पर श्रीराम ने लंकापति दशानन रावण का वध किया था। असुरों और असुरी शक्तियों पर पूर्ण विजय का दिन है- विजयादशमी।
Happy Dussehra to all of you. May Goddess Adishakti gives you and everyone Success, Joy and all the Happiness.
Jay Maa Bhawani ! Jay Mahesh !!
आप सभी को धर्म, सत्य, न्याय और मानवता की जीत के प्रतिक का दिन "विजया दशमी" की हार्दिक बधाई ! आपको जीवन में सदैव यश, विजय (सक्सेस) मिले यही शुभकामनाएं...!
जय माँ भवानी ! जय महेश !!
- शुभेच्छुक -
माहेश्वरी अखाड़ा
(दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा)
Happy Ganesh Chaturthi
विघ्न विनाशक गौरीनंदन प्रथमपूज्य श्री गणेशजी पत्नियां रिद्धी-सिद्धि,
पुत्र शुभ-लाभ, पौत्र (पोते) आमोद-प्रमोद सहित आप सभी के घर आँगन पधारे...
बिराजमान रहे...
जय गणेश... जय महेश !
जय गणेश... जय महेश !
Lord Ganesha is our mentor and protector. May He enrich your life by always giving you great beginnings and removing obstacles from your life !
Vakratunda Mahaakaaya Suryakotee Sama Prabha
Nirvighnam kuru mey Deva Sarva Kaaryeshu Sarvadaa
Click here for > Ganeshji ki Aarti
To all, Happy Ganesh Chaturthi !
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Maheshwaris and Ganesha
माहेश्वरीयों का गणेशजी कनेक्शन...
देवी पार्वती के कहने पर भगवान महादेव (महेशजी) ने गणेश के कटे हुए सिर पर हाथी का सिर जोड़कर गणेशजी को पुनर्जीवन दिया ठीक उसी तरह से ऋषियों के शाप के कारन मृतवत पड़े 72 क्षत्रिय उमरावों को देवी पार्वती के कहने पर ही भगवान महेशजी ने पुनः जीवित किया, पुनर्जीवन दिया. जैसे पुत्र को पिता का नाम मिलता है वैसे ही पुनर्जीवित किये हुये क्षत्रिय उमरावों को भगवान महेश्वर और माता महेश्वरी ने
"माहेश्वरी" यह अपने नाम से जुडी नई पहचान, नया नाम दिया. यह है गणेशजी और माहेश्वरीयों के जन्म में समानता. इसीलिए जैसे देवी पार्वती गणेशजी की माता है उसी तरह माहेश्वरीयों की भी माता है. जैसे गणेशजी माता पार्वती के पुत्र है वैसे ही माहेश्वरी भी माता पार्वती के पुत्र है. इस हिसाब से गणेशजी माहेश्वरीयों के लिए भाई हुए... यह है माहेश्वरीयों का गणेशजी कनेक्शन.
इसीलिए महेश-पार्वती की जीतनी कृपा अपने पुत्र गणेश पर उतनी ही कृपा है माहेश्वरीयों पर !
Radha and Krishna
आम तौर पर राधा और कृष्ण को प्रेम (Love) के प्रतिक के रूप में देखा जाता है लेकिन यथार्थ यह है की कृष्ण और राधा में केवल बाल्यावस्था की बालसुलभ मित्रता थी. भलेही आज हमारे देखने में राधा-कृष्ण की युवावस्था की प्रतिमा (मूर्ति) या चित्र (फोटो) आते हो लेकिन वास्तविकता यह है की कृष्ण और राधा की उनके युवा अवस्था में कभी मुलाकात तक नहीं हुई है. कृष्ण की अपनी 9 वर्ष की ऊम्र के बाद कृष्ण और राधा की कभी मुलाकात भी नहीं हुई और ना ही ऐसा कोई तथ्य है की कृष्ण ने राधा का कहीं जिक्र किया हो. श्रीमद भागवत में एक बार भी कही 'राधा' यह नाम, यह शब्द तक नहीं है.
