Maheshwari Akhada invites Nominations for Divy Awards | Only for Maheshwari People | प्रतिष्ठित माहेश्वरी सम्मान "दिव्य पुरस्कार" के लिए नामांकन आमंत्रित | Divy Awards Are Given On Mahesh Navami

The nomination process of Divy Awards is open to the Maheshwari People. Even self-nomination can be made. Nominations/Recommendations are invited from 1st August to 15th December every year. Nominations and recommendations have been started for the prestigious Maheshwari Awards of Maheshwari Community Divy Awards (Divy Shri, Divy Bhushan, Divy Vibhushan). These Maheshwari Awards have been started by Maheshwari Akhada (whose official name is 'Divyashakti Yogpeeth Akhara'), the highest Gurupeeth of Maheshwari community. This award is given to the recipient by the Peethadhipati of Maheshwari Akhada, who is decorated with the title of Maheshacharya, the highest guru post of Maheshwari community (At the present time Yogi Premsukhanand Maheshwari is the Peethadhipati of Maheshwari Akhada and Maheshacharya). The last date for nominations for the Divy Awards is December 15. These awards are given on Mahesh Navami.

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Nominations and recommendations have also been invited for consideration on a broad basis from national office bearers of Maheshwari social organizations, state officials, Maheshwari Ratna Award winners, Maheshwari institutions/trusts and many other sources.

Nominations and recommendations for Divy Awards can only be made through WhatsApp No. 9405826464 and e-mail maheshwariakhada@gmail.com. All Maheshwari community members can also self-nominate and recommend themselves. Nominations and recommendations should include all relevant details, which should clearly include the distinguished (distinguished/notable) and extraordinary achievements of the nominee, his or her respective field, service etc.

The divine awards are announced every year in the fourth week of December or the first week of January. This award is given for distinguished and extraordinary achievements and services of a Maheshwari individual in all fields and disciplines, such as spirituality, art, education, literature, science, sports, medicine, social work (social service), science and engineering, service, business and industry. Are done. All Maheshwari people without discrimination of race, occupation, position or sex are eligible for these awards.


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प्रतिष्ठित माहेश्वरी सम्मान "दिव्य पुरस्कार" के लिए नामांकन आमंत्रित

'दिव्य विभूषण, दिव्य भूषण और दिव्यश्री' माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च पुरस्कारों में से हैं। यह पुरस्कार "माहेश्वरी अखाड़ा (दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा)" द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तरपर दीये जानेवाले प्रतिष्ठित "माहेश्वरी सम्मान" है। माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार "माहेश्वरी रत्न" के बाद क्रमशः चौथे, तीसरे और दूसरे स्थान पर दिव्यश्री', 'दिव्य भूषण' और 'दिव्य विभूषण' यह श्रेष्ठ पुरस्कार है। इस सम्मान में एक पदक और प्रशस्ति पत्र (सम्मान पत्र) दिया जाता है।

माहेश्वरी अखाड़ा द्वारा प्रदान किये जानेवाले माहेश्वरी समाज के प्रतिष्ठित सम्मान दिव्य पुरस्कारों (दिव्यश्री, दिव्य भूषण, दिव्य विभूषण) के लिए नामांकन और सिफारिशें शुरू की गई है। दिव्य पुरस्कारों के लिए नामांकन की अंतिम तिथि 15 दिसंबर है।

माहेश्वरी समाज-संगठनों के राष्ट्रिय पदाधिकारियों, प्रदेश पदाधिकारियों, माहेश्वरी रत्न पुरस्कार विजेताओं, माहेश्वरी संस्थानों/संस्थाओं/ट्रस्टों और कई अन्य स्रोतों से भी व्यापक आधार पर विचार करने के लिए नामांकन और सिफारिशें आमंत्रित की गई हैं।

दिव्य पुरस्कारों के लिए नामांकन और सिफारिशें केवल WhatsApp No. 9405826464 तथा ई-मेल maheshwariakhada@gmail.com पर प्राप्त की जाएंगी। सभी माहेश्वरी समाजजन स्वयं भी स्व-नामांकन और सिफारिश कर सकते हैं। नामांकन और सिफारिशों में सभी प्रासंगिक विवरण शामिल होने चाहिए, जिसमें स्पष्ट रूप से नामांकित व्यक्ति की प्रतिष्ठित (विशिष्ट/उल्लेखनीय) और असाधारण उपलब्धियां, उनके या उसके संबंधित क्षेत्र, सेवा आदि विवरण शामिल होने चाहिए।

