माहेश्वरी समाज का 5150 वा वंशोत्पत्ति दिवस- महेश नवमी 2017


परंपरागत मान्यता के अनुसार माहेश्वरी समाज की वंशोत्पत्ति युधिष्ठिर सम्वत 9 के जेष्ठ शुक्ल नवमी को हुई थी, तबसे माहेश्वरी समाज प्रतिवर्ष की जेष्ट शुक्ल नवमी को "महेश नवमी" के नाम से माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिन के रूपसे बहुत धूम धाम से मनाता है. माहेश्वरी समाज के ऐतिहासिक साहित्य में माहेश्वरी समाज की वंशोत्पत्ति के समय के बारे में एक श्लोक के द्वारा बताया गया है, वह श्लोक है-  
आसन मघासु मुनय: शासति युधिष्ठिरे नृपते l
सूर्यस्थाने महेशकृपया जाता माहेश्वरी समुत्पत्तिः ll
अर्थ- जब सप्तर्षि मघा नक्षत्र में थे, युधिष्ठिर राजा शासन करता था. सूर्य के स्थान पर अर्थात राजस्थान प्रान्त के लोहार्गल में (लोहार्गल- जहाँ सूर्य अपनी पत्नी छाया के साथ निवास करते है, वह स्थान जो की माहेश्वरीयों का वंशोत्पत्ति स्थान है), भगवान महेशजी की कृपा (वरदान) से l कृपया - कृपा से, माहेश्वरी उत्पत्ति हुई.

आसन मघासु मुनय:
मुनया (मुनि) अर्थात आकाशगंगा के सात तारे जिन्हे सप्तर्षि कहा जाता है. ब्राह्मांड में कुल 27 नक्षत्र हैं. सप्तर्षि प्रत्येक नक्षत्र में 100 वर्ष ठहरते हैं. इस तरह 2700 साल में सप्तर्षि एक चक्र पूरा करते हैं. पुरातनकाल में किसी महत्वपूर्ण अथवा बड़ी घटना का समय या काल दर्शाने के लिए 'सप्तर्षि किस नक्षत्र में है या थे' इसका प्रयोग किया जाता था. माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के सम्बन्ध में कहा गया है की सप्तर्षि उस समय मघा नक्षत्र में थे. द्वापर युग के उत्तरकाल (जिसे महाभारतकाल कहा जाता है) में भी सप्तर्षि मघा नक्षत्र में थे तो इस तरह से बताया गया है की माहेश्वरी वंशोत्पत्ति द्वापरयुग के उत्तरकाल में अर्थात महाभारतकाल में हुई है. श्लोक के 'शासति युधिष्ठिरे नृपते' इस पद (शब्द समूह) से इस बात की पुष्टि होती है की यह समय महाभारत काल का ही है.

शासति युधिष्ठिरे नृपते
पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर का इन्द्रप्रस्थ के राजा के रूप में राज्याभिषेक 17-12-3139 ई.पू. के दिन हुआ, इसी दिन युधिष्ठिर संवत की घोषणा हुई. उसके 5 दिन बाद उत्तरायण माघशुक्ल सप्तमी (रथ सप्तमी) को हुआ, अतः युधिष्ठिर का राज्याभिषेक प्रतिपदा या द्वितीया को था. युधिष्ठिर के राज्यारोहण के पश्चात चैत्र शुक्ल एकम (प्रतिपदा) से 'युधिष्ठिर संवत' आरम्भ हुवा. महाभारत और भागवत के खगोलिय गणना को आधार मान कर विश्वविख्यात डॉ. वेली ने यह निष्कर्ष दिया है कि कलयुग का प्रारम्भ 3102 बी.सी. की रात दो बजकर 20 मिनट 30 सेकण्ड पर हुआ था. यह बात उक्त मान्यता को पुष्ट करती है की भारत का सर्वाधिक प्राचीन युधिष्ठिर संवत की गणना कलियुग से 40 वर्ष पूर्व से की जाती है. युधिष्ठिर संवत भारत का प्राचीन संवत है जो 3142 ई.पू. से आरम्भ होता है. हिजरी संवत, विक्रम संवत, ईसवीसन, वीर निर्वाण संवत (महावीर संवत), शक संवत आदि सभी संवतों से भी अधिक प्राचीन है 'युधिष्ठिर संवत'. माहेश्वरी वंशोत्पत्ति संवत (वर्ष) है- 'युधिष्ठिर संवत 9' अर्थात माहेश्वरी वंशोत्पत्ति ई.पू. 3133 में हुई है. कलियुगाब्द (युगाब्द) में 31 जोड़ने से, वर्तमान विक्रम संवत में 3076 अथवा वर्तमान ई.स. में (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा/गुड़ी पाड़वा/भारतीय नववर्षारंभ से आगे) 3133 जोड़ने से माहेश्वरी वंशोत्पत्ति वर्ष आता है. वर्तमान में ई.स. 2017 चल रहा है. वर्तमान ई.स. 2017 + 3133 = 5150 अर्थात माहेश्वरी वंशोत्पत्ति आज से 5150 वर्ष पूर्व हुई है.

आज ई.स. 2017 में युधिष्ठिर संवत 5159 चल रहा है. माहेश्वरी वंशोत्पत्ति युधिष्ठिर संवत 9 में हुई है तो इसके हिसाब से माहेश्वरी वंशोत्पत्ति आज से 5150 वर्ष पूर्व हुई है. अर्थात "महेश नवमी उत्सव 2017" को माहेश्वरी समाज अपना 5150 वा वंशोत्पत्ति दिन मना रहा है. 

(योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी द्वारा लिखित पुस्तक- "माहेश्वरी वंशोत्पत्ति एवं इतिहास" से साभार)