दूसरी बात राधा किसी और की पत्नी थी, राधा कृष्ण की नहीं बल्कि किसी और की विवाहिता थी ऐसे में राधा-कृष्ण के बालसुलभ मित्रता को प्रेमी या पति-पत्नी की तरह के प्रेम के रूप में दिखाना या देखना ना सिर्फ राधा की बदनामी करना है बल्कि भगवान कृष्ण को भी चरित्रहीन ठहराना है. धर्मसंस्थापनार्थाय अवतार लेनेवाले भगवान श्री कृष्ण और राधा ('राधा' जो की कृष्ण की नहीं बल्कि किसी और की पत्नी है) को 'प्रेम' का प्रतिक बताना यह केवल गलत ही नहीं है बल्कि पाप है, अधर्म है. राधा को 'भक्ति' का प्रतिक माना जा सकता है, 'श्रद्धा' का प्रतिक माना जा सकता है लेकिन राधा और कृष्ण को 'प्रेम' (वैसा प्रेम जो विवाह से पूर्व में प्रेमी-पेमिका में होता है या जो प्रेम पति-पत्नी में होता है) का प्रतिक तो कतई नहीं माना जा सकता. राधा-कृष्ण के चित्र में ज्यादातर उन्हें ऐसे ही विवाह से पूर्व की प्रेमी-पेमिकावाले या पति-पत्नीवाले प्रेम के रूप में दिखाया जाता है. राधा-कृष्ण की मूर्ति में भी वह बाल्य-अवस्था के नहीं बल्कि 'युवा' दिखाते है जो की सर्वथा वास्तविकता से परे है.
संत मीरा बाई और राधा यह दोनों ही श्री कृष्ण के अनन्य भक्त थी लेकिन कृष्ण की समकालीन होने के कारन शायद राधा को कृष्ण की प्रेमिका के रूप में दिखाना, दिखानेवालों के लिए ज्यादा श्रेयस्कर रहा हो. भारत की संस्कृति में 'चरित्र' को बहुत महत्त्व दिया जाता रहा है और यही भारतीय संस्कृति के सनातन रहने का कारन है, 'चरित्र' ही है जो भारतीय संस्कृति का मजबूत स्तम्भ है. विवाह और परिवारवाली जीवनपद्धति भारतीय संस्कृति का आधारस्तम्भ रही है. शायद इसी आधारस्तम्भ को समाप्त करके पाश्चिमात्य जीवनपद्धति को भारत में फैलाकर भारत की संस्कृति को समाप्त करने की यह एक सोची-समझी साजिश ही लगती है.
भारतीय पौराणिक साहित्य में प्रेम को अनदेखा या दुर्लक्षित नहीं किया गया है. महादेव और पार्वती के प्रेम-प्रसंगो से पौराणिक साहित्य भरा पड़ा है. महादेव-पार्वती प्रेमी-प्रेमिका एवं पति-पत्नी के रूप में प्रेम के वैश्विक प्रतिक है, लेकिन महादेव-पार्वती का प्रेम भारतीय संस्कृति के अनुकूल है जिनके प्रेम की परिणीति विवाह है और राधा-कृष्ण का प्रेम जो दर्शाया जाता है वह पाश्चिमात्य संस्कृति की तरह लिव-इन-रिलेशनशिप की संकल्पना जैसा है. शायद इसीलिए महादेव-पार्वती के बजाय राधा-कृष्ण के प्रेम को महत्त्व दिया गया जिससे की भारतीय संस्कृति को तहस-नहस किया जा सके. राधा-कृष्ण का प्रेम (जो की कभी भी प्रेमी-प्रेमिका या पति-पत्नी जैसा प्रेम था ही नहीं) को प्रचारित कर के समाज में कौनसी धारणा का प्रसार किया जा रहा है? समाज को क्या सन्देश दिया जा रहा है?