दिव्य पुरस्कारों की घोषणा हर साल दिसंबर के चौथे सप्ताह में अथवा जनवरी के पहले सप्ताह में की जाती है। यह पुरस्कार सभी क्षेत्रों और विषयों, जैसे अध्यात्म, कला, शिक्षा, साहित्य, विज्ञान, खेल, चिकित्सा, सामाजिक कार्य (समाजसेवा), विज्ञान और इंजीनियरिंग, सेवा, व्यापार और उद्योग में माहेश्वरी व्यक्ति के विशिष्ट और असाधारण उपलब्धियों और सेवाओं के लिए प्रदान किये जाते है। स्पर्धा, व्यवसाय, स्थिति या लिंग (race, occupation, position or sex) के भेदभाव के बिना सभी माहेश्वरी लोग इन पुरस्कारों के लिए पात्र हैं।

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दिव्य विभूषण पुरस्कार -
दिव्य विभूषण सम्मान माहेश्वरी समाज का दूसरा सर्वोच्च सम्मान है। जो माहेश्वरी व्यक्ति अपने किसी विशिष्ट क्षेत्र में असाधारण और उत्कृष्ट सेवा करते हैं उनको दिव्य विभूषण दिया जाता है। यह सम्मान समाज के लिये बहुमूल्य योगदान के लिए भी दिया जाता है।

दिव्य भूषण पुरस्कार -
दिव्य भूषण सम्मान माहेश्वरी समाज का तीसरा सर्वोच्च सम्मान है। यह सम्मान किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट और उल्लेखनीय सेवा के लिए प्रदान किया जाता है। इसमें माहेश्वरी समाज के संगठन के पदाधिकारीयों द्वारा की गई सेवाएं भी शामिल हैं।

दिव्यश्री पुरस्कार -
दिव्यश्री या दिव्य श्री सम्मान माहेश्वरी समाज का चौथा सर्वोच्च सम्मान है। दिव्यश्री सम्मान किसी भी क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवा के लिए प्रदान किया जाता है। इसमें सरकारी कर्मचारी के तौर पर माहेश्वरी व्यक्ति द्वारा की गई सेवाएं भी शामिल हैं।

Divy Vibhushan — The second highest Maheshwari honour (award).

Divy Bhushan — The third highest Maheshwari honour (award).

Divy Shri — The fourth highest Maheshwari honour (award).

दिव्य पुरस्कार (दिव्यश्री, दिव्य भूषण, दिव्य विभूषण) के बारेमें अधिक जानकारी के लिए इस link पर click कीजिये > माहेश्वरी समाज के प्रतिष्ठित पुरस्कार/सम्मान- दिव्य पुरस्कार

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माहेश्वरी समाज के प्रतिष्ठित पुरस्कार/सम्मान- दिव्य पुरस्कार


दिव्य पुरस्कार 3 श्रेणियों में प्रदान किए जाते हैं- दिव्यश्री, दिव्य भूषण, दिव्य विभूषण। माहेश्वरी अखाड़ा द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिए जानेवाले माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च सम्मान 'माहेश्वरी रत्न’ के बाद क्रमशः चौथे, तीसरे और दूसरे स्थान पर दिव्यश्री, दिव्य भूषण और दिव्य विभूषण यह श्रेष्ठ पुरस्कार है।

दिव्य पुरस्कार माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च पुरस्कारों में से हैं। दिव्य पुरस्कार (दिव्यश्री, दिव्य भूषण, दिव्य विभूषण) आम तौर पर सिर्फ माहेश्वरीयों कों दिए जाने वाले सम्मान है जो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों जैसे कि, अध्यात्म, कला, शिक्षा, उद्योग, साहित्य, विज्ञान, खेल, चिकित्सा, समाज सेवा और सार्वजनिक जीवन आदि में उनके विशिष्ट योगदान के लिए दिए जाते है। इस सम्मान में एक पदक और प्रशस्ति पत्र (सम्मान पत्र) दिया जाता है। यह पुरस्कार प्रतिवर्ष दिसंबर माह में घोषित किये जाते है और आम तौर पर महेश नवमी के दिन प्रदान किये जाते है।

