Ganeshji Connection of Maheshwaris


माहेश्वरीयों का गणेशजी कनेक्शन...

देवी पार्वती के कहने पर भगवान महादेव (महेशजी) ने गणेश के कटे हुए सिर पर हाथी का सिर जोड़कर गणेशजी को पुनर्जीवन दिया ठीक उसी तरह से ऋषियों के शाप के कारन मृतवत पड़े 72 क्षत्रिय उमरावों को देवी पार्वती के कहने पर ही भगवान महेशजी ने पुनः जीवित किया, पुनर्जीवन दिया. जैसे पुत्र को पिता का नाम मिलता है वैसे ही पुनर्जीवित किये हुये उमरावों को भगवान महेश्वर और माता महेश्वरी ने "माहेश्वरी" यह अपने नाम से जुडी नई पहचान, नया नाम दिया (देखें link- माहेश्वरी वंशोत्पत्ति एवं इतिहास). यहीं से माहेश्वरी वंश की शुरुवात हुई. यह है गणेशजी और माहेश्वरीयों के जन्म में समानता. इसीलिए जैसे देवी पार्वती गणेशजी की माता है उसी तरह माहेश्वरीयों की भी माता है. जैसे गणेशजी माता पार्वती के पुत्र है वैसे ही माहेश्वरी भी माता पार्वती के पुत्र है. यह है माहेश्वरीयों का गणेशजी कनेक्शन. गणेशजी की जैसी भक्ति अपनी माता-पिता महेश-पार्वती पर, माहेश्वरियों की भी वैसी ही भक्ति अपने प्रथम आराध्य महेश-पार्वती पर ! भगवान महेशजी और आदिशक्ति पार्वती की जैसी कृपा पुत्र गणेश पर वैसी ही कृपा है माहेश्वरीयों पर !!!





जय भवानी... जय महेश... जय गणेश !

Hartalika Teej


तीज का त्योंहार भगवान महेश (शिव) और माता पार्वती के भक्ति आराधना को समर्पित है जिसे भारतीय महिलाएं जीवन में विवाह, परिवार और पारिवारिक संबंधों के महत्व को समझने-समझाने की भावना के साथ मनाती हैं और अपने पुरे परिवार के समग्र कल्याण के लिए प्रार्थना करती हैं. यह पर्व ज्यादातर उत्तर भारत और नेपाल में मनाया जाता है. तीज का पर्व राजस्थान, हरियाणा, पंजाब आदि राज्यों में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है. माहेश्वरी समाज में "महेश नवमी" के बाद समाज के सबसे बड़े उत्सव के रूप में तीज के पर्व को मनाया जाता है. माहेश्वरी समाज के लिए, विशेषतः माहेश्वरी युवतियों और महिलाओं के लिए तीज का एक विशेष महत्व है.

तीज तीन प्रकार की है, (1) श्रावणी तीज (इसे छोटी तीज और हरियाली तीज के नाम से भी जाना जाता है. (2) कजरी तीज (इसे बड़ी तीज और सातुड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है. (3) हरतालिका तीज (कहीं कहीं पर इसे हरितालिका तीज कहा जाता है अपितु इसका सही नाम 'हरतालिका तीज' ही है). मान्यता, परंपरा और शास्त्रों के अनुसार, विवाह होने तक कुमारिकाओं द्वारा हरतालिका तीज का व्रत किया जाता है और विवाह के पश्चात छोटी तीज और बड़ी तीज (श्रावणी तीज और सातुड़ी तीज) का व्रत किया जाता है. सुयोग्य पति पाने के लिए अविवाहित युवतियों के लिए हरितालिका तीज के व्रत का विधान है. अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने के लिए विवाहित महिलाओं द्वारा छोटी तीज और बड़ी तीज के पर्व को मनाने का विधान है.

हरतालिका तीज -
सुयोग्य और अनुरूप पति को पाने की कामना का परम पावन व्रत 'हरतालिका तीज' भारतीय पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को किया जाता है. "हर" भगवान महेश (महादेव) का ही एक नाम है और चूँकि महादेव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए पार्वती ने सर्वप्रथम इस व्रत को रखा था, इसलिए इस पावन व्रत को 'हरतालिका तीज' कहा जाता है. विवाहित महिलाएं भी इस व्रत को कर सकती है, करती है लेकिन हरतालिका तीज यह मुख्यतः कुवांरी युवतियों के द्वारा मनाने का त्योंहार है जो उनके द्वारा अपने लिए सुयोग्य और अनुरूप पति को प्राप्त करने के लिए श्रद्धा और निष्ठा पूर्वक किया जाता है.