राधा और कृष्ण को प्रेमी-प्रेमिका के आदर्श के रूप में स्थापित करना यह भारत की संस्कृति को तहस-नहस करने की साजिश -प्रेमसुखानंद माहेश्वरी
राधा और कृष्ण को प्रेमी-प्रेमिका के आदर्श के रूप में स्थापित करना यह भारत की संस्कृति को तहस-नहस करने की साजिश -प्रेमसुखानंद माहेश्वरी
Pancha Namaskar Mahamantra
पञ्चनमस्कार महामन्त्र (माहेश्वरी मंगलाचरण)
पञ्चनमस्कार महामन्त्र माहेश्वरी संप्रदाय (समाज) का सर्वाधिक महत्वपूर्ण मन्त्र है। माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के समय भगवान महेश-पार्वतीजी द्वारा बनाये गए माहेश्वरी गुरुओं द्वारा इस महामंत्र को प्रकट किया गया। इसे 'मंगलाचरण मन्त्र', 'महामंत्र', 'महाबीजमन्त्र', 'मूलमंत्र' या 'पञ्चनमस्कार महामंत्र' भी कहा जाता है। संसार के सभी दूसरे मंत्रों में भगवान से या देवताओं से किसी न किसी प्रकार की माँग की जाती है, लेकिन इस मंत्र में कोई माँग नहीं है। जिस मंत्र में कोई याचना की जाती है, वह छोटा मंत्र होता है और जिसमें समर्पण किया जाता है, वह मंत्र महान होता है। इस मंत्र में पाँच पदों को समर्पण और नमस्कार किया गया है इसलिए यह महामंत्र है।
'पञ्चनमस्कार महामन्त्र' एक लोकोत्तर मंत्र है। इस मंत्र को संप्रदाय का परम पवित्र और अनादि मूल मंत्र माना जाता है। लौकिक मंत्र आदि सिर्फ लौकिक लाभ पहुँचाते हैं, किंतु लोकोत्तर मंत्र लौकिक और लोकोत्तर दोनों कार्य सिद्ध करते हैं। इसलिए पञ्चनमस्कार महामन्त्र सर्वकार्य सिद्धिकारक लोकोत्तर मंत्र माना जाता है। यह महामंत्र सब पापो का नाश करने वाला तथा सब मंगलो मे प्रथम मंगल है।
इस मंत्र के पदों का जो क्रम रखा गया है, वह आध्यात्मिक विकास के विभिन्न आयामों और उनके सूक्ष्म संबंधों के बड़े ही वैज्ञानिक विश्लेषण का परिचायक है।
ॐ नमो प्रथमेशानं
ॐ नमो महासिद्धानं
ॐ नमो जगदगुरुं
ॐ नमो सदाशिवं
ॐ नमो सर्वे साधूनां
एते पञ्चनमस्कारान् श्रद्धया प्रत्यहं पठेत्
साध्यते सुखमारोग्यं सर्वेषां मङ्गलं भवेत्
ॐ नमो प्रथमेशानं – प्रथमेशों को नमस्कार। प्रथमेश अर्थात वह, जिसने साधना का श्रीगणेशा (प्रारम्भ) कर दिया है। प्रथमेश उसे कहा जाता है जिसने साध्य के लिए साधना की शुरुवात कर दी है। वह साधक जिसकी साधना प्रारम्भ हो गई है। प्रथमेश अर्थात साधक। साधक, जो कुछ अर्जित करने की प्रक्रिया में है। साध्य को पाने के लिए जो साधना के पथ पर अग्रेसर हुवा है। जो निरुद्देश्य नहीं अपितु किसी उद्देश्य को पाने के लिए जी रहा है। प्रथमेशों को (साधकों) को नमस्कार, उन सबको नमस्कार जिन्हे मंजिल (साध्य) का पता है। असल में मंजिल को नमस्कार। मंजिल की और बढनेवालों को नमस्कार। नमो प्रथमेशानं, में बहुवचन है, इस पद में जगत में जितने साधक हैं, भविष्य में जितने होंगे और वर्तमान में जितने हैं, उन सबको नमस्कार करने के लिए बहुवचन का प्रयोग किया गया है।