दिव्य पुरस्कारों के लिए स्पष्टरुप से मापदण्ड यह होते हैं कि जो माहेश्वरी व्यक्ति किसी विशिष्ट क्षेत्र में असाधारण और उत्कृष्ट सेवा करते हैं उनको दिव्य विभूषण दिया जाता है। इसी तरह दिव्य भूषण के मापदण्ड उच्च श्रेणी की उत्कृष्ट सेवाओं पर आधारित होते हैं, तो वहीं दिव्यश्री सिर्फ उत्कृष्ट सेवाओं के लिए प्रदान किए जाते हैं।

दिव्य पुरस्कारों के लिए एक सँख्या-सीमा निर्धारित की गई है। कुल दिव्य पुरस्कारों की अधिकतम संख्या 28 ही हो सकती है जिनमें अधिकतम 4 दिव्य विभूषण, 8 दिव्य भूषण और 16 दिव्यश्री है। एक बार दिव्यश्री मिलने के बाद यदि किसी को उससे उच्चतर श्रेणी का दिव्य पुरस्कार यानि दिव्यभूषण या दिव्यविभूषण के लिए चयन करना है तो ऐसे किसी मामले में पूर्व दिव्य पुरस्कार प्रदान किए जाने के समय से कम से कम पांच वर्ष की अवधि समाप्त हो जाने के बाद ही वे प्रदान किए जा सकते हैं।

दिव्य विभूषण पुरस्कार -
दिव्य विभूषण सम्मान माहेश्वरी समाज का दूसरा सर्वोच्च सम्मान है। जो माहेश्वरी व्यक्ति अपने किसी विशिष्ट क्षेत्र में असाधारण और उत्कृष्ट सेवा करते हैं उनको दिव्य विभूषण दिया जाता है। यह सम्मान समाज के लिये बहुमूल्य योगदान के लिए भी दिया जाता है।

दिव्य भूषण पुरस्कार -
दिव्य भूषण सम्मान माहेश्वरी समाज का तीसरा सर्वोच्च सम्मान है। यह सम्मान किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट और उल्लेखनीय सेवा के लिए प्रदान किया जाता है। इसमें माहेश्वरी समाज के संगठन के पदाधिकारीयों द्वारा की गई सेवाएं भी शामिल हैं।

दिव्यश्री पुरस्कार -
दिव्यश्री या दिव्य श्री सम्मान माहेश्वरी समाज का चौथा सर्वोच्च सम्मान है। दिव्यश्री सम्मान किसी भी क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवा के लिए प्रदान किया जाता है। इसमें सरकारी कर्मचारी के तौर पर माहेश्वरी व्यक्ति द्वारा की गई सेवाएं भी शामिल हैं।

दिव्य पुरस्कार पदक का डिजाइन -
दिव्य विभूषण — इस पदक का डिजाइन गोलाकार है। गोल हिस्‍से की गोलाई 4.4 सेंटीमीटर तथा मोटाई करीब 0.6 मिलीमीटर है। इसके ऊपर गोलाकार में तीन सितारों (3 Stars) की नक्‍काशी की गई है तीन सितारों के ऊपर 'दिव्य' और निचे 'विभूषण' हिंदी लिपि में उकेरा गया है। इसके पीछे गोलाकार में माहेश्वरी समाज के प्रतीक चिन्‍ह- मोड़ की नक्‍काशी की गई है। मोड़ के निचे हिंदी में 'माहेश्वरी' उकेरा गया है।

दिव्यभूषण — यह पदक दिव्य विभूषण की तरह ही है लेकिन इसके ऊपर सामने से गोलाकार में दो सितारों (2 Stars) की नक्‍काशी की गई है। दो सितारों के ऊपर 'दिव्य' और निचे 'भूषण' हिंदी लिपि में उकेरा गया है।