इस दिन विशेष रूप से गौरी−शंकर (महेश-पार्वती) का ही पूजन किया जाता है. चूँकि यह व्रत पति-पत्नी के रिश्ते से सम्बंधित है इसलिए यह महेश-पार्वती के साकार (शारीरिक रचना वाले) स्वरुप में पूजा-आराधना का पर्व है (अर्थात तीज के पर्व में शिवपिंड अथवा शिवलिंग के स्वरुप में नहीं बल्कि महादेव-पार्वती के मूर्ति अथवा तसबीर की पूजा का महत्व है. कुछ (अज्ञानी) लोगों द्वारा यह प्रचारित किया जाता है की भगवान महादेव के मूर्ति की पूजा वर्जित है लेकिन यह सही नहीं है. भगवान महादेव की साकार और निराकार दोनों ही स्वरूपों में पूजा की जा सकती है. महादेव साकार और निराकार दोनों ही स्वरूपों में पूजनीय है. शिव महापुराण और शास्त्रों के अनुसार सन्यासियों के लिए भगवान महादेव के निराकार स्वरुप की पूजा का और गृहस्थियों के लिए साकार स्वरुप की पूजा का विधान है. शिवपिंड और शिवलिंग महादेव के निराकार स्वरुप का प्रतिक है और शारीरिक आकार दर्शाती मूर्ति तथा तसबीर उन्ही देवाधिदेव महादेव के साकार स्वरुप का प्रतिक है).


हरतालिका तीज का व्रत करने वाली युवतियां-स्त्रियां इस दिन सूर्योदय से पूर्व ही उठ जाती हैं और नहा धोकर पूरा श्रृंगार करती हैं. पूजन के लिए केले के पत्तों से मंडप बनाकर गौरी−शंकर (महेश-पार्वती) की प्रतिमा स्थापित की जाती है. इसके साथ पार्वती जी को सुहाग (श्रृंगार) का सारा सामान ((सुगन्धित फूलों का गजरा, चूड़ियां, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, मेहंदी आदि) चढ़ाया जाता है. माहेश्वरी समाज में महेश-पार्वती को युग्मपत्र (सोनपत्ता/आपटा-पर्ण) चढाने का भी विधान और परंपरा है. हरतालिका तीज के दिन उपवास करें यह प्रचारित है, प्रचलित है; कहा जाता है की हरतालिका व्रत निर्जला किया जाता हैं अर्थात पूरा दिन एवं रात अगले सूर्योदय तक जल ग्रहण नहीं किया जाता है लेकिन माहेश्वरी संस्कृति के मूल परंपरा के अनुसार इस दिन उपवास का अथवा जल ग्रहण नहीं करने का (निर्जला रहने का) कोई विधान नहीं है. माहेश्वरी समाज की मूल परंपरा के अनुसार हरतालिका व्रत में उपवास करने का अथवा निर्जला रहने का कोई विधि-विधान नहीं है. इस दिन महेश-पार्वती के मंदिर में होपहर में महा आरती (भगवान महेश, माता गौरी एवम गणेशजी की पूजा और आरती) की जाती है. हरतालिका व्रत के दिन रतजगा किया जाता हैं. रात में भजन, कीर्तन करते हुए जागरण कर तीन बार आरती की जाती है और महेशजी को ब्यावलो (शिव-पार्वती विवाह की कथा) को सुना जाता है.



माहेश्वरीयों की विशेष पहचान, 'ऋषि पंचमी' को रक्षाबंधन | Raksha Bandhan on Rishi Panchami, This Tradition is related to Origin Day of Maheshwari Community, Day of Mahesh Navami | Rakshabandhan | Rakhi

Unique identification of Maheshwaris,
Raksha Bandhan on the day of Rishi Panchami.