ॐ नमो महासिद्धानं – दूसरे पद में महासिद्धों को नमस्कार किया है। सिद्ध का अर्थ होता है, वे जिन्होंने पा लिया। वे जिस साध्य या सिद्धि को प्राप्त करना चाहते थे उसे प्राप्त कर लिया। सिद्धि अर्थात उपलव्धि अर्थात साध्य। 'सिद्ध' प्रथमेश से छोटा नहीं होता लेकिन पद में नंबर दो पर रखा गया। प्रथमेश वह है जिसे अभी पाना है, प्राप्त करना है। लेकिन ध्यान रहे उनको ऊपर रखा गया, जो पाने की प्रक्रिया में है। जिन्होंने पा लिया उनको नंबर दो पर रखा गया। सिद्ध बनने के यात्रा का प्रारम्भ प्रथमेश (साधक) बनने से आरम्भ होता है। पहले सिद्ध नहीं होता, साधना के पथ पर चल कर साधक 'सिद्ध' बनता है। ॐ नमो महासिद्धानं - मात्र सिद्धों को नमस्कार नहीं। महासिद्धों को नमन। मात्र पा लेना या सिद्ध बनना पर्याप्त नहीं है। सिद्ध बनना यात्रा के मध्यबिंदु तक पहुचना है। यात्रा समाप्त नहीं हुई। संस्मरण, अनुभव, अनुभूति की सजगसाधना सिद्ध को महासिद्ध में रूपांतरित करती है। जो पाना है उसे सम्पूर्णता, समग्रता से, विशेष प्रावीण्यता के साथ पानेवालों को नमस्कार।
तीसरा सूत्र कहता है, जगदगुरुं को नमस्कार। जगद (जगत) में जितने गुरु है उन सभी को नमस्कार। गुरु अर्थात जो सिखाता है, जो मार्गदर्शित करता है अपने आचरण, ज्ञान और उपदेश के द्वारा। गुरु अर्थात आचार्य। आचार्य का अर्थ है जिसने समग्रता से, सम्पूर्णता से पाया भी, आचरण में लाया भी, जो महासिद्ध भी बना और उपदेश भी कर रहा है, अन्यों को सीखा भी रहा है। पहले दो पदों में लिया गया है और इस तीसरे पद में देने की प्रक्रिया है। याचक परिवर्तित हुवा है 'दाता' में। गुरु मौन हो सकता है, और केवल आचरण देखकर न समझ पानेवाले लोगों पर करुणा कर के जो बोलकर भी समझाये उस गुरु को नमस्कार।
चौथे चरण में सदाशिवं को नमस्कार। यजुर्वेद में शिव का अर्थ 'शांतिदाता' बताया गया है। शिव संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है, कल्याणकारी या शुभकारी। 'शि' का अर्थ है - अधर्म/पापों का नाश करने वाला, जबकि 'व' का अर्थ देनेवाला यानी 'दाता'। मात्र धर्म/पुण्य के मार्गपर चलना पर्याप्त नहीं है अपितु अधर्म/पापों का क्रियाशील विरोध अर्थात उसका नाश करना भी आवश्यक है। अधर्म या पाप अर्थात असत्य, द्वेष और अन्याय। सदाशिव को नमस्कार अर्थात सदैव ही असत्य, द्वेष, अन्याय का नाश करनेवालों तथा सत्य, प्रेम और न्याय देनेवालों को नमस्कार।
पांचवे चरण में एक सामान्य नमस्कार है। ॐ नमो सर्वे साधूनां। साधु अर्थात सज्जन जो स्वयं सत्य, प्रेम, न्याय रूपी धर्म के मार्ग पर चलता हो। साधू इतना सरल भी हो सकता है जो उपदेश देने में भी संकोच करे। कोई इतना सरल भी हो सकता है कि अपने साधुता को भी छिपाए। पर उनको भी नमस्कार पहुँचना चाहिए। जगत में जो भी साधू हैं, उन सबको नमस्कार। ॐ नमो सर्वे साधूनां।
अस्तित्व में कोई कोना न बचे, अज्ञात, अनजान, अपरिचित, पता नहीं कौन साधू है, पता नहीं कौन साधक/प्रथमेश है, पर श्रद्धा से भरकर जो ये पांच नमन कर पाता है उसके सारे पाप विनष्ट हो जाते हैं, समाप्त होते है। ॐ नमो प्रथमेशानं, ॐ नमो महासिद्धानं, ॐ नमो जगदगुरुं, ॐ नमो सदाशिवं, ॐ नमो सर्वे साधूनां।