दिव्यश्री — दूसरे दिव्य पदकों की तरह ही यह पदक है लेकिन इसके ऊपर गोलाकार में सामने से एक सितारे (1 Star) की नक्‍काशी की गई है। एक सितारे के ऊपर 'दिव्य' और निचे 'श्री' हिंदी लिपि में उकेरा गया है।

Divy awards (दिव्य पुरस्कार)

Divy Awards (दिव्य पुरस्कार) are Maheshwari Akhada's highest Maheshwari awards. Divy Awards were instituted in the year 2017. The award is given in three categories, namely, Divy Vibhushan (दिव्य विभूषण), Divy Bhushan (दिव्य भूषण) and Divy Shri (दिव्य श्री).

The award seeks to recognise work of any distinction and is given for distinguished and exceptional achievements/service in all fields of activities/disciplines, such as Art, Literature and Education, Sports, Medicine, Social Work, Science and Engineering, Public Affairs, Civil Service, Trade and Industry etc.

The recommendations made by the Awards Committee are submitted to the Mahamantri and the President for their approval. No award is conferred except on the recommendation of the Awards Committee.

The Awards are announced in December every year and are presented by the Peethadhipati of Maheshwari Akhada. The ceremony is generally held on Mahesh Navmi.

Divy Vibhushan — The second highest Maheshwari honour (award).
Divy Bhushan — The third highest Maheshwari honour (award).
Divy Shri — The fourth highest Maheshwari honour (award).

देखें Link > प्रतिष्ठित माहेश्वरी सम्मान "दिव्य पुरस्कार" के लिए नामांकन आमंत्रित

माहेश्वरी समाज की धार्मिक परंपरा के अनुसार धनतेरस के दिन हाथी पूजन का है विशेष महत्व


माहेश्वरी समाज की धार्मिक परंपरा के अनुसार धनतेरस के दिन हाथी की पूजा करने का विधान है। माहेश्वरी धार्मिक मान्यता के अनुसार हाथी को स्वास्थ्य, शक्ति और ऐश्वर्य प्रदाता के रूप में 'गजान्तलक्ष्मी' कहा जाता है। हाथी के पर्याय के रूप में, जिसका सामने का दाहिना पैर आगे हो ऐसे सोने, चांदी, तांबे, पीतल, कांसे या लाल मिट्टी के हाथी को पूजा जाता है। चांदी अथवा पीतल के हाथी को पूजाघर में, हाथी का मुख उत्तर दिशा की ओर करकर रखा जाता है तथा उसकी नित्य पूजा की जाती है।

कहते हैं कि‍ एक बार महाभारत काल में धनतेरस के दिन पूरे हस्‍त‍िनापुर में गजलक्ष्मी पर्व मनाया गया। इस उत्‍सव पर हस्‍तिनापुर की महारानी गांधारी ने पूरे नगर को शाम‍िल होने के ल‍िए आमंत्रित क‍िया था लेक‍िन कुंती को नहीं बुलाया। व‍िधान के अनुसार इसमें मिट्टी के हाथी की पूजा होनी थी। ऐसे में गांधारी के 100 कौरव पुत्रों ने म‍िट्टी लाकर महल के बीच व‍िशालकाय हाथी बनाया। जि‍ससे कि‍ सभी लोग उसकी पूजा कर सके। ऐसे में पूजा में हस्‍तिनापुर की महारानी गांधारी द्वारा न बुलाए जाने से कुंती काफी दुखी थी। ज‍िससे उनके बेटे अर्जुन से मां का दुख देखा नहीं गया। उन्‍होंने मां से कहा क‍ि वह पूजा की तैयारी करें और वह म‍िट्टी का नहीं बल्‍क‍ि जीव‍ित हाथी लेकर आते हैं। फिर अर्जुन ने देवताओं के राजा इंद्र से ऐरावत हाथी को पूजने हेतु भेजने का आवाहन किया। अर्जुन के आवाहन पर इंद्र ने ऐरावत हाथी को अर्जुन के पास भेजा। अर्जुन ने हाथी को मां कुंती के सामने खड़ा कर द‍िया और कहा कि तुम इसकी पूजा करो। कुंती को ऐरावत हाथी की पूजा करते देख गांधारी को अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्‍होंने कुंती से क्षमा मांगी। इसके बाद से ही गजलक्ष्‍मी के रूपमें हाथी की पूजा शुरू हो गई। तभी से धनतेरस के दिन सजे-धजे सोने, चांदी, तांबे, पीतल, कांसे या लाल मिट्टी के हाथी को पूजने की परंपरा आरंभ हुई। महालक्ष्मी के गजलक्ष्मी स्वरुप को हाथी के रूपमें पूजा जाने लगा। 