आम तौरपर भारत में रक्षाबंधन का त्योंहार श्रावण पूर्णिमा (नारळी पूर्णिमा) को मनाया जाता है लेकिन माहेश्वरी समाज (माहेश्वरी गुरुओं के वंशज जिन्हे वर्तमान में छः न्याति समाज के नाम से जाना जाता है अर्थात पारीक, दाधीच, सारस्वत, गौड़, गुर्जर गौड़, शिखवाल आदि एवं डीडू माहेश्वरी, थारी माहेश्वरी, धाटी माहेश्वरी, खंडेलवाल माहेश्वरी आदि माहेश्वरी समाज) में रक्षा-बंधन का त्यौहार ऋषिपंचमी के दिन मनाने की परंपरा है. इस परंपरा का सम्बन्ध माहेश्वरी वंशोत्पत्ति से जुड़ा हुवा है.


विदित रहे की माहेश्वरी समाज में पीढ़ी दर पीढ़ी ऋषि पंचमी के दिन रक्षाबंधन (राखी) का त्योंहार मनाने की परंपरा चली आई है. एक मान्यता यह है की जब माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई तब जो माहेश्वरी समाज के गुरु थे जिन्हें ऋषि कहा जाता था उनके द्वारा विशेष रूप से इसी दिन रक्षासूत्र बांधा जाता था इसलिए इसे 'ऋषि पंचमी' कहा जाता है. रक्षासूत्र मौली के पचरंगी धागे से बना होता था और उसमें सात गांठे होती थी. वर्तमान समय में इसी रक्षासूत्र ने राखी का रूप ले लिया है और इसे बहनों द्वारा बांधा जाता है.

प्राचीनकाल में शुभ प्रसंगों में, प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन तथा 'ऋषि पंचमी' के दिन गुरु अपने शिष्यों के हाथ पर, पुजारी और पुरोहित अपने यजमानों के हाथ पर एक सूत्र बांधते थे जिसे रक्षासूत्र कहा जाता था, इसे ही आगे चलकर राखी कहा जाने लगा. वर्तमान समय में भी रक्षासूत्र बांधने की इस परंपरा का पालन हो रहा है.

आम तौर पर यह रक्षा सूत्र बांधते हुए ब्राम्हण "येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।" यह मंत्र कहते है जिसका अर्थ है- "दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूं. हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो" लेकिन तत्थ्य बताते है की माहेश्वरी समाज में रक्षासूत्र बांधते समय जो मंत्र कहा जाता था वह है-
स्वस्त्यस्तु ते कुशलमस्तु चिरायुरस्तु,
विद्याविवेककृतिकौशलसिद्धिरस्तु।
ऐश्वर्यमस्तु विजयोऽस्तु गुरुभक्ति रस्तु,
वंशे सदैव भवतां हि सुदिव्यमस्तु।।
(अर्थ- आप सदैव आनंद से, कुशल से रहे तथा दीर्घ आयु प्राप्त करें. विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि प्राप्त करें. ऐश्वर्य व सफलता को प्राप्त करें तथा गुरु भक्ति बनी रहे. आपका वंश सदैव दिव्य गुणों को धारण करनेवाला बना रहे. इसका सन्दर्भ भी माहेश्वरी उत्पत्ति कथा से है. माहेश्वरी उत्पत्ति कथा में वर्णित कथानुसार, निष्प्राण पड़े हुए उमरावों में प्राण प्रवाहित करने और उन्हें उपदेश देने के बाद महेश-पार्वती अंतर्ध्यान हो गये. उसके पश्चात ऋषियों ने सभी को "स्वस्त्यस्तु ते कुशलमस्तु चिरायुरस्तु...." मंत्र कहते हुए सर्वप्रथम (पहली बार) रक्षासूत्र बांधा था. माना जाता है की यही से माहेश्वरी समाज में रक्षासूत्र (रक्षाबंधन या राखी) बांधने की शुरुवात हुई. उपरोक्त रक्षामंत्र भी मात्र माहेश्वरी समाज में ही प्रचलित था/है. गुरु परंपरा के ना रहने से तथा माहेश्वरी संस्कृति के प्रति समाज की अनास्था के कारन यह रक्षामंत्र लगभग विस्मृत हो चला है लेकिन माहेश्वरी संस्कृति और पुरातन परंपरा के अनुसार राखी को बांधते समय इसी मंत्र का प्रयोग किया जाना चाहिए.