शोधकर्ताओं और विद्वानों का मानना है की पुरातन साहित्य में दिए गए मन्त्रों, यंत्रों और प्रतीकों के दो अर्थ होते है, एक लौकिक अर्थ जो प्रथमदृष्टया दिखाई देता है और दूसरा उनमें छिपा हुवा रहस्य। पञ्चनमस्कार महामन्त्र में पहला नमस्कार है- "ॐ नमो प्रथमेशानं"। प्रथमेश अर्थात गणेशजी को नमस्कार। महासिद्ध, जगदगुरु और सदाशिव यह भगवान महेश (शिव) के नाम है, तो भगवान महेशजी को नमस्कार। यह तो हुए लौकिक अर्थ लेकिन इस महामंत्र के रहस्य-अर्थ को समझने पर ज्ञात होता है की इसमें समग्र जीवन दर्शन का मार्गदर्शन भी किया गया है। तथ्य बताते है की माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के बाद कई शतकों तक प्रतिदिन प्रातः पञ्चनमस्कार महामंत्र को नित्य प्रार्थना के रूप में बोला जाता था, श्रावण मास में तथा विशेष अवसरों पर पञ्चनमस्कार महामंत्र का जाप किया जाता था। ये पंचनमस्कार माहेश्वरी संस्कृति की अनमोल धरोहर है।
Maheshwari Mangalacharan– Namo Prathameshanam
पञ्चनमस्कार महामन्त्र (माहेश्वरी मंगलाचरण)
पञ्चनमस्कार महामन्त्र माहेश्वरी संप्रदाय (समाज) का सर्वाधिक महत्वपूर्ण मन्त्र है। माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के समय भगवान महेश-पार्वतीजी द्वारा बनाये गए माहेश्वरी गुरुओं द्वारा इस महामंत्र को प्रकट किया गया। इसे 'मंगलाचरण मन्त्र', 'महामंत्र', 'महाबीजमन्त्र', 'मूलमंत्र' या 'पञ्चनमस्कार महामंत्र' भी कहा जाता है। संसार के सभी दूसरे मंत्रों में भगवान से या देवताओं से किसी न किसी प्रकार की माँग की जाती है, लेकिन इस मंत्र में कोई माँग नहीं है। जिस मंत्र में कोई याचना की जाती है, वह छोटा मंत्र होता है और जिसमें समर्पण किया जाता है, वह मंत्र महान होता है। इस मंत्र में पाँच पदों को समर्पण और नमस्कार किया गया है इसलिए यह महामंत्र है।
'पञ्चनमस्कार महामन्त्र' एक लोकोत्तर मंत्र है। इस मंत्र को संप्रदाय का परम पवित्र और अनादि मूल मंत्र माना जाता है। लौकिक मंत्र आदि सिर्फ लौकिक लाभ पहुँचाते हैं, किंतु लोकोत्तर मंत्र लौकिक और लोकोत्तर दोनों कार्य सिद्ध करते हैं। इसलिए पञ्चनमस्कार महामन्त्र सर्वकार्य सिद्धिकारक लोकोत्तर मंत्र माना जाता है। यह महामंत्र सब पापो का नाश करने वाला तथा सब मंगलो मे प्रथम मंगल है।
इस मंत्र के पदों का जो क्रम रखा गया है, वह आध्यात्मिक विकास के विभिन्न आयामों और उनके सूक्ष्म संबंधों के बड़े ही वैज्ञानिक विश्लेषण का परिचायक है।
ॐ नमो प्रथमेशानं
ॐ नमो महासिद्धानं
ॐ नमो जगदगुरुं
ॐ नमो सदाशिवं
ॐ नमो सर्वे साधूनां
एते पञ्चनमस्कारान् श्रद्धया प्रत्यहं पठेत्
साध्यते सुखमारोग्यं सर्वेषां मङ्गलं भवेत्
ॐ नमो प्रथमेशानं – प्रथमेशों को नमस्कार। प्रथमेश अर्थात वह, जिसने साधना का श्रीगणेशा (प्रारम्भ) कर दिया है। प्रथमेश उसे कहा जाता है जिसने साध्य के लिए साधना की शुरुवात कर दी है। वह साधक जिसकी साधना प्रारम्भ हो गई है। प्रथमेश अर्थात साधक। साधक, जो कुछ अर्जित करने की प्रक्रिया में है। साध्य को पाने के लिए जो साधना के पथ पर अग्रेसर हुवा है। जो निरुद्देश्य नहीं अपितु किसी उद्देश्य को पाने के लिए जी रहा है। प्रथमेशों को (साधकों) को नमस्कार, उन सबको नमस्कार जिन्हे मंजिल (साध्य) का पता है। असल में मंजिल को नमस्कार। मंजिल की और बढनेवालों को नमस्कार। नमो प्रथमेशानं, में बहुवचन है, इस पद में जगत में जितने साधक हैं, भविष्य में जितने होंगे और वर्तमान में जितने हैं, उन सबको नमस्कार करने के लिए बहुवचन का प्रयोग किया गया है।