गजलक्ष्मी- महालक्ष्मी के आठ स्वरुप है जिनके अधीन है अष्टसम्पदायें, इन्हे अष्टलक्ष्मी के नाम से जाना जाता है। इन्ही अष्टलक्ष्मीयों में से एक है- गजलक्ष्मी। इन्हीं की कृपा से बल और आरोग्य के साथ साथ धन-वैभव-समृद्धि के साथ ही राजपद का आशीर्वाद प्राप्त होता है; इसीलिए गजलक्ष्मी देवी को राजलक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है। गज (हाथी) को वर्षा करने वाले मेघों तथा उर्वरता का भी प्रतीक माना जाता है इसलिए गजलक्ष्मी उर्वरता तथा समृद्धि की देवी भी हैं। इसी गजलक्ष्मी को हाथी के रूपमें गजान्तलक्ष्मी के नाम से पूजा जाता है।


धनतेरस अर्थात धन्वन्तरि तेरस धन्वन्तरि से धन और उनके प्राकट्य का दिन 'तेरस' मिलकर "धनतेरस" शब्द बना है कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धन्वन्तरि का प्राकट्य हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थीं, उसी प्रकार आयुर्वेद के देवता भगवान धन्वंतरी भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं धन्वन्तरि आरोग्य, सेहत, स्वास्थ्य, आयु और तेज के आराध्य देवता हैं (Lord Dhanvantari is God of Health) दीपावली के पांच दिवसीय पर्व का पहला दिन है- धनतेरस इसी दिन से दीपावली पर्व की शुरुवात होती है

धनतेरस की पूजाविधि-
महालक्ष्मी पूजन से 2 दिन पहले आरोग्‍य व दीर्घायु की कामना के साथ धनतेरस पर्व मनाया जाता है, आरोग्यदेव भगवान धन्वन्तरि की पूजा की जाती है। धनतेरस के दिन स्वास्थ्य के अनुकूल ऐसे रसोई के बर्तन खरीदने की परंपरा है। पीतल धातु भगवान धन्वन्तरि को बहुत प्रिय है, इसलिए धनतेरस के दिन पीतल की चीज़ों का खरीदना बहुत शुभ माना जाता है। सफाई के लिए नई झाडू और सूपड़ा/सुपली खरीदकर उसकी पूजा की जाती है। इस दिन रसोईघर की साफसफाई की जाती है, रसोई में प्रयोग किये जानेवाले प्रमुख बर्तनो (जैसे की चकला/चकलुटा- यह लकड़ी का बना होता है जिसपर चपाती और रोटी बेली जाती है, बेलन, तवा, कढ़ई आदि) और चूल्हे की (वर्तमान समय में गॅस को ही चूल्हा समझे) पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि धनवंतरी भगवान संध्या काल में प्रकट हुए थे अतः संध्या के समय पूजन किया जाना उत्तम माना जाता है। पूजन में आयुर्वैदिक घरेलु ओषधियाँ जैसे आंवला, हरड़, हल्दी आदि अवश्य रखें। जल से भरे घड़े में हरितकी (हरड़), सुपारी, हल्दी, दक्षिणा, लौंग का जोड़ा आदि वस्तुएं डाल कर कलश स्थापना करें। भगवान धन्वंतरि की पूजा में सात धान्यों की पूजा होती है। जैसे कि गेहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर। इन सब के साथ ही पूजा में विशेष रूप से स्वर्णपुष्पा के पुष्प से माँ दुर्गा का पूजन करना बहुत ही लाभकारी होता है। इस दिन भगवान धन्वंतरि के साथ ही माँ दुर्गा के पूजा का विशेष महत्व है। धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि को भोग में श्वेत मिष्ठान्न का भोग लगाना चाहिए। आयुर्वेद के देवता धन्वन्तरि के साथ ही योग के देवता भगवान महेश (शिव) और बल (स्वास्थ/शक्ति) की देवता महाकाली (देवी दुर्गा) का पूजन भी किया जाता है। धनतेरस पर हाथी की पूजा करने का भी विधान है। धनतेरस की संध्या (शाम) को यम देवता के नाम पर दक्षिण दिशा में एक दीप जलाकर रखा जाता है।

