Letter to PM Modi for declaring gazetted holiday at the Mahesh Navami


माहेश्वरी समाज के सबसे बड़े त्योंहार महेश नवमी के पर्व पर राजपत्रित अवकाश (छुट्टी) घोषित करने के लिए योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी (पीठाधिपति, माहेश्वरी अखाड़ा) द्वारा भारत के माननीय प्रधानमंत्री मोदी को पत्र l

Letter to Honorable Prime Minister of India Modi by the Yogi Premsukhanand Maheshwari (Peethadhipati of Maheshwari Akhada) for declaring gazetted holiday at the festival of Mahesh Navami, the biggest festival of Maheshwari community.

Mahesh Navami 2018 Celebration Date and Significance

महेश नवमी उत्सव की तारीख में युधिष्ठिर संवत का महत्व :-


प्रतिवर्ष, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को "महेश नवमी" का उत्सव मनाया जाता है. "महेश नवमी" यह माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिवस है अर्थात इसी दिन माहेश्वरी समाज की वंशोत्पत्ति (माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति) हुई थी. इसीलिए माहेश्वरी समाज इस दिन को माहेश्वरी समाज के स्थापना दिवस के रूप में मनाता है.

ऐसी मान्यता है कि, भगवान महेश और आदिशक्ति माता पार्वति ने ऋषियों के शाप के कारन पत्थरवत् बने हुए 72 क्षत्रिय उमराओं को युधिष्ठिर संवत 9 ज्येष्ठ शुक्ल नवमी के दिन शापमुक्त किया और पुनर्जीवन देते हुए कहा की, "आज से तुम्हारे वंशपर (धर्मपर) हमारी छाप रहेगी, तुम “माहेश्वरी’’ कहलाओगे". भगवान महेशजी के आशीर्वाद से पुनर्जीवन और माहेश्वरी नाम प्राप्त होने के कारन तभी से माहेश्वरी समाज ज्येष्ठ शुक्ल नवमी (महेश नवमी) को 'माहेश्वरी उत्पत्ति दिन (स्थापना दिन)' के रूप में मनाता है. इसी दिन भगवान महेश और देवी महेश्वरी (माता पार्वती) की कृपा से माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई इसलिए भगवान महेश और देवी महेश्वरी को माहेश्वरी धर्म के संस्थापक मानकर माहेश्वरी समाज में यह उत्सव 'माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिन' के रुपमें बहुत ही भव्य रूप में और बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है. महेश नवमी का यह पर्व मुख्य रूप से भगवान महेश (महादेव) और माता पार्वती की आराधना को समर्पित है.


आज ई.स. 2018 में युधिष्ठिर संवत 5160 चल रहा है. माहेश्वरी वंशोत्पत्ति युधिष्ठिर संवत 9 में हुई है तो इसके हिसाब से माहेश्वरी वंशोत्पत्ति आज से 5151 वर्ष पूर्व हुई है. "महेश नवमी उत्सव 2018" को माहेश्वरी समाज अपना 5151 वा वंशोत्पत्ति दिन मना रहा है.

माहेश्वरी समाज में युधिष्ठिर सम्वत का है प्रचलन
समयगणना के मापदंड (कैलेंडर वर्ष) को 'संवत' कहा जाता है. किसी भी राष्ट्र या संस्कृति द्वारा अपनी प्राचीनता एवं विशिष्ठता को स्पष्ट करने के लिए किसी एक विशिष्ठ कालगणना वर्ष/संवत (कैलेंडर) का प्रयोग (use) किया जाता है. आज के आधुनिक समय में सम्पूर्ण विश्व में ईसाइयत का ग्रेगोरीयन कैलेंडर प्रचलित है. इस ग्रेगोरीयन कैलेंडर का वर्ष 1 जनवरी से शुरू होता है. भारत में कालगणना के लिए युधिष्ठिर संवत, युगाब्द संवत्सर, विक्रम संवत्सर, शक संवत (शालिवाहन संवत) आदि भारतीय कैलेंडर का प्रयोग प्रचलन में है. भारतीय त्योंहारों की तिथियां इन्ही भारतीय कैलेंडर से बताई जाती है, नामकरण संस्कार, विवाह आदि के कार्यक्रम पत्रिका अथवा निमंत्रण पत्रिका में भारतीय कैलेंडर के अनुसार तिथि और संवत (कार्यक्रम का दिन और वर्ष) बताने की परंपरा है.


माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति जब हुई तब कालगणना के लिए युधिष्ठिर संवत प्रचलन में था. मान्यता के अनुसार माहेश्वरी वंशोत्पत्ति युधिष्ठिर संवत 9 में ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष के नवमी को हुई है. इसीलिए पुरातन समय में माहेश्वरी समाज में कालगणना के लिए 'युधिष्ठिर संवत' का प्रयोग (use) किया जाता रहा है. वर्तमान समय में देखा जा रहा है की माहेश्वरी समाज में युधिष्ठिर संवत के बजाय विक्रम सम्वत या शक सम्वत का प्रयोग किया जा रहा है. विक्रम या शक सम्वत के प्रयोग में हर्ज नहीं है लेकिन इससे माहेश्वरी समाज की विशिष्ठता और प्राचीनता दृष्टिगत नहीं होती है. जैसे की यदि युधिष्ठिर संवत का प्रयोग किया जाता है तो, वर्तमान समय में चल रहे युधिष्ठिर संवत (वर्ष) में से 9 वर्ष को कम कर दे तो माहेश्वरी वंशोत्पत्ति वर्ष मिल जाता है. 

माहेश्वरी संस्कृति की असली पहचान युधिष्ठिर संवत से होती है. माहेश्वरी समाज की सांस्कृतिक पहचान है युधिष्ठिर संवत. इसलिए माहेश्वरी समाज के सांस्कृतिक पर्व-उत्सव, नामकरण, विवाह, गृहप्रवेश, सामाजिक व्यापारिक-व्यावसायिक कार्यों  के अनुष्ठान, इन सबका दिन बताने के लिए युधिष्ठिर संवत का उल्लेख किया जाना चाहिए; विक्रम संवत, शक संवत या अन्य किसी संवत का नहीं (जैसे की- महेश नवमी उत्सव 2018 मित्ति ज्येष्ठ शु. ९ युधिष्ठिर संवत ५१६० गुरूवार, दि. 21 जून 2018).




माहेश्वरीयों के प्रथम आराध्य भगवान महेशजी