ॐ नमो महासिद्धानं – दूसरे पद में महासिद्धों को नमस्कार किया है। सिद्ध का अर्थ होता है, वे जिन्होंने पा लिया। वे जिस साध्य या सिद्धि को प्राप्त करना चाहते थे उसे प्राप्त कर लिया। सिद्धि अर्थात उपलव्धि अर्थात साध्य। 'सिद्ध' प्रथमेश से छोटा नहीं होता लेकिन पद में नंबर दो पर रखा गया। प्रथमेश वह है जिसे अभी पाना है, प्राप्त करना है। लेकिन ध्यान रहे उनको ऊपर रखा गया, जो पाने की प्रक्रिया में है। जिन्होंने पा लिया उनको नंबर दो पर रखा गया। सिद्ध बनने के यात्रा का प्रारम्भ प्रथमेश (साधक) बनने से आरम्भ होता है। पहले सिद्ध नहीं होता, साधना के पथ पर चल कर साधक 'सिद्ध' बनता है। ॐ नमो महासिद्धानं - मात्र सिद्धों को नमस्कार नहीं। महासिद्धों को नमन। मात्र पा लेना या सिद्ध बनना पर्याप्त नहीं है। सिद्ध बनना यात्रा के मध्यबिंदु तक पहुचना है। यात्रा समाप्त नहीं हुई। संस्मरण, अनुभव, अनुभूति की सजगसाधना सिद्ध को महासिद्ध में रूपांतरित करती है। जो पाना है उसे सम्पूर्णता, समग्रता से, विशेष प्रावीण्यता के साथ पानेवालों को नमस्कार।
तीसरा सूत्र कहता है, जगदगुरुं को नमस्कार। जगद (जगत) में जितने गुरु है उन सभी को नमस्कार। गुरु अर्थात जो सिखाता है, जो मार्गदर्शित करता है अपने आचरण, ज्ञान और उपदेश के द्वारा। गुरु अर्थात आचार्य। आचार्य का अर्थ है जिसने समग्रता से, सम्पूर्णता से पाया भी, आचरण में लाया भी, जो महासिद्ध भी बना और उपदेश भी कर रहा है, अन्यों को सीखा भी रहा है। पहले दो पदों में लिया गया है और इस तीसरे पद में देने की प्रक्रिया है। याचक परिवर्तित हुवा है 'दाता' में। गुरु मौन हो सकता है, और केवल आचरण देखकर न समझ पानेवाले लोगों पर करुणा कर के जो बोलकर भी समझाये उस गुरु को नमस्कार।
चौथे चरण में सदाशिवं को नमस्कार। यजुर्वेद में शिव का अर्थ 'शांतिदाता' बताया गया है। शिव संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है, कल्याणकारी या शुभकारी। 'शि' का अर्थ है - अधर्म/पापों का नाश करने वाला, जबकि 'व' का अर्थ देनेवाला यानी 'दाता'। मात्र धर्म/पुण्य के मार्गपर चलना पर्याप्त नहीं है अपितु अधर्म/पापों का क्रियाशील विरोध अर्थात उसका नाश करना भी आवश्यक है। अधर्म या पाप अर्थात असत्य, द्वेष और अन्याय। सदाशिव को नमस्कार अर्थात सदैव ही असत्य, द्वेष, अन्याय का नाश करनेवालों तथा सत्य, प्रेम और न्याय देनेवालों को नमस्कार।
पांचवे चरण में एक सामान्य नमस्कार है। ॐ नमो सर्वे साधूनां। साधु अर्थात सज्जन जो स्वयं सत्य, प्रेम, न्याय रूपी धर्म के मार्ग पर चलता हो। साधू इतना सरल भी हो सकता है जो उपदेश देने में भी संकोच करे। कोई इतना सरल भी हो सकता है कि अपने साधुता को भी छिपाए। पर उनको भी नमस्कार पहुँचना चाहिए। जगत में जो भी साधू हैं, उन सबको नमस्कार। ॐ नमो सर्वे साधूनां।