आरोग्य रूपी धन से सम्बंधित है धनतेरस, ना की सोना-चांदी-हिरे-जवारात रूपी धन से लोग धनतेरस के दिन को सोने-चांदी के गहने/अलंकार खरीदने का शुभ दिन समझने लगे है और इसीलिए इस दिन धन अर्थात रूपया-पैसा, सोने-चांदी के गहने/अलंकार आदि खरीदते है तथा कुबेर और रूपया-पैसा, सोने-चांदी के गहनों की पूजा करते है लेकिन वस्तुतः रूपया-पैसा-सोना-चांदी-हीरे-जवारात रूपी धन की पूजा के लिए महालक्ष्मी-पूजन (दीपावली) का दिन है, धनतेरस का नहीं 

धनतेरस का पर्व स्वास्थ्य के प्रति समर्पित दिन होने के कारन इस दिन स्वास्थ्य साधनों के उपकरण (Health Instrument, Exercise & Fitness Instrument) खरीदने चाहिए तथा इनकी पूजा की जानी चाहिए; स्वास्थ्य से सम्बंधित सेमीनार, कार्यशाला, चिकित्सा शिबिर (हेल्थ कैंप), गोष्टी आदि का आयोजन किया जाना चाहिए, यही धनतेरस की मूल भावना के अनुरूप, संयुक्तिक और औचित्यपूर्ण है। हमें यह समझने की जरुरत है की- धनतेरस के दिन को स्वास्थ्य के दिन के रूप में भूलकर/भुलाकर इसके कुबेर पूजन और सोने-चांदी के गहने/अलंकार खरीदने के दिन के रूप में प्रचारित होने से ना केवल इस दिन की मूलभावना, मूल उद्देश्य समाप्त होता है बल्कि भारतीय संस्कृति और जीवनदर्शन को दर्शानेवाले इस पर्व की सार्थकता और औचित्य ही समाप्त हो जाता है। यह भारतीय संस्कृति की बहुत बड़ी हानि है।

धनतेरस का सन्देश यही है की इस दिन अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग होना है, जीवन में स्वास्थ्य के महत्त्व को समझना है, आनेवाले समय में अपने स्वास्थ्य को सुनिश्चित करना है, अपने बेहतर स्वास्थ्य का नियोजन करना है और भगवान धन्वन्तरि से प्रार्थना करनी है कि वे समस्त जगत को निरोग कर मानव समाज को दीर्घायु प्रदान करें।





जैसे राजपूत माने शेर (Loin), जैसे सिख माने बाघ (Tiger)
वैसे ही माहेश्वरी माने "हाथी" (Elephant)

- भगवान महेशजी की संतान गणेशजी का मुख (Face) हाथी का है और माहेश्वरी खुद को भगवान महेशजी की संतान मानते है इसलिए माहेश्वरीयो का प्रतिक है "हाथी"

- 'शेर' की तरह अपना पेट भरने के लिए किसी और को जान से नहीं मारता है हाथी ; यही माहेश्वरी संस्कृति है इसलिए माहेश्वरीयो का प्रतिक है "हाथी"

- शक्तिशाली होनेपर भी आम तौर पर हाथी शांतिप्रिय होता है लेकिन अगर बिफर जाये तो फिर सामनेवाले को कुचलकर रख देता है. हाथी से तो राजा कहलानेवाला शेर भी खौफ खाता है. यही है माहेश्वरी attitude... इसलिए माहेश्वरीयो का प्रतिक है "हाथी"

- हाथी को 'समृद्धि और ऐश्वर्य' का प्रतिक माना जाता है इसलिए माहेश्वरीयो का प्रतिक है "हाथी" 
So, Elephant is a Maheshwari symbol of lifestyle.