कुछ माहेश्वरी समाजबंधु रक्षाबंधन का पर्व माहेश्वरी परंपरा के अनुसार "ऋषि पंचमी" को मनाने के बजाय श्रावण पूर्णिमा को ही मना रहे है तो कुछ समाजबंधु यह पर्व मनाते तो ऋषि पंचमी के हिसाब से ही है लेकिन अपनी सुविधा के अनुसार 2-4 दिन आगे-पीछे रक्षाबंधन कर लेते है जो की उचित नहीं है. शास्त्रों और परम्पराओं के अनुसार कुछ विशेष दिनों का, कुछ विशेष स्थानों का अपना एक महत्व होता है. दीवाली 'दीवाली' के दिन ही मनाई जाती है, किसी दूसरे दिन नहीं. क्या अपनी सुविधा के अनुसार 'गुढी' गुढीपाडवा के बजाय 2-4 दिन आगे-पीछे लगाई (उभारी) जाती है? तो रक्षाबंधन ऋषिपंचमी के दिन के बजाय किसी और दिन कैसे मनाया जा सकता है? यदि माहेश्वरी हैं तो रक्षा बंधन का त्योंहार "ऋषी पंचमी" के दिन ही मनाकर गर्व महसूस करें. यदि माहेश्वरी हैं तो... रक्षाबंधन का त्योंहार "ऋषी पंचमी" के दिन ही मनाये.


दूसरी एक बात...
आम तौर पर रक्षाबंधन (राखी) का त्योंहार श्रावणी पूर्णिमा (राखी पूर्णिमा) के दिन मनाया जाता है लेकिन माहेश्वरी समाज में परंपरागत रूपसे रक्षाबंधन का त्योंहार ऋषि पंचमी के दिन मनाया जाता है. "ऋषि पंचमी के दिन रक्षाबंधन" यह बात दुनियाभर में माहेश्वरी संस्कृति (माहेश्वरीत्व) की, माहेश्वरी समाज की विशिष्ठ पहचान बनी है; यह हम माहेश्वरीयों की सांस्कृतिक धरोहर है, विरासत है.  माहेश्वरी रक्षाबंधन के इस त्योंहार को भाई-बहन के गोल्डन रिलेशनशिप के पवित्र धार्मिक त्योंहार के रूपमें परंपरागत विधि-विधान और रीती-रिवाज के साथ मनाया जाता है, मनाया जाना चाहिए लेकिन विगत कुछ वर्षों से, कई बहने राखी बांधने के बाद भाई को श्रीफल (नारियल) के बजाय रुमाल या कोई दूसरी चीज दे रही है. क्या भगवान के मंदिर में नारियल फोड़कर चढाने के बजाय रुमाल फाड़ कर चढ़ाया जा सकता है...? हर चीज का अपनी जगह एक महत्व होता है इस बात के महत्व को समझते हुए श्रीफल की जगह 'श्रीफल' ही दिया जाना चाहिए (हाँ, इसे कुछ विशेष सजावट के साथ या ले जाने में सुविधा हो इस तरह से पैकिंग करके दिया जा सकता है). भाईयों को भी चाहिए की बहन की मंगलकामनाओं और दुवाओं के प्रतिक के रूपमें दिए जानेवाले श्रीफल को अपने साथ अपने घर पर ले जाएं और इसे घर के सभी परिवारजनों के साथ प्रसाद के रूपमें ग्रहण करें.

जिन्हे सगी बहन ना हो वे अपने चचेरी बहन से राखी बांधे लेकिन माहेश्वरी संस्कृति के अनुसार ऋषि पंचमी के दिन केवल माँ-जाई (सगी) बहन से राखी बांधना पर्याप्त है. जीन भाईयोको माँ-जाई बहन और चचेरी बहन ना हो वह, मित्र की बहन से या अपने कुल के पुरोहित से अथवा मंदिर के पुजारी से राखी बंधाए, और यदि कोई बहन को भाई ना हो तो वह भगवान गणेशजी को राखी बांधे.









श्री गणेश चतुर्थी के अगले दिन होती है- ऋषि पंचमी (माहेश्वरी रक्षाबंधन)




समस्त माहेश्वरी समाजजनों को ऋषि पंचमी (माहेश्वरी रक्षाबंधन) की हार्दिक शुभकामनाएं !