अस्तित्व में कोई कोना न बचे, अज्ञात, अनजान, अपरिचित, पता नहीं कौन साधू है, पता नहीं कौन साधक/प्रथमेश है, पर श्रद्धा से भरकर जो ये पांच नमन कर पाता है उसके सारे पाप विनष्ट हो जाते हैं, समाप्त होते है। ॐ नमो प्रथमेशानं, ॐ नमो महासिद्धानं, ॐ नमो जगदगुरुं, ॐ नमो सदाशिवं, ॐ नमो सर्वे साधूनां।
शोधकर्ताओं और विद्वानों का मानना है की पुरातन साहित्य में दिए गए मन्त्रों, यंत्रों और प्रतीकों के दो अर्थ होते है, एक लौकिक अर्थ जो प्रथमदृष्टया दिखाई देता है और दूसरा उनमें छिपा हुवा रहस्य। पञ्चनमस्कार महामन्त्र में पहला नमस्कार है- "ॐ नमो प्रथमेशानं"। प्रथमेश अर्थात गणेशजी को नमस्कार। महासिद्ध, जगदगुरु और सदाशिव यह भगवान महेश (शिव) के नाम है, तो भगवान महेशजी को नमस्कार। यह तो हुए लौकिक अर्थ लेकिन इस महामंत्र के रहस्य-अर्थ को समझने पर ज्ञात होता है की इसमें समग्र जीवन दर्शन का मार्गदर्शन भी किया गया है। तथ्य बताते है की माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के बाद कई शतकों तक प्रतिदिन प्रातः पञ्चनमस्कार महामंत्र को नित्य प्रार्थना के रूप में बोला जाता था, श्रावण मास में तथा विशेष अवसरों पर पञ्चनमस्कार महामंत्र का जाप किया जाता था। ये पंचनमस्कार माहेश्वरी संस्कृति की अनमोल धरोहर है।
शोधकर्ताओं और विद्वानों का मानना है की पुरातन साहित्य में दिए गए मन्त्रों, यंत्रों और प्रतीकों के दो अर्थ होते है, एक लौकिक अर्थ जो प्रथमदृष्टया दिखाई देता है और दूसरा उनमें छिपा हुवा रहस्य। पञ्चनमस्कार महामन्त्र में पहला नमस्कार है- "ॐ नमो प्रथमेशानं"। प्रथमेश अर्थात गणेशजी को नमस्कार। महासिद्ध, जगदगुरु और सदाशिव यह भगवान महेश (शिव) के नाम है, तो भगवान महेशजी को नमस्कार। यह तो हुए लौकिक अर्थ लेकिन इस महामंत्र के रहस्य-अर्थ को समझने पर ज्ञात होता है की इसमें समग्र जीवन दर्शन का मार्गदर्शन भी किया गया है। तथ्य बताते है की माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के बाद कई शतकों तक प्रतिदिन प्रातः पञ्चनमस्कार महामंत्र को नित्य प्रार्थना के रूप में बोला जाता था, श्रावण मास में तथा विशेष अवसरों पर पञ्चनमस्कार महामंत्र का जाप किया जाता था। ये पंचनमस्कार माहेश्वरी संस्कृति की अनमोल धरोहर है।
About Maheshacharya In English | Supreme Religious Leader of Maheshwari Community | The Maheshacharya | Mahesh Navami Special
Maheshacharya (Sanskrit: महेशाचार्य) is a religious title used for the president (peethadhipati) of “Divyashakti Yogpeeth Akhada" in the tradition of Maheshwaritva (Maheshwarism) in Maheshwari community. "Divyashakti Yogpeeth Akhada (which is known as Maheshwari Akhada, is famous)" is the highest/supreme Gurupeeth of Maheshwari community. The word Maheshacharya is composed of two parts, Mahesha and Acharya. Acharya is a Sanskrit word meaning "teacher", so Maheshacharya means "teacher", who teaches the path shown by Lord Mahesha.
See Link > Maheshacharya (महेशाचार्य)
See link > Maheshacharya Premsukhanand Maheshwari
According to the origin story of Maheshwari dynasty, Lord Maheshji made these six (6) sages Maharishi Parashar, Saraswat, Gwala, Gautam, Shringi, Dadhich the gurus of Maheshwaris and entrusted them with the responsibility of guiding the Maheshwaris/Maheshwari community to follow the path of religion (For the origin story of Maheshwari dynasty, click/touch here > Maheshwari Origin and brief History). Later, these Gurus also gave the post of Maheshwari Guru to Rishi Bhardwaj due to which the number of Maheshwari Gurus became seven (7) who are called Saptarishi among Maheshwaris. He came to be known as Gurumaharaj. These Gurus had established a 'Gurupeeth' which was called "Maheshwari Gurupeeth" so that the work of management and guidance of Maheshwari society went smoothly. The head of the Gurupeeth was decorated with the title of “Maheshacharya”. Maheshacharya- This is the official highest/supreme guru post of Maheshwari community.
Only the President (Peethadhipati) of “Divyashakti Yogpeeth Akhada” (which is known as Maheshwari Akhara, is famous)" is the highest/supreme Gurupeeth of Maheshwari community, is entitled/officially authorized to be adorned/decorated with the title of “Maheshacharya”. Presently Yogi Premsukhanand Maheshwari is the Peethadhipati of "Divyashakti Yogpeeth Akhara" & is Maheshacharya. Maharishi Parashar is the first Peethadhipati of Maheshwari Gurupeeth and hence Maharishi Parashar is "Adi Maheshacharya".
However, according to tradition and belief, the heritage of Maheshwari Gurupeeth is more than five thousand years old. It was founded as ‘Maheshwari Gurupeeth’ by Adi Maheshacharya Maharshi Parashar during his lifetime, together with six (6) Rishi- Saraswat, Gwala, Gautam, Shringi, Dadhich and Bhardwaj. However, this tradition restored formally by Yogi Premsukhanand Maheshwari an official name "Divyashakti Yogapeeth Akhada" in the year 2008. At the time of official establishment of this supreme Gurupeeth of Maheshwari community, its name was registered as "Divyashakti Yogpeeth Akhada", but it is popularly known as Maheshwari Akhada, is famous.
Maheshwari Akhada is Maheshwari community's top/supreme religious-spiritual management organization. The main task of the akhada is to defend religion, culture of Maheshwari. Maheshwari Akhada's main objective is to organise, consolidate the Maheshwari society and to protect the Maheshwari culture.
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